कोल्हापुर हिंस/दि.10– संसद व विधान मंडल की तरह ग्राम पंचायतों में भी दल बदल विरोधी कानून लागू करने का विचार राज्य सरकार के स्तर पर शुरू है. जिसके लिये राज्य की आघाडी सरकार में शामिल तीनों दलों में सहमति बन गयी है और इस प्रस्ताव को विधी व न्याय विभाग की ओर भेजा गया है.
उल्लेखनीय है कि, भारतीय लोकतंत्र में ग्रामपंचायतों को राजनीति की पहली सीढी माना जाता है और आज संसद व विधान मंडल में दिखाई देनेवाले चेहरों में से कई लोगों ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत ग्राम पंचायत से ही की थी. जिसकी अपने गांव में सत्ता होती है, उसका उस तहसील क्षेत्र की राजनीति में दबदबा भी होता है. लेकिन तोडफोडवाली राजनीति की वजह से ग्रामपंचायतों में सत्ता का पेंडूलम लगातार इधर से उधर होता रहता है. जिसका सीधा परिणाम विकास कामों पर पडता है. इस बात के मद्देनजर भाजपा सरकार ने सीधे जनता से सरपंच का चयन करवाते हुए निर्वाचन पश्चात ढाई वर्ष तक सरपंच के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा, ऐसा कानून में संशोधन किया था. जिसकी वजह से सरपंचों को बेफिक्र होकर काम करने का अवसर मिला था, लेकिन राज्य में शिवसेना, राकांपा व कांग्रेस की सरकार सत्ता में आते ही सरपंचों के सीधे निर्वाचन के फैसले को बदला गया और पहले की तरह ग्रापं सदस्यों द्वारा ही सरपंचों का चयन किये जाने की व्यवस्था को कायम रखा गया है. हालांकि महाराष्ट्र सरपंच परिषद ने इस पर आक्षेप लिया था. किंतु सरकार की ओर से बताया गया कि, राज्य के 100 से अधिक विधायकों द्वारा सरपंचों के सीधे निर्वाचन का विरोध किया जा रहा है. वहीं अब ग्राम पंचायत स्तर पर पैनल व दल-बदल को प्रतिबंधित करने हेतु कानूनी बातों की पडताल करने एक प्रस्ताव विधी व न्याय विभाग की ओर भेजा गया है. जिससे ग्राम पंचायतोें में स्थिरता आयेगी. साथ ही मौके की राजनीति और राजनीति में मौके देखते हुए ग्रापं सदस्य अब इधर से उधर उछलकूद नहीं कर पायेंगे.