मुंबई/ दि.२१ – मुंबई उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कक्षा 10वीं की परीक्षा को रद्द करने के मुद्दे पर राज्य सरकार को फटकार लगाई. उच्च न्यायालय ने कहा कि मानो राज्य सरकार शिक्षा प्रणाली का मजाक बना रही हैं. यदि सरकार बगैर परीक्षा के विद्यार्थियों को कक्षा 10वीं से प्रमोट करने के बारे में सोच रही है तो भगवान ही राज्य की शिक्षा प्रणाली को बचा सकती है.
न्यायाधीश एस.जे.काथावाला व न्यायाधीश एस.पी.तावडे की खंडपीठ ने इस संदर्भ में राज्य सरकार से जवाब मांगा है कि 10वीं परीक्षा रद्द करने के सरकार के फैसल को रद्द क्यों नहीं किया जा सकता. यह बात खंडपीठ ने पुणे निवासी धनंजय कुलकर्णी की ओर से दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कही. सरकार ने बीते माह कोरोना के बढते संक्रमण के चलते कक्षा 10वीं की परीक्षा रद्द करने का निर्णय लिया था. इस निर्णय के खिलाफ न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर चुनौती दी गई है. इसके पहले सरकारी वकील पी.बी.काकडे ने कहा था कि विद्यार्थियों के अंक के मूल्यांकन का फॉर्मूला तय नहीं किया गया है. दो सप्ताह में इस संदर्भ में निर्णय लिया जाएगा. इस पर खंडपीठ ने कहा कि आप (सरकार) शिक्षा प्रणाली का मजाक बना रहे हैं. अगर सरकार बगैर परीक्षा लिये ही विद्यार्थियों को पास करने के बारे में सोच रही है तो भगवान ही राज्य की शिक्षा प्रणाली को बचा सकती है. खंडपीठ ने कहा कि विद्यार्थी देश व राज्य का भविष्य है. इसलिए उन्हें हर साल बगैर परीक्षा के अगली कक्षा में प्रमोट नहीं किया जा सकता. हम केवल इस बात को लेकर चिंतित है.
-
कोरोना के नाम पर विद्यार्थियों का भविष्य बर्बाद नहीं कर सकते
खंडपीठ ने कहा कि कक्षा 10वीं का वर्ष बेहद महत्वपूर्ण होता है. क्योंकि कक्षा 10वीं यह स्कूली शिक्षा का आखिरी वर्ष होता है. इसी कारण परीक्षा लेना बेहद महत्वपूर्ण होता है. राज्य सरकार कोरोना महामारी के नाम पर विद्यार्थियों का करियर व भविष्य बर्बाद नहीं कर सकती. यह स्वीकारने योग्य नहीं है. खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार शिक्षा प्रणाली नष्ट कर रही है. सरकार ने 10वीं की परीक्षा रद्द क्यों की? 12वीं की परीक्षा क्यों नहीं रद्द की? यह भेदभाव क्यों? ऐसे कडे सवाल खंडपीठ ने उपस्थित किये.