मुंबई/दि. 12 – चीन की साम्राज्यवादी विस्तार की राक्षसी भूख को देखते हुए हिंदुस्तान को थोड़ी भी असावधानी महंगी पड़ सकती है. अरुणाचल प्रदेश से लद्दाख तक चीनी चूहों का सीमा कुतरने का काम शुरू है. चार किलोमीटर तक अंदर आना और फिर चर्चा के बाद दो किलोमीटर तक पीछे जाने की चीन की बदमाशी शुरू है. सेना को पूरी तरह पीछे ले जाए बिना चीन द्वारा सीमा पर शुरू किए गए लड़ाकू विमानों के साथ सैन्य अभ्यास खतरे की पूर्व सूचना है. वैसे तो भारतीय सेना की चीन की हर हरकत पर नजर है, फिर भी धोखेबाज चीन की कपटनीति पर ध्यान बनाए रखें. यह सलाह शिवसेना ने केंद्र सरकार को दी है.
शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के स्तंभ में लिखा गया है कि दोनों देशों के बीच शांतिवार्ता जारी रहने के दौरान और दोनों देशों द्वारा सीमा पर संघर्ष नहीं बढ़ेगा, इसका ध्यान रखने का वचन एक-दूसरे को दिए जाने के बावजूद चीन द्वारा शुरू किया गया युद्धाभ्यास उकसावे वाला ही कहा जाएगा. लद्दाख की गलवान घाटी में चीन द्वारा की गई घुसपैठ के बाद पिछले साल जून महीने में हिंदुस्थान-चीन के सैनिकों के बीच जबरदस्त संघर्ष हुआ. उस घमासान में हिंदुस्तान के 20 जवान शहीद हो गए. चीन के भी कई सैनिक मारे गए. उसके बाद सीमा पर दोनों देशों की सेना करीब आठ महीने तक आमने-सामने डटी रही. संबंध इतना तनावपूर्ण हो गया था कि हिंदुस्तान-चीन के बीच कभी भी युद्ध भड़क उठेगा, ऐसा माहौल तैयार हो गया था. ऐसी विस्फोटक परिस्थितियों में चीन ने शांतिवार्ता शुरू की.
आगे ‘सामना’ के स्तंभ में केंद्र सरकार को चीन की विश्वासघाती नीति से सावधान रहने की सलाह दी गई है. सैन्य अधिकारियों में 11 दौर की चर्चा हुई और चार महीने पहले दोनों देशों के बीच सैनिकों की वापसी का समझौता हुआ. चीन ने अपने क्षेत्र में कई किलोमीटर तक घुसपैठ करके एक विशाल सैन्य अड्डा ही तैयार कर लिया था. लगभग 50 हजार चीनी सैनिकों ने पूर्वी लद्दाख के सीमाई क्षेत्र में घुसपैठ की थी. उसके जवाब में हिंदुस्तान ने भी 50 हजार सैनिकों को तैनात किया था. सैनिकों के इस जमावड़े को पीछे हटाने का निर्णय लिए जाने के बाद ही पैंगोंग झील और लद्दाख के सीमाई क्षेत्र से दोनों देशों के सैनिकों की वापसी शुरू हुई थी. शांतिवार्ता का 12 वां दौर शुरू होने से पहले चीनी सैनिकों की संपूर्ण वापसी अपेक्षित थी, लेकिन इसी बीच चीन ने एक बार फिर टेढ़ी चाल चलते हुए कुछ महत्वपूर्ण जगहों पर अपने सैनिकों को अभी भी पूर्ववत ही रखा है. शिवसेना ने चीन के दोगले व्यवहार से सावधान रहने की चेतावनी देते हुए यह याद दिलाया है कि मई महीने में तो चीन ने एक तरफ कोरोना से लड़ने के लिए हिंदुस्थान के समक्ष मदद देने की पेशकश की और दूसरी तरफ उसी महीने में पूर्वी लद्दाख में एक बार फिर घुसखोरी की. चीनी सैनिक सिर्फ घुसखोरी तक ही नहीं रुके, बल्कि रहने लायक पक्की इमारतें बनाकर एक डिपो भी चीनियों ने वहां बना डाला. इसलिए हिंदुस्थान-चीन सीमा पर एक बार फिर स्थिति तनावपूर्ण हो गई है. अब तो चीन ने जानबूझकर पिछले कुछ दिनों से सीमा पर युद्धाभ्यास शुरू किया है. पूर्वी लद्दाख से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा के वायुक्षेत्र में चीनी वायुसेना के लगभग 24 युद्धक विमानों ने युद्धाभ्यास में हिस्सा लिया. चीनी सैनिकों द्वारा शुरू किया गया युद्धाभ्यास उनकी सीमा में हो रहा है फिर भी वह हिंदुस्तानी सीमा से लगा हुआ है.
ने भी अब अपने क्षेत्र में जोरदार युद्धाभ्यास शुरू किया है. सरहद पर ऐसी तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए एक बार फिर पिछली बार की तरह चिंगारी भड़ककर रक्त रंजित संघर्ष होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है. लद्दाख और तिब्बत सीमा पर दोनों देशों की वायुसेना तैनात है. इसके अलावा पैंगोंग झील परिसर में चीन की ओर से किए गए हमले के बाद अभी तक वहां की सेना को चीन ने बरकरार रखा है.
शिवसेना ने भारतीय सेना पर पूरा भरोसा रखते हुए केंद्र सरकार को भी पल-पल सावधान रहने का आग्रह किया है. सामना में लिखा गया है कि चीन के साम्राज्यवाद की राक्षसी भूख को देखते हुए अब हिंदुस्तान भी उदासीन नहीं रह सकता है. सेना की संपूर्ण वापसी नहीं होने के बावजूद चीन द्वारा युद्धक विमानों के साथ सीमा पर शुरू किया गया युद्धाभ्यास मतलब खतरे की चेतावनी है. हिंदुस्तानी सेना की चीन की हर हरकत पर नजर होगी, फिर भी धोखेबाज चीन की कपट नीति पर भी ध्यान रखना ही होगा!