आंदोलनजीवी शब्द के इस्तेमाल को बताया स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान
संजय राउत का पीएम पर साधा निशाना
मुंबई/दि.१४– शिवसेना सांसद संजय राउत ने शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक लेख के जरिए पीएम मोदी पर निशाना साधा है. सामना के रोकटोक कॉलम में राउत ने पीएम मोदी के आंदोलनजीवी शब्द के इस्तेमाल पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने देश में आंदोलन का तमाशा बना दिया है. वह देश में विरोध-प्रदर्शन चाहते ही नहीं हैं, वो चुप कराया गया लोकतंत्र चाहते हैं. इमरजेंसी से लेकर अयोध्या आंदोलन तक, महंगाई से लेकर अनुच्छेद 370 हटाने तक बीजेपी ने आंदोलन किया था. पीएम मोदी ने प्रदर्शनकारियों को आंदोलनजीवी कहकर स्वतंत्रता सेनानियों का मजाक उड़ाया है. महात्मा गांधी और भीमराव अंबेडकर सबसे बड़े आंदोलनजीवी थे.
संजय राउत ने किसान आंदोलन की तुलना गोधरा कांड से की. उन्होंने कहा दिल्ली की सीमा पर हो रहा किसान आंदोलन शांत और नरम है.उन्होंने कहा कि आज पीएम मोदी और अमित शाह आंदोलन का मजाक उड़ा रहे हैं लेकिन साबरमती एक्सप्रेस में आगजनी के बाद यही लोग हिंदुओं के मसीहा बने थे. पीएम मोदी के परिप्रेक्ष्य से गोधरा कांड त्वरित था. लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे त्वरित नहीं बताया था. इसी गोधरा कांड के चलते पीएम मोदी और अमित शाह दिल्ली की गद्दी तक पहुंचे. उस घटना की तुलना में किसान आंदोलन काफी शांत और नरम है.
संजय राउत ने लिखा है कि किसानों के आंदोलन की अवहेलना की जा रही है क्योंकि ये बाजारवाद और पूंजीवादियों के खिलाफ है. आप इतिहास उठाकर देख लीजिए किसान स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल हुए थे. साराबंदी और बारडोली सत्याग्रह में किसान भी शामिल थे और इस आंदोलन का नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल कर रहे थे. सिर्फ पटेल की प्रतिमा स्थापित करने से क्या होगा?
राउत ने राम मनोहर लोहिया के विचारों को याद करते हुए लिखा है कि लोहिया जी ने कहा था कि जिस दिन ये सड़कें शांत हो गईं देश की संसद आवारा हो जाएगी. आज उनका यह कथन सही साबित होता नजर आ रहा है क्योंकि मोदी सरकार लोगों को सड़क पर प्रदर्शन करने देना ही नहीं चाहती है. वह प्रदर्शनकारियों को आंदोलनजीवी कह रहे हैं. यह सिर्फ किसानों का ही अपमान नहीं है बल्कि देश के लोकतंत्र की रक्षा के लिए किए गए आंदोलन में शामिल लोगों का भी अपमान है.
राउत ने लिखा, दिल्ली में निर्भया मामले के बाद बीजेपी सड़क से लेकर संसद तक प्रदर्शन कर रही थी लेकिन अब अगर कोई निर्भीक होकर आवाज उठाता है तो चुप करा दिया जाता है. हाथरस की घटना इसका उदाहरण है. अयोध्या में राम मंदिर सैकड़ों कारसेवकों के बलिदान के बाद बन रहा है तो क्या हम इन शहीदों के लिए भी कहें कि इनके पीछे विदेशी ताकतें थीं और ये सभी आंदोलनजीवी थे?