महाराष्ट्र

सहकारी संस्थाओं पर कार्रवाई के सरकार को सर्वाधिकार

सरकारी मदद के बिना चलने वाली संस्थाओं की स्वायत्तता खत्म

मुंबई/दि.29 – किसी भी तरह की सरकारी सहायता के बिना चलने वाली सहकारी संस्था अथवा उसके संचालक मंडल को कार्रवाई से संरक्षण देने वाले कानून की धारा रद्द करने वाला विधेयक विधान मंडल के बजट सत्र में पारित कर दिया गया है. जिसके चलते अब सरकार द्बारा राज्य की किसी भी सहकारी संस्था पर कार्रवाई की जा सकेगी. सभागृह में विपक्ष की अनुपस्थिति के दौरान मंजूर किए गए इस विधेयक का प्रयोग सत्ताधारी दल द्बारा विपक्षी नेताओं के खिलाफ हथियार के तौर पर किया जाएगा. अब ऐसी आलोचना इस विधेयक को लेकर शुरु हो गई है.
राज्य विधान मंडल के हाल ही में संपन्न बजट अधिवेशन के दौरान विपक्ष की गैर हाजिरी का फायदा लेते हुए सरकार ने महाराष्ट्र सहकारी संस्था अधिनियम में सुधार करने वाला विधेयक पारित किया है. जिसमें 97 वे संविधान संशोधन के जरिए सहकारी संस्थाओं को धारा 78 के तहत दी गई अतिरिक्त स्वायत्तता को खारिज किया गया है. सरकार की आर्थिक सहायता व गारंटी के बिना कार्य करने वाली सहकारी संस्था के संचालक मंडल को किसी भी कारण के चलते बर्खास्त करने के निबंधक के अधिकार पर धारा 78 के प्रावधानानुसार प्रतिबंध लगाया गया था. परंतु अब इस धारा को कानून से हटा दिया गया है. जिसके चलते राज्य की किसी भी सहकारी संस्था पर निबंधक यानि एक तरह से राज्य सरकार द्बारा कार्रवाई की जा सकती है.
सरकारी से किसी भी तरह की वित्तीय सहायता नहीं लेने वाली कई पतसंस्थाओं तथा गृहनिर्माण संस्थाओं में बडे पैमाने पर आर्थिक गडबडियां होने की शिकायतें सामने आती रहती है. परंतु कानूनी बंधन रहने के चलते सरकार इसमे कोई हस्तक्षेप नहीं कर पाती थी. ऐसे में इस धारा को ही रद्द कर दिए जाने के चलते ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करते हुए कार्रवाई करने के अधिकार सहकार विभाग के अधिकारियों को मिल गए है. हालांकि इसकी आड लेकर सत्ताधारी दल द्बारा इस अधिकार का दुरुपयोग किए जाने की संभावना भी जताई जा रही है.
इस समय सरकार ने विधान मंडल के अधिवेशन में इस विधेयक को पेश किया, तो विपक्ष द्बारा इसे सहकार के मूल उद्देश्यों के खिलाफ बताया गया था. तब सरकार की ओर से सहकार मंत्री अनिल सावे ने दावा किया था कि, यह विधेयक केवल सहकारी गृहनिर्माण संस्थाओं के लिए है. परंतु अब मंजूर किए गए विधेयक में केवल गृह निर्माण ही नहीं, बल्कि सभी सहकारी संस्थाओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार सरकार को मिल गया है. जिसके तहत आगामी मनपा चुनाव को ध्यान में रखते हुए बडे गृह निर्माण संकूलों पर प्रशासक के जरिए अपनी सत्ता निर्माण कर इसका उपयोग चुनाव में करने का खेल भाजपा द्बारा इस कानून की आड लेकर खेला जा रहा है. ऐसा आरोप कांग्रेस व राकांपा द्बारा लगाया जा रहा है.
विधान मंडल में सभी गुट नेताओं से चर्चा करने के बाद संशोधित विधेयक पेश करने का आश्वासन सरकार द्बारा दिया गया था. परंतु विपक्ष की अनुपस्थिति में सरकार ने इस विधेयक को पारित कर दिया. ऐसे में अब इस कानून का उपयोग विपक्षी दलों के कब्जे में रहने वाली सहकारी संस्थाओं के खिलाफ किए जाने की संभावना काफी अधिक है.
– बालासाहब पाटिल,
पूर्व सहकार मंत्री
* समयावृद्धि का प्रावधान भी रद्द
महाविकास आघाडी सरकार के कार्यकाल दौरान कोरोना व लॉकडाउन के चलते सहकारी संस्थाओं के चुनाव स्थगित कर दिए गए थे. उस समय 37 हजार 848 सहकारी संस्थाएं चुनाव के लिए पात्र थी. इतनी संस्थाओं पर प्रशासक नियुक्त करने हेतु सहकार विभाग के पास अधिकारी उपलब्ध नहीं रहने के चलते सरकार ने सहकार कानून में सुधार करते हुए 5 वर्ष का कार्यकाल पूर्ण कर चुकी संस्थाओं के पदाधिकारियों को अगले चुनाव होने तक काम करने हेतु समयावृद्धि दी थी. परंतु राज्य की नई शिंदे-फडणवीस सरकार ने इस समयावृद्धि को भी रद्द कर दिया.

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