महाराष्ट्र

आदिवासियों का रहन सहन ही बाल मृत्यु का कारण है

राज्य सरकार की उच्च न्यायालय में जानकारी

मुंबई/दि.२१ – मेलघाट व अन्य आदिवासी भागों में होेने वाली एक भी मृत्यु का राज्य सरकार या कोई भी कभी समर्थन नहीं कर सकता. आदिवासी भागों में कुपोषण या वैद्यकीय उपचार के अभाव में एक भी मृत्यु न हो, इसके लिए राज्य सरकार प्रयत्नशील है. लेकिन इन भागों की बालमृत्यु के लिए आदिवासियों का रहनसहन, उनका चालचलन, भ्रामक कल्पना कारणीभूत है. इन भागों में कम उम्र में ही बच्चों का विवाह होता है और कमजोर होने पर भी लड़कियों को एक से अधिक बच्चे होते हैं. बावजूद इसके बीमार होने के बाद पहले डॉक्टर के पास जाने की बजाय लोग तांत्रिक-मांत्रिक के पास जाना पसंद करते है. यह बात राज्य सरकार की ओर से राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने सोमवार को मुंबई उच्च न्यायालय के ध्यान में लायी.
आदिवासियों को डॉक्टर के पास ही उपचार करवाना चाहिए, इस दृष्टि से अभिनव कल्पना के रुप में तांत्रिक-मांत्रिकों को प्रत्येक मरीज से 200 रुपए देने का निश्चय किये जाने की बात कुंभकोणी ने न्यायालय को बताई. कुपोषण व बालमृत्यु के बारे में बंडू साने व अन्य लोगों व्दारा की गई जनहित याचिका की गंभीर दखल लेकर इस प्रश्न की फिलहाल मुख्य न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता न्या. गिरीश कुलकर्णी की खंडपीठ व्दारा देखरेख की जा रही है. न्यायालय के गत निर्देशानुसार बंडू साने से सरकारी विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने चर्चा कर तुरंत के व दीर्घकालीन उपाय लिये है. जिसके अनुसार बालरोग तज्ञ व स्त्रीरोग तज्ञ नियुक्त किये गए है. बावजूद इसके सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग ने राज्य की सेवा में 1500 डॉक्टरों को लिया है. आदिवासी भागों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व रुग्णालयों में कही भी डॉक्टरों के पद रिक्त होने पर वह पद हमेशा के लिए भरे जाने तक नये डॉक्टरों को प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाएगा. राज्य व केंद्र सरकार की योजना अंतर्गत विविध उपाय किए जा रहे हैं, यह जानकारी कुंभकोणी ने दी.

  • और बालमृत्यु रोकने पर जोर दें

कुपोषण व बालमृत्यु की समस्या पर उच्च न्यायालय के नागपुर खंडपीठ की ओर से 1993 में पहले आदेश हुआ. उसके बाद भी अनेक आदेश हुए और तज्ञ व अभ्यासकों की ओर से मात्र 10 रिपोर्ट प्रस्तुत हुई. उच्च न्यायालय के अनेक न्यायमूर्तियों ने राज्यपाल के साथ ही अनेक मुख्यमंत्रियों ने भी आदिवासी भागों में भेंट दी. फिर भी बालमृत्यु की समस्या कायम है. आदिवासी भागों में डॉक्टर अधिक नहीं होते और नियुक्त किए जाने पर वे टिकते नहीं. इस बात को बंडू साने ने ध्यान में लाया. वहीं चिखलदरा क्षेत्र में विगत कुछ दिनों में सात बालकों की मृत्यु हो गई. ऐसा बताते हुए ही सरकारी उपाय कागजों पर रहने की बात एड. गिल्डा ने सामने लायी.

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