गर्भपात कराने के निर्णय की स्वतंत्रता महिला को ही
उच्च न्यायालय ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला
मुंबई दि.24 – कायम तौर पर गर्भधारण रखना है, या नहीं, यह निर्णय लेने की स्वतंत्रता केवल महिला को ही है. स्वास्थ्य अधिकारियों को वह अधिकार नहीं है और न्यायालय उसका अधिकार रद्द नहीं कर सकता. ऐसा कहते हुए उच्च न्यायालय ने 33 सप्ताह की विवाहित गर्भवती महिला को गर्भपात कराने की अनुमति दी.
न्यायमूर्ति गौतम पटेल व न्यायमूर्ति एस.जी. डिगे की खंडपीठ ने 20 जनवरी को यह फैसला सुनाया. परंतु आदेश की प्रतिलिपी सोमवार को प्राप्त हुई. गर्भपात कई व्यंग हो, तो भी महिला की प्रसूति का समय करीब होने के कारण उसे गर्भपात की अनुमति नहीं दे सकते. ऐसा स्वास्थ्य अधिकारियों ने रिपोर्ट के द्बारा व्यक्त किया. संबंधित महिला ने सोनोग्राफी कराने के बाद गर्भपात में कई व्यंग होने की बात उजागर हुई. बालक का जन्म हुआ तो उसके शरीर में कई व्यंग और मानसिक रुप से असक्षम रहेगा, ऐसा सोनोग्राफी से पता चलने पर गर्भपात कराने की अनुमति महिला ने उच्च न्यायालय से मांगते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था. इस पर अदालत ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया.