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भाजपा विधायक की याचिका पर उच्च न्यायालय के आदेश
मुंबई/दि.६ – मुंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि सरकारी व स्थानीय निकाय के अस्पतालों की लापरवाही व जानबुझकर उपेक्षा के कारण जान गवाने वाले कोरोना मरीजों के रिश्तेदारों को राज्य सरकार मुआवजा देने के लिए बाध्य है. उच्च न्यायालय ने यह आदेश भारतीय जनता पार्टी के विधायक आशिष शेलार की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दिये.
याचिका में मुख्य रुप से कोरोना मरीज की लाश के निस्तारण में बरती जा रही लापरवाही व नियमों के उल्लंघन को उजागर किया है. याचिका में सायन अस्पताल की उस घटना का उल्लेख किया गया है, जहां कोरोना मरीजों की लाश दूसरे मरीज के बगल में पडी दिखाई दी थी. याचिका में ऐसी ११ घटनाओं का जिक्र किया गया है. जिसमें अस्पताल की लापरवाही को स्पष्ट दर्शाया है. याचिका में कहा गया है कि ऐसी घटनाएं केवल मुंबई ही नहीं बल्कि राज्य भर के कई अस्पतालों में हुई है.
मुख्य न्यायाधिश दिपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति एन.जे.जमादार की खंडपीठ ने पिछली सुनवाई के दौरान जलगांव के सरकारी अस्पताल में ८२ वर्षीय महिला की लाश अस्पताल के शौचालय में मिलने के मामले को लेकर कडी नाराजी जताई थी. सोमवार को सरकारी वकील केदार दिघे ने कहा कि जलगांंव मामले को लेकर औरंगाबाद खंडपीठ के सामने सुनवाई चल रही है. इसपर खंडपीठ ने जब ११ घटनाओं के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि सभी घटनाएं सरकारी अस्पताल में नहीं हुई हैं. कुछ अस्पताल ऐसे है, जिन्हें मुंबई मनपा व दूसरे स्थानीय निकाय चलाते है. राज्य सरकार की जिम्मेदारी केवल सरकारी अस्पतालों तक है.
हम केवल सरकार को आगाह कर रहे है
खंडपीठ ने कहा कि हम चाहते है कि सरकार कोई ऐसी व्यवस्था बनाए, जिससे अस्पतालों में लापरवाही से मरीजों की जान न जाने पाये. वैसे यह सरकार की जिम्मेदारी है, हम केवल सरकार को आगाह कर रहे है. याचिका में जिन ११ घटनाओं का जिक्र किया गया है, यदि वे सही है तो यह अस्पताल की सदोष लापरवाही का संकेत देते है, जहां तक बात जलगांव के घटना की है तो यह मामला औरंगाबाद की खंडपीठ में चल रहा है, इसलिए हम इस विषय पर कोई आदेश जारी नहीं करेंगे, इससे पहले याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता राजेंद्र पई ने कहा कि राज्य सरकार कोरोना मरीजों के शव को लेकर कौनसे दिशा निर्देशों का पालन करती है, यह अब तक स्पष्ट नहीं है. इसके बाद खंडपीठ ने राज्य सरकार को शवों को लेकर केंद्र सरकार के निर्देशों को अपनाने का सुझाव दिया. खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई २३ नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी है और राज्य सरकार को याचिका में उल्लेखित घटनाओं के बारे में हलफनामा दायर करने को कहा है.