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सत्ता है तो कुछ भी करोगे क्या?

विधायक बच्चू कडू ने सत्तापक्ष को घेरा

* चुनाव में जाति-धर्म व पैसों को बताया हावी
मुंबई/दि.25 – सत्ता पास में है इस वजह से निर्वाचन आयोग का मनमाना प्रयोग करना पूरी तरह से गलत है. इस बार के चुनाव में जाति, धर्म व पैसा इन तीनों बातों का बहुत अधिक प्रयोग हुआ है. इस आशय का प्रयोग करते हुए विधायक बच्चू कडू ने एक बार फिर राज्य की महायुति सरकार को घेरा है. साथ ही उन्होंने पुणे के पोर्शे हादसा मामले में भी अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, अगर घर में पैसा ज्यादा हो गया, तो लोगों में सडक पर मस्ती ज्यादा आती है.
इसके साथ ही इस बार के चुनाव को लेकर बात करते हुए विधायक बच्चू कडू ने कहा कि, लोकतंत्र में लोगों का विश्वास कायम रहे इस हेतु चुनाव करवाये जाते है और चुनाव पूरी तरह से स्पष्ट निस्वार्थ व निष्पक्ष होने चाहिए. लेकिन फिलहाल ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा. जिसकी वजह से लोगबाग खुद ही हालात को अपने हाथ से नियंत्रित करने में जुट जाते है. विधायक कडू के मुताबिक चाहे सत्ता में भाजपा हो या फिर कांग्रेस लेकिन निर्वाचन आयोग का मनमाना प्रयोग करना पूरी तरह से गलत है. विधायक बच्चू कडू के मुताबिक इस बार लोकसभा के चुनाव में किसी ग्रामपंचायत चुनाव की तरह पैसे बांटते हुए रक्तदान करने के मामले भी घटित हुए. जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बेहद घातक है. इसके अलावा चुनावी नतीजों के आकलन को लेकर पूछे गये सवाल पर विधायक कडू ने कहा कि, उन्होंने इसका कोई अध्ययन नहीं किया है. लेकिन अब 4 जून बेहद नजदीक है और 4 जून को सबकुछ स्पष्ट हो जाएंगा.
इसके अलावा पुणे में घटित हादसे को लेकर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए विधायक कडू ने कहा कि, इन दिनों लोगबाग पैसों के आगे इंसानियत को भूल गये है. साथ ही अधिकारियों और नेताओं का भी आम नागरिकों से कोई लेना-देना नहीं है. यदि पैसों के दम पर वोट खींचे जाते है, तो सामान्य व्यक्ति के जीने और उसके मरने का वैसे भी कोई अर्थ नहीं है. साथ ही साथ डोंबिवली स्थित केमिकल फैक्टरी में हुए विस्फोट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए विधायक कडू ने कहा कि, ऐसी घटनाएं लगभग हर साल ही घटित होती है. लेकिन आज तक ऐसी किसी घटना में किसी बडे अधिकारी या उद्योगपति की मृत्यु नहीं हुई, बल्कि ऐसी घटनाओं में अक्सर ही मजदूर, कामगार व कर्मचारी भी मारे जाते है. साथ ही बच्चू कडू ने यह सवाल भी उठाया कि, आखिर केमिकल फैक्टरी के बगल में कर्मचारियों व कामगारों के रिहायशी घरों को अनुमति कैसे मिली.

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