प्रभाग रचना को लेकर राज्य सरकार व निर्वाचन आयोग के बीच बन रहा टकराव
आयोग को हो रही मनपा व जिप का चुनाव करने की जल्दबाजी
* 15 दिन में सरकार के नाम जारी किये तीन स्मरण पत्र
* ओबीसी आरक्षण की वजह से अधर में लटके है मनपा व जिप के चुनाव
मुंबई/दि.4- नागरिकों के पिछडावर्ग यानी ओबीसी संवर्ग के राजनीतिक आरक्षण को दोबारा कायम करने हेतु राज्य की महाविकास आघाडी सरकार ने स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव को आगे टलवा दिया, ताकि इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के जरिये ओबीसी समाज के राजनीतिक आरक्षण को दुबारा हासिल करने हेतु कुछ समय मिल जाये. ऐसे में राज्य निर्वाचन आयोग के पास रहनेवाले प्रभाग रचना के अधिकार को अपने पास लेने हेतु सरकार द्वारा एक नये विधेयक को भी मंजुर किया गया. लेकिन इस विधेयक से संबंधित नियम बनने से पूर्व ही निर्वाचन आयोग ने प्रभाग रचना की कार्रवाई को लेकर जानकारी जानने हेतु राज्य निर्वाचन आयोग को तीन पत्र भेजे है. निर्वाचन आयोग की इस जल्दबाजी की वजह से अब आयोग व सरकार के बीच टकराववाली स्थिति देखी जा रही है.
बता दें कि, राज्य सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण को लेकर जारी किये गये अध्यादेश पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरीम स्थगनादेश दे दिया था. साथ ही ओबीसी आरक्षण के बिना राज्य में स्थानीय स्वायत्त निकायों के चुनाव करवाने को लेकर आदेश जारी किये थे. ऐसे में राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा नगर पंचायतों के चुनाव की प्रक्रिया निपटाने के साथ-साथ अब जिला परिषदों व महानगरपालिकाओं सहित नगर पालिकाओं व ग्रामपंचायतों के चुनाव कराने की तैयारी शुरू कर दी गई थी. किंतु राज्य सरकार ने ओबीसी आरक्षण के बिना किसी भी हाल में चुनाव नहीं करवाने का निर्णय लेते हुए राज्य निर्वाचन आयोग के पास रहनेवाले प्रभाग रचना के अधिकार को अपने पास ले लिया. साथ ही निर्वाचन आयोग द्वारा इससे पहले तैयार की गई प्रभाग रचना को निरस्त करते हुए नई प्रभाग रचना तैयार करने का निर्णय भी लिया गया. जिसे लेकर विधान मंडल में सर्वसम्मति के साथ एक विधेयक पारित किया गया. जिस पर अभी राज्यपाल के हस्ताक्षर होकर इसे अधिनियम में रूपांतरित करना बाकी है. किंतु यह प्रक्रिया जारी रहने के दौरान ही राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा राज्य सरकार को प्रभाग रचना की कार्रवाई के संदर्भ में जानकारी उपलब्ध कराने हेतु तीन बार स्मरण पत्र जारी किये जा चुके है. ऐसे में आयोग की इस जल्दबाजी को देखते हुए आयोग व राज्य सरकार के बीच काफी हद तक टकराववाली स्थिति देखी जा रही है.
ज्ञात रहे कि, 27 फीसद ओबीसी आरक्षण राज्य की राजनीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है. ऐसे में ओबीसी समाज के इम्पिरिकल डेटा को संकलित करने हेतु राज्य सरकार द्वारा गठित पिछडावर्गीय आयोग द्वारा युध्दस्तर पर काम किया जा रहा है. लेकिन आयोग को यह डेटा पूरी तरह से संकलित करने हेतु कम से कम तीन माह का समय लगना है. जिसके बाद इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में होनेवाली सुनवाई और वहां से डेटा को मिलनेवाली मान्यता के लिए भी करीब तीन माह का समय लग सकता है. ऐसे में राज्य की सभी महानगर पालिकाओं व जिला परिषदों सहित स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के चुनाव को छह माह के लिए स्थगित कर दिया गया है और संबंधित स्वायत्त संस्थाओं में प्रशासकों की नियुक्ति कर दी गई है. जहां एक ओर राज्य सरकार ओबीसी आरक्षण का मसला हल होने तक राज्य में सभी तरह के चुनाव को मूलतवी रखना चाह रही है, वहीं राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा अपने स्तर पर चुनावी प्रक्रिया को गतिमान करने के प्रयास किये जा रहे है. जिससे राज्य सरकार व निर्वाचन आयोग के बीच टकराव व संघर्ष की स्थिति बन रही है.
* आयोग के हेतु को लेकर संदेह
विधेयक की अधिसूचना जारी होने के बाद इससे संबंधित नियम बनाने पडते है. जिसके उपरांत प्रभाग रचना का काम शुरू होता है, लेकिन अभी यह सारी प्रक्रिया बाकी है. इसके बावजूद राज्य निर्वाचन आयोग ने सरकार को दो स्मरण पत्र भेजे है और तीसरा स्मरण पत्र 29 मार्च को जारी किया गया. आयोग द्वारा की जा रही इस अति जल्दबाजी से राज्य सरकार को काफी हैरत हो रही है. साथ ही माना जा रहा है कि, शायद निर्वाचन आयोग ओबीसी आरक्षण के बिना ही चुनाव करवाने की भूमिका को लेकर आगे बढ रहा है.
* उपायुक्त का आनन-फानन में तबादला
राज्य निर्वाचन आयोग तथा सरकार के बीच जारी संघर्ष के दौरान राज्य सरकार ने आयोग के उपायुक्त अविनाश सनस का आनन-फानन में तबादला कर दिया. किंतु मुख्यमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप पश्चात यह तबादला रद्द भी हो गया. इसके साथ ही आयोग के सचिव किरण पुरंदर को समयावृध्दि देने के लिए ओबीसी आरक्षण का मसला संभाल रहे मंत्रियों द्वारा विरोध किया जा रहा है, लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय ने मध्यस्थता करते हुए पुरंदर को एक वर्ष की समयावृध्दि दी.
* आरक्षण के बिना चुनाव होने पर ओबीसी जनप्रतिनिधियों को नुकसान
– आगामी छह माह के दौरान 15 महानगरपालिकाओें, 210 नगर परिषदों व नगर पंचायतों, 25 जिला परिषदों, 284 पंचायत समितियोें के चुनाव होने है.
– राज्य की कुल 28 हजार 563 स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं में लगभग सवा 2 लाख जनप्रतिनिधि है. जिनमें से ओबीसी आरक्षण के जरिये करीब 50 हजार जनप्रतिनिधि चुने जाते है. यदि ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव होते है, तो इसका खामियाजा इन जनप्रतिनिधियों को उठाना पड सकता है.
– ऐसा होने पर राज्य की महाविकास आघाडी सरकार को राज्य में 40 फीसद ओबीसी समाज की नाराजगी का सामना करना पड सकता है. जिसका फायदा भाजपा राज्य के प्रमुख विपक्षी दल भाजपा द्वारा उठाकर राज्य सरकार को अस्थिर करने का प्रयास किया जा सकता है.