मुंबई/दि.२६ – वेश्या व्यवसाय करना यह कानूनन अपराध नहीं है. सज्ञान महिलाओं को उनकी पसंद के अनुसार व्यवसाय करने का अधिकार हैं. इसलिए उनकी मर्जी के खिलाफ उन्हें पकडकर नहीं रखा जा सकता, ऐसा कहते हुए उच्च न्यायालय ने महिला सुधारगृह में रखी तीन नगर वधुओं को छोडने के आदेश पुलिस को दिये हैं.
इममॉरल ट्रैफिक (प्रोवेंशन) एक्ट (पीटा) १९५६ कानून का हेतू वेश्या व्यवसाय रद्द करने का नहीं है. कानून में ऐसा कोई नियोजन नहीं है कि जो वेश्या व्यवसाय को फौजदारी अपराध साबित करता हो या उस व्यवसाय में रहने वाले व्यक्ति को सजा दे, ऐसा न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा. व्यवसायिक हेतू से किसी व्यक्ति का शोषण करना या उसका गैर उपयोग करना और सार्वजनिक जगह पर किसी पुरुष से संपर्क साधना कानूनन सजा के पात्र है, ऐसा अदालत ने स्पष्ट करते हुए तीन नगर वधुओं को आझाद कराया.
सितंबर २०१९ में मुंबई पुलिस के सामाजिक सेवा कक्ष ने मलाड से तीन महिलाओं को वेश्या व्यवसाय से आझाद कराया. उसके बाद दंडाधिकारी न्यायालय में पेश किया गया. अदालत ने तीनों महिलाओं को सुधारगृह में रखने के आदेश दिए और संबंधित अधिकारियों को रिपोर्ट प्रस्तूत करने के निर्देश दिये. १९ अक्तूबर २०१९ को अदालत ने उन तीनों का कब्जा उनके पालक को देने का मना किया और उन्हें उत्तर प्रदेश के महिला सुधारगृह में रखने के आदेश दिये थे. संबंधित महिला जिस समाज की है उस समाज में वेश्या व्यवसाय की काफी पुरानी प्रथा है. वे महिलाएं उत्तर प्रदेश के कानपुर में रहती है, ऐसी रिपोर्ट अधिकारी ने दी. दंडाधिकारी के आदेश दिंडोशी सत्र न्यायालय ने उचित ठहराया. इसपर उन महिलाओं ने उच्च न्यायालय की शरण ली. उच्च न्यायालय ने दोनों आदेश रद्द करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता तो संज्ञान है, इसके कारण उन्हें उनके पसंदीदा जगह रहने और इस देश में कही भी जिने तथा उनके पसंदीदा व्यवसाय का चयन करने का अधिकार हैं. यह अधिकार से राज्य संविधान ने बहाल किया है.