महाराष्ट्र

भ्रष्टाचार मामले में महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख को झटका

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की जांच रिपोर्ट की मांग वाली याचिका

मुंबई/दि.१८- सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुखको उनके खिलाफ सीबीआई जांच की प्राथमिक रिपोर्ट उन्हें दिए जाने का निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया. कोर्ट ने अनिल देशमुख के वकील कपिल सिब्बल को बॉम्बे हाई कोर्ट जाने की छूट दी है. देशमुख के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में कहा कि जांच एजेंसी को प्राथमिक जांच की रिपोर्ट और अन्य कागजातों को जमा करने का निर्देश दिया जाए. इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि कोर्ट को अपना काम करने दें.

देशमुख को एक नवंबर को ईडी ने धन शोधन रोकथाम अधिनियम  के प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया था. 12 घंटे तक चली पूछताछ के बाद उनकी गिरफ्तारी की गई थी. उन्हें दो नवंबर को अदालत में पेश किया गया, जहां उन्हें छह नवंबर तक ईडी की रिमांड पर भेज दिया गया था. इसके बाद जब उन्हें विशेष अदालत के समक्ष पेश किया गया था तो ईडी ने हिरासत अवधि बढ़ाए जाने का अनुरोध किया, लेकिन अदालत ने इससे इनकार कर दिया और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

ईडी ने भ्रष्टाचार और आधिकारिक पद के दुरुपयोग के आरोपों पर 21 अप्रैल को एनसीपी नेता के खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज की गई FIR के बाद देशमुख और उनके साथियों के खिलाफ जांच शुरू की थी. ईडी ने पहले देशमुख के निजी सचिव के तौर पर काम कर रहे अतिरिक्त जिलाधीश पद के अधिकारी संजीव पलांदे और देशमुख के निजी सहायक कुंदन शिंदे को गिरफ्तार किया था.

100 करोड़ रुपए से अधिक की उगाही का आरोप

मुंबई पुलिस आयुक्त के पद से हटाए जाने के बाद, परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखे एक पत्र में आरोप लगाया था कि देशमुख ने (अब बर्खास्त) पुलिस अधिकारी वाजे को शहर के बार और रेस्तरां से एक महीने में 100 करोड़ रुपये से अधिक की उगाही करने के लिए कहा था.

सीबीआई की प्राथमिकी में आरोप है, “प्रारंभिक जांच में प्रथम दृष्टया पता चला कि इस मामले में एक संज्ञेय अपराध बनाया गया है, जिसमें महाराष्ट्र के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख और अज्ञात अन्य लोगों ने अपने सार्वजनिक कर्तव्य के अनुचित और बेईमान प्रदर्शन के जरिये अनुचित लाभ प्राप्त करने का प्रयास किया.”

अधिकारियों ने कहा कि सीबीआई नियमावली के अनुसार, प्रारंभिक जांच (PI) शुरू की जाती है ताकि यह पता लगाया जा सके कि आरोपों में पूर्ण जांच व नियमित मामले में आगे बढ़ने के लिए प्रथम दृष्टया पर्याप्त सामग्री है या नहीं.

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