महाराष्ट्र

मध्य रेवले की मानवता, 1540 शव पहुंचाए उनके गांव

साढे तीन वर्षो का ब्यौरा

मुंबई दि.18– सडक परिवहन में लगनेवाले खर्च और समय को देखते हुए दूसरे राज्यों के नागरिक अपने रिश्तेदार का पार्थिव ट्रेन से अपने पैतृक गांव ले जाते हैं. मध्य रेलवे ने वर्ष 2020 से अब तक 1540 पार्थिव को अंतिम संस्कार के लिए उनके मूल गांव पहुंचाया है. रेलवे ने इसके लिए पार्सल यातायात से मिलनेवाले 4 करोड 62 लाख रुपए की आमदनी की परवाह नहीं की.
मुंबई अंतर्राष्ट्रीय श्रेणी का महानगर है. देश के कोने-कोने से लोग यहां काम के लिए आते हैं. शहर में अपने नजदीकी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर रिश्तेदारों को मुंबई से असम, दक्षिण भारत, दिल्ली, बिहार, यूपी राज्यों में सडक से पार्थिव ले जाने में काफी समय लगता है. उसी प्रकार खर्च भी दोगुना, चौगुना हो जाता है. इसलिए पार्थिव एक्सप्रेस, मेल से मूल गांव ले जाने के लिए रेलवे के पास पूछताछ होती है. मध्य रेलवे ने पिछले वर्ष 731 पार्थिव का यातायात किया.
पार्थिव मेल अथवा एक्सप्रेस ट्रेन के एसएलआर कोच से ले जाया जाता है. प्रत्येक ट्रेन को दो पार्सल एसएलआर कोच जुडे होते है. इस कोच की क्षमता 4 टन पार्सल ले जाने की होती है. रिश्तेदारों व्दारा पार्थिव ले जाने की विनती किए जाने पर एक एसएलआर कोच खाली रखा जाता है और उसमें पार्थिव ले जाया जाता है.
* केवल डेढ हजार रुपए
रेलवे बहुत ही किफायती शुल्क में पार्थिव ले जाती है. मुंबई से उत्तर या दक्षिण भारत के लिए हजार से डेढ हजार रुपए लिए जात हैं.
* इंसानियत को महत्व
पार्थिव ले जाने के लिए रेलवे ने प्रतिकोच 30 हजार रुपए के हिसाब से 1540 पार्थिव के खातिर 4 करोड 62 लाख के पार्सल यातायात की कमाई छोड दी. मानवता की मिसाल प्रस्तुत की.

 

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