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विदेशी वृक्षों की वजह से बढ रहा तापमान

देशी प्रजातिवाले वृक्षों को लगाया जाना हैं बेहद जरूरी

पुणे/दि.16- इस समय पूरी दुनिया में विविध कारणों के चलते तापमान में वृध्दि हो रही है. किंतु भारत में अन्य सभी वजहों के साथ-साथ विदेशी प्रजातिवाले वृक्षों की संख्या बढने के चलते दिनोंदिन तापमान में इजाफा हो रहा है. इस आशय का दावा पर्यावरण अभ्यासकों द्वारा किया गया.
पर्यावरण अभ्यासकों के मुताबिक विदेशी प्रजातिवाले वृक्षों के पत्ते ऐन गर्मी के समय झड जाते है. जिसकी वजह से अप्रैल व मई माह के दौरान सूरज की किरणे सीधे जमीन से आकर टकराती है और जमीन की सतह गर्म होकर तापमान वृध्दि होती है.
नेचर फॉरऐवर सोसायटी नामक पर्यावरण के क्षेत्र में कार्यरत स्वयंसेवी संस्था के अध्यक्ष मोहम्मद ईस्माईल दिलावर द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक देशी प्रजातिवाले वृक्षों का पतझड माघ व फाल्गुन (जनवरी-फरवरी) माह के दौरान शिशिर ऋतु यानी ठंडी के मौसम में होता है. उस समय सूर्यप्रकाश कम होने के चलते प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया धिमी हो जाती है और पत्त्तियों में हरितद्रव्य कम होने के चलते पत्ते पीले पड जाते है और जलकर पेड से नीचे गिर जाते है. इसके बाद वसंत ऋतु में देशी प्रजाति के वृक्षों में नई पत्तियां अंकुरित होती है और जैसे-जैसे सूर्यप्रकाश तेज होने लगता है, वैसे-वैसे सभी वृक्ष हरे-भरे हो जाते है. ऐसे में गरमी के मौसम के समय देशी वृक्ष के पत्ते सूर्य की प्रखर किरणों को जमीन पर पहुंचने से रोकती है और जमीन का तापमान नहीं बढता. यानी देशी वृक्षों की वजह से तापमान को संतुलित रखने में सहायता मिलती है. वहीं दूसरी ओर विदेशी प्रजातिवाले वृक्षों का पतझड चैत्र-वैशाख (अप्रैल-मई) माह में वसंत ऋतु यानी ऐन गर्मी के समय होता है और इन वृक्षों के सूखकर ठूंठ हो जाने की वजह से सूरज की तेज व गर्म किरणे सीधे जमीन तक आती है और जमीन की सतह का तापमान गर्म हो जाता है. ऐसे में विदेशी प्रजातिवाले वृक्ष स्थानीय स्तर पर तापमान को नियंत्रित करने के लिहाज से पूरी तरह निरूपयोगी साबित हुए है.
सामाजिक वनीकरण योजना अंतर्गत विगत कई वर्षों से राज्य में वृक्षारोपण अभियान चलाया जा रहा है. किंतु इस अभियान के तहत बडे पैमाने पर विदेशी प्रजातिवाले वृक्षों के पौधे रोपे गये. वन क्षेत्र को हरा-भरा दिखाने के लिए आकेशिया प्रजाति के वृक्षों को बडे पैमाने पर लगाया गया, लेकिन इस प्रजाति के वृक्ष जमीन से बडे पैमाने पर पानी खींचते है और पर्यावरण को हानी भी पहुंचाते है. ऐसा भी कई पर्यावरण संशोेधकों व सलाहकारों का दावा है.

* देश में 40 फीसद वृक्ष संपदा है विदेशी
– नेचर फॉरऐवर संस्था ने दावा किया है कि, देश की कुल वृक्ष संपदा में से 40 फीसद वृक्ष विदेशी प्रजाति के है.
– देश में लगे विदेशी प्रजातिवाले वृक्षों में से 55 फीसद अमरीकी, 10 फीसद अफ्रिकी, 15 फीसद यूरोपियन और 20 फीसद ऑस्ट्रेलियन वृक्ष है.
– देश में लगे रहनेवाले विदेशी वृक्षों के प्रजातियों की संख्या 18 हजार से अधिक है. जिसमें से 25 फीसद प्रजातियां पर्यावरण के लिए काफी हद तक घातक है.
-गुजरात, गोवा, केरल व ईशान्य हिस्सों के राज्यों को छोडकर देश के अन्य सभी राज्यों में विदेशी वृक्षों की संख्या काफी अधिक है.
– पर्यावरण सलाहकार डॉ. विलास जाधव के मुताबिक विदेशी वृक्ष स्थानीय पर्यावरण के लिए हानिकारक रहने की बात साबित हो गई है. ऐसे में वन विभाग ने जनजागृति करते हुए देशी वृक्षों के पौधारोपण को प्रोत्साहित करना चाहिए.

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