‘उधारी’ पर जमा होगा इम्पिरिकल डेटा
कल राज्य पिछडावर्गीय आयोग की बैठक में निर्णय होने के संकेत
नागपुर/दि.12– विगत जून माह में नियुक्त किये गये राज्य पिछडावर्गीय आयोग को कार्यालय के लिए सरकार ने जगह तक उपलब्ध नहीं करायी और 435 करोड रूपये देने की घोषणा करने के बाद केवल 5 करोड रूपये ही दिये. साथ ही मुलभूत सुविधाओं पर यह निधी खर्च करने पर प्रतिबंध भी लगा दिया. ऐसे में काम करने के लिए जगह ही उपलब्ध नहीं रहने की वजह से यह निधी भी जस की तस पडी हुई है. ऐसे में विगत छह माह से केवल लापरवाही व लेटलतीफी होने के चलते अब सरकारी निधी का इंतजार करने की बजाय राज्य सरकार की व्यवस्था के जरिये ओबीसी समाज का इम्पिरिकल डेटा संकलित किया जायेगा और सरकार से निधी मिलने के बाद संबंधित प्रशासन को उनके काम का मुआवजा दिया जायेगा. कुछ इस तरह का निर्णय राज्य पिछडावर्गीय आयोग की कल गुरूवार 13 जनवरी को पुणे में होनेवाली बैठक में लिया जा सकता है. ऐसी जानकारी विश्वसनीय सुत्रोें द्वारा दी गई है.
बता दें कि, जनवरी 2022 में राज्य पिछडावर्गीय आयोग का कार्यकाल समाप्त हो गया. जिसके बाद डेढ वर्ष पश्चात महाविकास आघाडी सरकार ने आयोग के अध्यक्ष पद पर सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति आनंद निरगुडे की नियुक्ति की. पश्चात 15 जून को अन्य 9 सदस्यों को नियुक्त किया गया. साथ ही ओबीसी समाज को राजनीतिक आरक्षण वापिस दिलाने हेतु 29 जून को इम्पिरिकल डेटा संकलित करने की जवाबदारी इस आयोग को दी गई. जिसके बाद 10 अगस्त के आसपास आयोग ने डेटा संकलित करने हेतु आवश्यक खर्च, निधी व कर्मचारी से संबंधित प्रस्ताव सरकार के समक्ष पेश किया. किंतु पांच-छह माह बीत जाने के बाद भी राज्य सरकार द्वारा आयोग को निधी उपलब्ध नहीं करायी गयी. जिसे लेकर आवाज उठाये जाने के बाद मात्र 5 करोड रूपये उपलब्ध कराये गये. इसमें से ठेका नियुक्त 15 कर्मचारियों पर 50 लाख रूपये तथा मुलभूत सुविधाओं पर शेष साढे 4 लाख रूपये खर्च करने है. किंतु सबसे बडा सवाल यह है कि, जब राज्य सरकार द्वारा आयोग को कामकाज हेतु कार्यालय ही उपलब्ध नहीं कराया गया, तो मुलभूत सुविधाएं कहां उपलब्ध करायी जाये.
बता दें कि, इस आयोग का कार्यालय पुणे में स्थापित किया जाना है. इसके लिए प्रारंभ में दो-तीन जगह देखकर राज्य सरकार को प्रस्ताव दिया गया. जिसे मंजुरी नहीं मिलने पर म्हाडा कालोनी व येरवडा परिसर में भी जगह को लेकर सुझाव दिया गया. किंतु अब भी आयोग को जगह उपलब्ध नहीं करायी गई है. वहीं आयोग द्वारा इस काम के लिए राज्य सरकार से 30 कर्मचारी दिये जाने की मांग की गई थी. किंतु सरकार ने केवल आधे यानी 15 कर्मचारी देने की ही तैयारी दर्शायी. आयोग के समक्ष केवल जगह का ही मसला नहीं अटका हुआ है, बल्कि अधिकारियों की भी काफी हद तक किल्लत व दिक्कत है. राज्य पिछडावर्गीय आयोग के सदस्य सचिव दत्तात्रय देशमुख का तीन माह पूर्व ‘सारथी’ में तबादला हो गया और उनके स्थान पर अब तक सचिव स्तर के किसी अन्य अधिकारी की नियुक्ति नहीं हुई है. ऐसे में देशमुख ही इस पद का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे है. इसी तरह संशोधन अधिकारी का महत्वपूर्ण पद भी अब तक रिक्त पडा है. जिसकी वजह से आयोग को संशोधन रिपोर्ट अब तक प्राप्त नहीं हुई है. इसी तरह ठेका कर्मचारियों की नियुक्ति हेतु भी राज्य सरकार द्वारा अब तक मंजुरी नहीं दी गई है. जिसकी वजह से सारा कामकाज ठप्प पडा हुआ है. ऐसे में सबसे बडा सवाल यह है कि, इस स्थिति में तीन माह के भीतर राज्य पिछडावर्गीय आयोग सरकार को इम्पिरिकल डेटा कैसे उपलब्ध करायेगा.
इस संदर्भ में आयोग के सदस्य व सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति चंद्रलाल मेश्राम ने बताया कि, हकीकत में इम्पिरिकल डेटा संकलित करने हेतु आयोग पूरी तरह से सक्षम है और सटीक डेटा देने हेतु तमाम आवश्यक नियोजन भी किया जा चुका है. किंतु आयोग के पास न तो आवश्यक निधी उपलब्ध है और न ही काम करने के लिए जगह या कर्मचारी ही उपलब्ध कराये गये है. ऐसे में काम कैसे शुरू अथवा पूरा किया जाये, यह अपने आप में सबसे बडी समस्या है. किंतु इस ओर सरकार द्वारा ध्यान ही नहीं दिया जा रहा. ऐसे में अब आयोग को सरकारी महकमों का सहारा लेते हुए डेटा संकलन का काम शुरू करना होगा और जब सरकार से इस काम के लिए निधी उपलब्ध हो जायेगी, तब सरकारी महकमों को उनके कामों का मुआवजा भी अदा किया जायेगा. यानी कुल मिलाकर अब राज्य पिछडावर्गीय आयोग द्वारा उधारी के तत्व पर इम्पिरिकल डेटा संकलित करने का काम किया जायेगा.