महाराष्ट्र

विदेशी अदालत के फैसले के आधार पर मां से नहीं छीन सकते बच्चे

विवाद के बाद 2017 में मुुंबई लौट आई थी महिला, श्रीलंकाई पिता ने बच्चों को सौंपने हाईकोर्ट में दायर की याचिका

मुंबई/दि.28 – किसी विदेशी अदालत ने मां के खिलाफ आदेश जारी किया है सिर्फ इस आधार पर मां को बच्चों को अपने पास रखने से वंचित नहीं किया जा सकता है. यह कहते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने श्रीलंका निवासी पिता को दोनों बच्चे को सौंपने से इनकार कर दिया है. हाईकोर्ट ने कहा कि, बच्चेे तीन साल से भारत में रह रहे हैं. यहां पढाई करते हुए बच्चों ने अपनी जडें विकसित कर ली हैं. बच्चों ने भी मां के साथ भारत में रहने की इच्छा जाहिर की है.
सुप्रीम कोर्ट ने मां को बच्चों का नैसर्गिक संरक्षक माना है. इसलिए सिर्फ किसी विदेशी कोर्ट ने बच्चों को अपने पास रखने को लेकर पिता के पक्ष में आदेश दिया है. महज इस आधार पर मां का बच्चों को अपने पास रखने का अधिकार नहीं खत्म हो जाता है. न्यायमूर्ति एस.एस. शिंदे व न्यायमूर्ति मनीष पीटाले की खंडपीठ ने पाया कि, मामले से जुडे उच्च शिक्षित दंपति का विवाह मार्च 2010 में हुआ था. विवाह के बाद दोनों अमेरिका चले गए. याचिका के मुताबिक विवाह के बाद दोनों को दो बच्चे हुए. चूंकि पति के पास श्रीलंका व कनाडा की नागरिकता थी. इसलिए पहली संतान बेटी को श्रीलंका व अमेरिका दोनों जगह की नागरिकता मिल गई. जबकि बेटे को सिर्फ श्रीलंका की नागरिकता मिली.
अमेरिका में कुछ समय रहने के बाद पति पत्नी श्रीलंका वापस चले गए. जहां दोनों के बीच वैवाहिक विवाद शुरु हो गया. दोनों ने एक दूसरे से तलाक ले लिया. बच्चों की कस्टडी को लेकर श्रीलंका की कोर्ट में पिता के पक्ष में आदेश मिला. इस बीच 2017 में बच्चों की मां उन्हें लेकर अपनी मां के घर ठाणे आकर रहने लगी. फिर दोबारा श्रीलंका नहीं गई. इसलिए पति ने बॉम्बे हाईकोर्ट में बच्चों को अदालत में पेश करने व सौंपने की मांग को लेकर याचिका दायर की.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रही अधिवक्ता ने कहा कि, श्रीलंका की कोर्ट ने मेरे मुवक्किल के पक्ष में आदेश दिया है. इसलिए बच्चों को उन्हें सौंपा जाए. इसके अलावा श्रीलंका की कोर्ट ने प्रतिवादी (पत्नी) को वारंट जारी किया है. फिर भी वे वहां नहीं जा रही हैं. बच्चों की वीजा की अवधि समाप्त होनेवाली है. उन्होंने कहा कि, प्रतिवादी को बच्चों को अपने पास रखने का नैतिक अधिकार नहीं है. वहीं बच्चों की मां की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अमोघ सिंह ने कहा कि, श्रीलंका में मेरे मुवक्किल का याचिकाकर्ता की क्रूरता के चलते साथ रहना मुश्किल हो गया था. इसलिए वे भारत आयी हैं. यहा वे बच्चों को पढा रही हैं. उन्होंने 7 साल की बेटी को लेकर मुंबई स्थित अमेरिकी दूतावास की रिपोर्ट भी पेश की. जिसमें बच्चे की परवरिश ठिक ढंग से होने की बात कही गई थी. बच्चे मां के साथ खुश हैं. इसलिए बच्चों को पिता को न सौंपा जाए. अदालत ने कहा कि, इस तरह के मामलों में बच्चों का हित सर्वोपरि होता है. इस प्रकरण में मां के साथ बच्चों का हित सुरक्षित दिख रहा है. कोर्ट में बच्चों ने मां के साथ रहने की इच्छा जाहिर की है. इस तरह खंडपीठ ने पिता की याचिका को खारिज कर दिया. लेकिन कहा कि, पिता के पास अपने बच्चों से मिलने व फोन पर बात करने का अधिकार रहेगा.

Related Articles

Back to top button