महाराष्ट्र

बच्चे भी माता-पिता के विवाह की वैधता को पारिवारिक न्यायालय में चुनौती दे सकते

संपत्ति के विवाद में High Court ने सुनाया फैसला

मुंबई/दि.19 – बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि बच्चे भी अपने माता-पिता के विवाह की वैधता को पारिवारिक अदालत में चुनौती दे सकते हैं. हाईकोर्ट ने यह फैसला एक बेटी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद सुनाया है.
याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि उसकी सौतेली मां ने अपने पहले पति से तलाक लिए बिना ही उसके पिता से विवाह किया था. अब सौतेली मां वारिस बनकर उसके पिता की संपत्ति को अपने नाम करा रही है. इसलिए उसके पिता के दूसरे विवाह को अमान्य घोषित किया जाए. इससे पहले बेटी ने पारिवारिक अदालत में अपने पिता के विवाह को अवैध ठहराने की मांग को लेकर आवेदन दायर किया था. लेकिन पारिवारिक अदालत ने याचिकाकर्ता की मांग को ठुकरा दिया था.
न्यायमूर्ति रमेश धानुका व न्यायमूर्ति विरेंद्र बिस्ट की खंडपीठ के सामने सुनवाई के दौरान बेटी ने दावा किया था कि उसकी सौतेली मां ने उसके पिता को गुमराह किया था कि वह तलाकशुदा है. जबकि हकीकत में ऐसा नहीं था. उसे कुछ दस्तावेजों से इसकी जानकारी मिली है. बेटी ने दावा किया था कि उसकी सौतेली मां न्यायीक तरीके से अपने पहले पति से अलग नहीं हुई थी. इसको लेकर कोई कानूनी दस्तावेज भी नहीं है.
इसके बाद सौतेली मां ने उसके पिता के निधन से पहले उन पर दबाव बनाकर काफी संपत्ति अपने नाम पर स्थानांतरित करवा ली. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने खंडपीठ के सामने पारिवारिक अदालत के फैसले को खामीपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि कानूनी रूप से पति-पत्नी के अलावा बच्चे व उनसे संबंधित लोग भी विवाह को चुनौती दे सकते हैं.

संबंधित कानून का दायरा काफी बृहद व व्यापक-कोर्ट

मामले में प्रतिवादी (सौतेली मां) के वकील ने कहा कि नियमानुसार विवाह के पक्षकार यानी पति-पत्नी ही इसकी वैधता को चुनौती दे सकते है. याचिकाकर्ता (बेटी) के पास विवाह को चुनौती देने का अधिकार ही नहीं है. इसके अलावा याचिकाकर्ता ने अपने पिता के निधन के बाद विवाह को चुनौती दी हैं, जो तय समय सीमा के भीतर नहीं है. मेरे मुवक्किल का विवाह पंजीकृत भी है. उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर निचली अदालत द्वारा दिया गया फैसला सही है. दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने निष्कर्ष में निचली अदालत के आदेश को खामीपूर्ण माना. खंडपीठ ने कहा, इस विषय से संबंधित कानून यह नहीं कहता है कि विवाह से जुडा विवाद सिर्फ उसके पक्षकार यानी पति-पत्नी के बीच होना चाहिए. इससे संबंधित कानून का दायर काफी बृहद व व्यापक है. इसलिए सिर्फ पति-पत्नी ही नहीं बल्कि उनसे संबंधित लाभार्थी व लोग भी विवाह की वैधता को चुनौती दे सकते हैं. खंडपीठ ने बेटी की याचिका को मंजूर करते हुए पारिवारिक अदालत के आदेश को खारिज कर दिया और अदालत को नए सिरे से बेटी की याचिका पर सुनवाई करने का निर्देश दिया.

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