
* महिला का इनकार यानी ‘नहीं’
* हाईकोर्ट का फैसला
मुंबई/दि.9-बंबई हाईकोर्ट ने एक सहकर्मी से सामूहिक बलात्कार करने के मामले में तीन पुरुषों की दोषसिद्धि को बरकरार रखा है और कहा कि जब कोई महिला ‘नहीं’ कहती है, तो इसका मतलब ‘नहीं’ ही होता है. उसकी पिछली यौन गतिविधियों के आधार पर सहमति का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता. न्यायमूर्ति नितिन सूर्यवंशी और न्यायमूर्ति एम. डब्ल्यू चांदवानी की पीठ ने छह मई के अपने फैसले में कहा, नहीं का मतलब नहीं होता है. पीठ ने दोषियों द्वारा पीड़िता की नैतिकता पर सवाल उठाने के प्रयास को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. अदालत ने कहा कि महिला की सहमति के बिना यौन संबंध बनाना उसके शरीर, मन और निजता पर हमला है. अदालत ने बलात्कार को समाज में नैतिक व शारीरिक रूप से सबसे निंदनीय अपराध बताया. अदालत ने कहा, अगर कोई महिला ‘नहीं’ कहती है तो उसका मतलब ‘नहीं’ होता है. इसमें कोई अस्पष्टता नहीं है और किसी महिला की तथाकथित अनैतिक गतिविधियों के आधार पर सहमति का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता है.
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि भले ही एक महिला अलग हो गई हो और अपने पति से तलाक लिए बिना किसी अन्य व्यक्ति के साथ रह रही हो, तो भी कोई व्यक्ति महिला की सहमति के बिना उसे अपने साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता. भले ही पीड़िता और दोषियों में से एक के बीच पहले संबंध थे, लेकिन अगर पीड़िता उसके और अन्य आरोपियों के साथ संबंध बनाने को तैयार नहीं है तो उसकी सहमति के बिना कोई भी यौन कृत्य बलात्कार माना जाएगा. अदालत ने कहा, एक महिला जो किसी विशेष अवसर पर किसी पुरुष के साथ यौन गतिविधियों के लिए सहमति देती है, वह हो सकता है कि उसी पुरुष के साथ अन्य सभी अवसरों पर यौन गतिविधियों के लिए सहमति न दे. एक महिला का चरित्र या नैतिकता उसके यौन साझेदारों की संख्या से जुड़े नहीं होते. यौन हिंसा महिला की निजता पर हमला है.
* यह यौन अपराध ही नहीं, आक्रामकता से भी जुड़ा
कोर्ट ने कहा, बलात्कार को सिर्फ यौन अपराध नहीं माना जा सकता, इसे आक्रामकता से जुड़े अपराध के तौर पर देखा जाना चाहिए, यह उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन है. अदालत ने पीड़िता के ‘सहजीवन साथी’ पर हमला करने के लिए तीनों की दोषसिद्धि भी बरकरार रखी.
* आजीवन कारावास की सजा 20 वर्ष में बदली
अदालत ने तीनों व्यक्तियों की दोषसिद्धि को रद्द करने से इनकार कर दिया, लेकिन उनकी सजा को आजीवन कारावास से घटाकर 20 वर्ष कर दिया.
* यह है मामला
याचिका में तीनों व्यक्तियों ने दावा किया था कि महिला शुरु में उनमें से एक के साथ संबंध में थी, लेकिन बाद में वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ ‘सहजीवन साथी’ के तौर पर रहने लगी. नवंबर 2014 में तीनों ने पीड़िता के घर में घुसकर उसके साथ रहने वाले पुरुष साथी पर हमला किया. वे महिला को जबरन पास के एक सुनसान स्थान पर ले गए, जहां उन्होंने उससे सामूहिक बलात्कार किया.