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शौचालय घोटाले की विधान भवन में गूंज

विधायक दानवे ने लाया ध्यानाकर्षण प्रस्ताव

* नगर विकास मंत्री शिंदे से मांगा जवाब
मुंबई/दि.15– अमरावती महानगरपालिका में वर्ष 2015 से 2019 की कालावधि के दौरान घटित हुए शौचालय घोटाले की गूंज आज राज्य विधानसभा में भी सुनाई दी, जब भोकरधन के विधायक संतोष दानवे ने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पेश करते हुए नगर विकास मंत्री एकनाथ शिंदे से सवाल-जवाब किया.
इस विषय को लेकर पेश किये गये अपने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव में विधायक दानवे ने जानना चाहा कि, क्या अमरावती महानगरपालिका में वर्ष 2015 से 2019 के दौरान 1 हजार 372 शौचालयों का निर्माण न करते हुए करीब 2 करोड 49 लाख 22 हजार रूपयों की आर्थिक गडबडी हुई है और क्या इस मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा को सौंपी गई है. साथ ही इस मामले में ठेकेदारों को दिये गये धनादेशों पर जिस उपायुक्त के हस्ताक्षर है, क्या उसी उपायुक्त के पास मामले की जांच का जिम्मा सौंपा गया है. इसके अलावा संबंधित मामले के दस्तावेजों पर अपने हस्ताक्षर रहने की बात से इन्कार करनेवाले अधिकारियों के हस्ताक्षरों के सैम्पल नागपुर स्थित फॉरेन्सीक लैब में भेजे जाने के बावजूद दो-तीन वर्ष की कालावधी बीत जाने पर भी इससे संबंधित रिपोर्ट अब तक प्राप्त क्यों नहीं हुई और यदि यह रिपोर्ट प्राप्त हो चुकी है, तो अब तक इस घोटाले में शामिल ठेकेदारों व संबंधित अधिकारियों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई.
विधायक दानवे द्वारा प्रस्तुत किये गये प्रस्ताव पर जवाब देते हुए नगर विकास मंत्री एकनाथ शिंदे ने स्वीकार किया कि, अमरावती मनपा में वर्ष 2015 से वर्ष 2019 के दौरान शौचालय घोटाला घटित हुआ था और इस दौरान 1 हजार 372 लाभार्थियों को 2 करोड 33 लाख 24 हजार रूपये की रकम का अति प्रदान भी हुआ. यह मामला ध्यान में आने पर 24 अगस्त 2020 को आर्थिक अपराध शाखा के पास मामले की जांच सौंपी गई, किंतु यह सही नहीं है कि, जिस उपायुक्त के हस्ताक्षर से देयक जारी हुए, उसी उपायुक्त को मामले की जांच भी सौंपी गई है. क्योंकि इस मामले के देयक स्वच्छता विभाग से संबंधित रहने के चलते इन्हें अंतिम मंजूरी उपायुक्त (सामान्य) द्वारा दी गई थी. वही मामले की जांच हेतु उपायुक्त (प्रशासन) की अध्यक्षता में 29 जून 2020 को तीन सदस्यीय समिती गठित की गई थी. इसके अलावा आर्थिक अपराध शाखा द्वारा मामले से संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों के हस्ताक्षर के सैम्पलों को नागपुर की फॉरेन्सीक लैब में जांच हेतु भिजवाया गया था. जिसकी रिपोर्ट प्राप्त करने हेतु खुद मनपा द्वारा आर्थिक अपराध शाखा से निवेदन किया था. किंतु इस रिपोर्ट को पुलिस द्वारा सरकारी दस्तावेज परीक्षक के पास प्रस्तुत किया है. जहां से अभी अंतिम रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है, बल्कि यह कहा गया है कि, चूंकि यह मामला इस समय अदालत के समक्ष विचाराधीन है. अत: इस मामले की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता. इसके साथ ही संबंधित ठेकेदारों तथा कर्मचारियों के खिलाफ आर्थिक अपराध शाखा के जरिये अपराध दर्ज किया गया है और उनसे घोटाले की रकम वसूल की जाये, इस हेतु न्यायालय में विशेष दिवाणी दावा दाखिल किया गया है. साथ ही महाराष्ट्र नागरी सेवा (अनुशासन व अपील) नियम 1979 की धारा 8 के तहत तीन अधिकारियों व कर्मचारियों की विभागीय जांच शुरू की गई है और मुख्य लेखा परीक्षक के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने का प्रस्ताव सक्षम प्राधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया गया है. जिसके अनुसार न्यायालयीन निर्णय के मद्देनजर कार्रवाई की जा रही है. ऐसे में इस मामले में विलंब होने का कोई सवाल ही नहीं उठता.

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