महाराष्ट्र

‘यह तो राजनीतिक खेल है’

खेलरत्न पुरस्कार का नाम बदलने पर शिवसेना ने मोदी सरकार पर किया हमला

मुंबई /दि.९-राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलने के मुद्दे पर शिवसेना ने केंद्र सरकार पर जम कर हमला किया है. शिवसेना के मुखपत्र सामना  में इसकी आलोचना की गई है. सामना में लिखा गया है, “टोक्यो ओलिंपिक के कारण देश में अन्य खेलों पर उत्साह के साथ चर्चा होने के दौरान नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक में देश को पहला स्वर्ण पदक दिलाया. इस स्वर्णिम पल का उत्सव मनाए जाने के दौरान ही केंद्र सरकार ने राजनीतिक खेल खेला. इस राजनीतिक खेल के कारण कइयों का मन दुखी हुआ है. राजीव गांधी  खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद  खेल रत्न पुरस्कार कर दिया गया है.

आगे सामना में लिखा है, “आज मोदी सरकार ने राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नामकरण मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार के रूप में किया है. इसका अर्थ पहले की सरकारें ध्यानचंद को भूल गई थीं, ऐसा नहीं है.वर्ष 1956 में ध्यानचंद को तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया था. 3दिसंबर, 1979 को इस महान खिलाड़ी की दिल्ली में मौत हो गई. ध्यानचंद का जन्मदिन ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. ध्यानचंद के नाम पर राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्रदान किए जाते हैं. मेजर ध्यानचंद व उनका क्रीड़ा क्षेत्र में योगदान बड़ा ही है. वे एक अच्छे इंसान थे और पंडित नेहरू से उनका घनिष्ठ संबंध था. इसलिए देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देनेवाले राजीव गांधी का नाम मिटाकर वहां मेजर ध्यानचंद का नाम लगाना यह ध्यानचंद का भी बड़ा गौरव है, ऐसा नहीं माना जा सकता है. ”

‘पुरस्कार का नाम बदलना है द्वेष की राजनीति’

सामना में पुरस्कार के नाम बदलने का एक ही मकसद कहा गया है और वो है द्वेष की राजनीति. सामना में लिखा गया है कि मेजर ध्यानचंद को सम्मान देने के लिए एक इससे भी बड़ा पुरस्कार शुरू किया जा सकता था. लेकिन ऐसा नहीं कर एक 1992 से चले आ रहे पुरस्कार का नाम बदल कर राजनीतिक खेल खेला गया है.

‘राजीव गांधी ने हॉकी स्टिक नहीं पकड़ी तो नरेंद्र मोदी ने भी बैट नहीं थामा’

आगे सामना में लिखा है. “अब भाजपा के राजनैतिक खिलाड़ी ऐसा कह रहे हैं कि ‘राजीव गांधी ने कभी हाथ में हॉकी का डंडा पकड़ा था क्या?’ उनका यह सवाल वाजिब है परंतु अहमदाबाद के सरदार पटेल स्टेडियम का नाम बदलकर नरेंद्र मोदी के नाम पर किया तो क्या श्री मोदी ने क्रिकेट में ऐसा कोई कारनामा किया था? अथवा अरुण जेटली के नाम पर दिल्ली के स्टेडियम का नामकरण किया. वहां भी वही मानक लगाया जा सकता है. ऐसे सवाल लोग पूछ रहे हैं। क्रिकेट,
फुटबॉल जैसे खेलों का प्रशासन आज गैर खिलाड़ियों के हाथ में चला गया है, इसे किस बात का लक्षण माना जाए?”

‘हॉकी की सफलता का श्रेय ओडिशा के नवीन बाबू को’

सामना में मोदी सरकार द्वारा ओलिंपिक पदक का उत्सव मनाने और श्नेय लेने पर भी सवाल किया गया है. सामना में लिखा है, “मोदी सरकार आज ओलिंपिक पदक का उत्सव मना रही है. परंतु मोदी सरकार ने विगत कुछ वर्षों में ‘ओलिंपिक’ के बजट में लगभग 300 करोड़ की कटौती कर दी. हिंदुस्तानी महिला-पुरुष हॉकी संघ का प्रायोजन ‘सहारा’ द्वारा छोड़े जाने के बाद से ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने इन दोनों हॉकी संघों का पालकत्व स्वीकार किया. इसलिए ‘हॉकी’ की सफलता का श्रेय जिस तरह से संघ की मेहनत को जाता है, उतना ही ओडिशा के नवीन बाबू का भी है.”

‘जनभावना वगैरह कहने की बात, जनभावना वर्तमान शासक तय करते हैं’

शिवसेना के मुखपत्र में खेलरत्न पुरस्कार का नाम बदलने की वजह जनभावना को बताए जाने पर भी एतराज उठाया गया है. सामना के मुताबिक जनभावना अगर ध्यानचंद के साथ है तो अन्य खिलाड़ियों के साथ भी है. सामना में लिखा है, “पीवी सिंधु ने तो लगातार दूसरी बार ओलिंपिक पदक जीता है. महाराष्ट्र के खाशाबा जाधव का कारनामा भी बड़ा ही था. हेलसिंकी ओलिंपिक में पहला व्यक्तिगत पदक जीतनेवाले वे महान कुश्ती खिलाड़ी थे. ओलिंपिक में अपने पहलवानों ने पदक जीता तो खाशाबा जाधव के नाम पर खेल रत्न पुरस्कार हो, ऐसा सुविचार किसी के मन में क्यों नहीं आना चाहिए? ध्यानचंद हॉकी के जादूगर, उसी तरह खाशाबा कुश्ती के जादूगर थे ही. जनभावना वगैरह कहने के लिए ठीक है पर वर्तमान शासक तय करते हैं, वही जनभावना और उस जनभावना पर भजन और ताल बजाना ही चल रहा है.”

‘राजीव गांधी का अपमान किए बिना भी हो सकता था ध्यानचंद का सम्मान’

सामना में जनभावना के नाम पर पिछले प्रधानमंत्रियों द्वारा किए गए कामों नजरअंदाज किए जाने की भावना की आलोचना की गई है. सामना में लिखा है, “इंदिरा गांधी की आतंकवादियों ने हत्या की. राजीव गांधी को भी आतंकवादी हमले में जान गंवानी पड़ी. इन दोनों के राजनीतिक विचारों से मतभेद हो सकता है. लोकतंत्र में मतभेद के लिए स्थान है परंतु देश की प्रगति में बड़ा योगदान देनेवाले प्रधानमंत्रियों का बलिदान उपहास का विषय नहीं बन सकता है.

आखिर में सामना में लिखा गया है, “राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का ‘मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार’ के रूप में नामकरण करना, यह जनभावना न होकर इसे राजनीतिक ‘खेल’ कहना होगा. राजीव गांधी के बलिदान का अपमान किए बिना भी मेजर ध्यानचंद को सम्मानित किया जा सकता था. हिंदुस्तान ने वह परंपरा और संस्कृति खो दी है. आज ध्यानचंद को भी वैसे खराब ही लग रहा होगा.”

 

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