महाराष्ट्र

भारतीय न्याय संहिता कहती है कि संगठित अपराध में पति- पत्नी को सजा नहीं !

विवादास्पद प्रावधान को हाईकोर्ट में चुनौती

* केन्द्र से मांगा स्पष्टीकरण
नागपुुर/दि.22– संगठित अपराध करनेवालों को जानबूझकर शरण देने से अथवा छिपाकर रखने से उसकी पत्नी अथवा पति को सजा नहीं दी जायेगी. ऐसा विवादास्पद प्रावधान भारतीय न्याय संहिता में किया गया है. इसके खिलाफ नागपुर के भास्कर देवासे ने मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में याचिका दाखिल की है. न्यायालयीन केन्द्र सरकार को नोटिस भेजकर इस पर आगामी 9 अगस्त तक स्पष्टीकरण मांगा हैं.
याचिका पर न्यायमूर्ति विभा कंकणवाडी और न्यायमूर्ति वृषाली जोशी के समक्ष सुनवाई हुई. देश में 1 जुलाई 2024 से भारतीय दंड विधान की जगह भारतीय न्याय संहिता कानून लागू किया गया है. इस कानून के संगठित अपराध की धारा 111 की सहधारा 5 में संगठित अपराध करनेवालों को जानबूझकर शरण देनेवाले अथवा छिपाकर रखनेवाले व्यक्ति के लिए कम से कम 3 साल सश्रम कारावास से उम्रकैद और 5 लाख रूपए व उससे अधिक जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है. साथ ही इस सहधारा में अपराधी की पत्नी अथवा पति को यह प्रावधान लागू नहीं होता, ऐसा दर्ज किया गया है. यह बात अवैध है, ऐसा याचिकाकर्ता का कहना है. याचिकाकर्ता की तरफ से एड. रजनीश व्यास ने पक्ष रखा.

*फौजदारी न्याय प्रणाली के लिए घातक
विवादास्पद प्रावधान फौजदारी न्याय प्रणाली के लिए घातक है. साथ ही फौजदारी कानून के मकसद और समानता के मूलभूत अधिकार का उल्लंघन करनेवाली है, ऐसा दावा याचिकाकर्ता ने किया है. अपराधी की पत्नी अथवा पति का एक दूसरे के प्रति रहा कर्तव्य की बजाय उनका एक नागरिक के रूप में देश के प्रति रहा कर्तव्य श्रेष्ठ है. इस कारण पति रहे अथवा पत्नी, अपराधी को कोई भी सहायता नहीं कर सकता. ऐस भी याचिकाकर्ता ने कहा हैं.

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