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बच्चू कडू सहित निर्दलियों ने दिया आघाडी सरकार को धक्का

संख्याबल बढाने के लिए शिंदे गुट की विदर्भ के विधायकों पर नजर

मुंबई/दि.24- शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे के गुट में राज्य के शालेय शिक्षा मंत्री बच्चु कडू सहित मेलघाट के निर्दलीय विधायक राजकुमार पटेल व भंडारा के निर्दलीय विधायक नरेंद्र भोंडेकर भी शामिल है. यह बात विगत बुधवार को ही स्पष्ट हो गई. इससे पहले बुलडाणा के सेना विधायक संजय रायमूलकर व संजय गायकवाड तथा अकोला जिले के सेना विधायक नितीन देशमुख भी शिंदे गुट में शामिल थे. जिसमें से विधायक नितीन देशमुख मुंबई वापिस पहुंच चुके है और उन्होंने आरोप लगाया है कि, उन्हें शिंदे गुट द्वारा जबरन ले जाया गया था. वहीं यवतमाल के सेना विधायक तथा पूर्व मंत्री संजय राठोड के भी गुवाहाटी जाने की चर्चा थी. परंतू यवतमाल के शिवसेना जिला प्रमुख ने राठोड के मुंबई में रहने की बात कही है. ऐसे में माना जाना रहा है कि, बच्चु कडू सहित निर्दलीय विधायकों ने आघाडी सरकार को अच्छा-खासा धक्का दिया है. साथ ही एकनाथ शिंदे गुट द्वारा संख्याबल बढाते हुए अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए विदर्भ क्षेत्र के विधायकों पर अपनी नजर रखी जा रही है.
बता दें कि, प्रहार जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रहनेवाले राज्यमंत्री बच्चु कडू लगातार चार बार से अचलपुर निर्वाचन क्षेत्र का निर्दलीय विधायक के तौर पर प्रतिनिधित्व कर रहे है, वहीं विधायक राजकुमार पटेल ने मेलघाट निर्वाचन क्षेत्र से प्रहार के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीता. ये दोनों ही निर्दलीय विधायक सोमवार तक एकनाथ शिंदे गुट के साथ नहीं थे, लेकिन दो दिन बाद ये दोनों ही निर्दलीय विधायक गुवाहाटी में एकनाथ शिंदे गुट के साथ दिखाई दिये. जिससे अमरावती जिले की राजनीति में खलबली मच गई. इसके साथ ही यह दावा भी किया जाने लगा कि, विदर्भ क्षेत्र के करीब पांच से अधिक निर्दलीय विधायक इस समय एकनाथ शिंदे के गुट में शामिल है और इस संख्याबल को बढाने के लिए शिंदे गुट द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है.

* सेना पदाधिकारी संभ्रम में
वही दूसरी ओर शिंदे गुट द्वारा की गई बगावत की वजह से महाविकास आघाडी सरकार के साथ-साथ शिवसेना पर भी अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है और शिवसेना इस समय दो-फाड होने की कगार पर है. यदि विधानसभा में शिंदे गुट को ही शिवसेना गुट के तौर पर मान्यता मिलती है, तो शिंदे गुट द्वारा निर्वाचन आयोग के सामने अपने आप को असली शिवसेना निरूपित करते हुए पाटी्र एवं तीरकमान के चुनावी चिन्ह पर अपना दावा पेश किया जायेगा. ऐसे में उध्दव ठाकरे के नेतृत्ववाले गुट के शिवसेना होने पर सवालिया निशान लग जायेगा. ऐसी स्थिति में पार्टी पदाधिकाारियों द्वारा किसके नेतृत्व को माना जायेगा और किसके नेतृत्व को नहीं, यह मुश्किले पैदा होगी. हालांकि संगठनात्मक स्तर पर जुडे अधिकांश पदाधिकारियों द्वारा अब भी मातोश्री बंगले से निकलनेवाले आदेश को अपने लिये अंतिम आदेश मानते हुए सीएम उध्दव ठाकरे को ही अपना नेता बताया जा रहा है, लेकिन आगे चलकर राजनीतिक स्थितियां कौनसा करवट बदलती है, यह फिलहाल तय नहीं है.

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