महाराष्ट्र की लावणी सम्राज्ञी रास्ते पर मांग रही भीख
हनुमान थिएटर में फेमस हुई, तमाशा मालकिन भी बनी
कोतूल (जि. अहमदनगर)/दि.23- एक समय की लावणी सम्राज्ञी.. जिसकी अदाकारी से लालबाग परल का हनुमान थिएटर वन्स मोअर. तालियां, सिटीयों से गूंजा था, जिसकी अदाकारी ने व सौंदर्य ने 40 वर्ष पूर्व अनेक तमाशा रसिकों को घायल किया, वह महाराष्ट्र की लावणी सम्राज्ञी शांताबाई कोपरगांवकर (75) अब रास्तों पर भीख मांग रही हैं.
बसस्थानक उसका घर है. घर देता का घर कहते नटसम्राट की वास्तविकता और दाहकता दर्शा रही है.
शांताबाई अर्जुन लोंढे (कोपरगांव निवासी) यह उनके मायके का नाम है. शांताबाई भटक्या समाज की होने से बचपन से ही तमाशा में नृत्य कार्य करने लगी. गायिका भी बनी. सौंदर्य, आवाज, नृत्य इन तीन बातों पर उन्होंने 40 वर्ष पूर्व रसूल पिंजारी, वडीतकर, भिका-भीमा सांगवीकर, धोंडूृ-कोंडू सिंधीकर, हरिभाऊ अन्वीकर, शंकरराव खिर्डीकर आदि के तमशों में लावणी की धूम मचाई. लालबाग परल का हनुमान थिएटर गूंजाया. न पति, न कोई करीब का, कोंडुराम लोंढे नामक भांजा मजदूरी करता है. वह थोड़ा बहुत ध्यान देता है. शांताबाई को चाहिए हक का घर.
शांताबाई की स्थिति देख अरुण खरात व हेमंत शेजवल ने उन्हें शिर्डी के सुपर स्पेशालिटी हॉस्पिटल में भर्ती कराया है वहां उन पर उपचार जारी है. आज भी अनेक महिला तमाशा कलाकारों के नाम पर तमाशे में हैं, लेकिन चलाने वाले सेठ अलग ही है. युवतियों से जल्द सावधान रहने की सलाह भ उन्होंने इस अवस्था में दी.
कोपरगांव के बसस्थानक के कर्मचारी अत्तारभाई ने शांताबाई कोपरगावकर यह तमाशा निकाला. शांताबाई मालिक बनी. 50-60 लोगों का पेट भरने लगी. यात्रा, मेले में तमाशा प्रसिद्ध हुआ. काफी पैसे मिलने लगे. अशिक्षित शांताबाई के साथ धोखाधड़ी हुई. अत्तार भाई ने संपूर्ण तमाशा बेच डाला. शांताबाई उध्वस्त हो गई. मानसिक बीमारी से ग्रस्त होकर व उद्विग्न अवस्था में भीख मांगने लगी.