किताबों को जीवनावश्यक वस्तु घोषित करने की मांग
महाराष्ट्र को रोजाना मिल रहे २२ हजार रेमडेसिविर इंजेक्शन
मुंबई/दि.२७ – किताबों को जीवनावश्यक वस्तु घोषित किए जाने की मांग को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई है. याचिका में दावा किया गया है कि जैसे जीवन के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही विचारों के लिए किताबरूपी भोजन आवश्यक है. इसलिए राज्य सरकार से परामर्श कर किताबों को आवश्यक वस्तु घोषित किया जाए.
मराठी प्रकाशक परिषद की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि कोरोना के चलते लोग घरों में कैद है. ऐसे में यदि लोगों को सहजता से किताबें उपलब्ध हो तो न सिर्फ उनकी चिंताए व बोरियत दूर होगी बल्कि तनाव भी कम होगा. इसके अलावा कोरोना काल में प्रकाशको का काफी आर्थिक नुकसान हुआ है. इसलिए भी किताबों को आवश्यक वस्तु घोषित किया जाए.यह सबके हित में है. याचिका के मुताबिक जीवनावश्यक अधिनियम में आवश्यक वस्तु की कोई तय परिभाषा नहीं दी गई है. इसलिए जरूरी है कि किताबों को भोजन की तरह आवश्यक सामग्री की सूची में शामिल किया जाए. क्योंकि किताबे विचारों का भोजन है. जैसे जीने के लिए भोजन आवश्यक है. वैसे विचारों के भोजन के लिए किताबें जरूरी है. इसलिए इस दिशा में सरकार को ठोस कदम उठाने के निर्देश दिया जाए. लॉकडाउन के चलते इस वक्त सिर्फ दवाईयों व खाद्य सामग्री की दुकाने खोलने की अनुमति है.
केन्द्र से वादे के मुताबिक नहीं हो रही आपूर्ति
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एफडीए मंत्री शिंगणे का आरोप
केन्द्र सरकार आवंटन के अनुपात में महाराष्ट्र को रेमडेसिविर इंजेक्शन की आपूर्ति नहीं कर रही है. यह आरोप प्रदेश के अन्न व औषधि प्रशासन एफडीए मंत्री राजेन्द्र शिंगणे ने लगाया है. सोमवार को मंत्रालय में शिंगणे ने कहा कि राज्य में प्रतिदिन लगभग २२ हजार रेमडेसिविर इंजेक्शन की आपूर्ति हो रही है. उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार ने २१ से २० अप्रैल तक महाराष्ट्र को ४ लाख ३५ हजार रेमडेसिविर इंजेक्शन देने का आदेश जारी किया था . लेकिन इस आदेश के अनुसार राज्य को रेमडेसिविर इंजेक्शन की आपूर्ति नहीं हो रही है. शिंगणे ने कहा कि राज्य में ६ लाख ५८ हजार कोरोना के सक्रिय मरीज है. कोरोना के मरीजों की संख्या को देखते हुए प्रतिदिन ७० हजार रेमडेसिविर इंजेक्शन की जरूरत है. उन्होंने कहा कि रेमडेसिविर की कालाबाजारी करनेवालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू है. राज्य सरकार ने उद्योगों को १००प्रतिशत चिकित्सा इस्तेमाल के लिए ऑक्सीजन बनाने को कहा है लेकिन उद्योग चिकित्सा उपयोगी ऑक्सीजन नहीं बना रहे है. इसलिए जिलाधिकारियों के जरिए उद्योगों को एक बार फिर से निर्देश दिए गये है.