महाराष्ट्र

रिश्वत मामले में हाईकोर्ट ने मुख्याध्यापक की सजा रखी कायम

नागपुर /दि.11– लिविंग प्रमाणपत्र देने के लिए एक हजार रुपए की रिश्वत लेने के प्रकरण में आश्रमशाला के मुख्याध्यापक को सुनाई सजा और जुर्माना मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने कायम रखा है. इस प्रकरण में न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी के सामने सुनवाई हुई. शिक्षा कायम रखे आश्रमशाला के मुख्याध्यापक का नाम मानोरा निवासी भाऊराव राघोजी इंगोले (63) है.
जानकारी के मुताबिक भाऊराव इंगोले वाशिम जिले के वसंतराव नाईक विमुक्त जाति आश्रमशाला में कार्यरत थे. शिकायतकर्ता आक्रोश चव्हाण ने 2001 में उन्हें भतीजी का लिविंग सर्टीफिकेट मांगा था. इसके लिए इंगोले ने एक हजार रुपए की रिश्वत मांगी थी. आक्रोश की भतीजी ने वसंतराव नाईक विमुक्त जाति आश्रमशाला से कक्षा 10 वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की थी. पश्चात उसे ज्युनिअर कालेज में प्रवेश लेने के लिए स्कूल लिविंग सर्टीफिकेट की आवश्यकता थी. उस समय इंगोले शाला में मुख्याध्यापक थे. एक हजार रुपए की रिश्वत मांगने पर 20 जून 2001 को आक्रोश चव्हाण ने अकोला के एसीबी कार्यालय पहुंचकर शिकायत दर्ज करवाई थी. एसीबी के दल ने पश्चात जाल बिछाकर मुख्याध्यापक इंगोले को रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ पकड लिया. पश्चात चार्जशीट अदालत में दाखिल की गई. 31 अगस्त 2005 को वाशिम विशेष सत्र न्यायालय में इंगोले को एसीबी एक्ट के तहत तीन साल कारावास और 5 हजार रुपए जुर्माना और जुर्माना अदा न करने पर तीन माह कारवास तथा धारा 13 (2) (ड), 13 (2) के तहत 5 साल कारवास और 5 हजार रुपए जुर्माना तथा जुर्माना अदा न करने पर 6 माह अतिरिक्त कारवास की सजा सुनाई. सत्र न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ इंगोले ने हाईकोर्ट में अपील की थी. हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड के सबूतो को ध्यान में रखते हुए अपील ठुकरा दी और सत्र न्यायालय के फैसले को कायम रखा. सरकार की तरफ से एड. विनोद ठाकरे ने काम संभाला.

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