अकोला में ‘कमल’ खिला, धोत्रे के घर में पांचवीं बार ‘सांसदी’
भाजपा प्रत्याशी अनूप धोत्रे ने मारी बाजी, कांग्रेस के अभय पाटिल ने दी कडी टक्कर
अकोला/दि.6– अपना सबसे मजबूत गढ रहने वाले अकोला संसदीय क्षेत्र को बचा ले जाने में इस बार भी भाजपा को सफलता मिली. जहां पर 4 बार भाजपा सांसद रहे संजय धोत्रे के बेटे व इस बार भाजपा प्रत्याशी रहने वाले अनूप धोत्रे ने बेहद काटे के मुकाबले में शानदार जीत हासिल की. जिसके चलते अकोला में एक बार फिर ‘कमल’ खिला और इसके साथ ही धोत्रे परिवार के घर में पांचवी बार ‘सांसदी’ बरकरार रही.
बता दें कि, अकोला संसदीय क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी अनूप धोत्रे, कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. अभय पाटिल तथा वंचित बहुजन आघाडी के एड. प्रकाश आंबेडकर के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हुआ. जिसमें से मुख्य मुकाबला भाजपा प्रत्याशी अनूप धोत्रे व कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. अभय पाटिल के बीच हुआ. वहीं एड. प्रकाश आंबेडकर तीसरे स्थान पर रहे. विशेष उल्लेखनीय यह रहा कि, मतगणना के 15 वें राउंड तक कांग्रेस प्रत्याशी अभय पाटिल ने लीड बनाये रखी थी, लेकिन 16 वें राउंड से अनूप धोत्रे ने बढत बनानी शुरु की और इस बढत को अंत तक कायम रखा. जिसके चलते अनूप धोत्रे 40 हजार 626 वोटों से विजयी हुए. इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी अनूप धोत्रे को 4 लाख 57 हजार 30, कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. अभय पाटिल को 4 लाख 16 हजार 404 तथा वंचित आघाडी के मुखिया व प्रत्याशी एड. प्रकाश आंबेडकर को 2 लाख 76 हजार 747 वोट प्राप्त हुए.
विशेष उल्लेखनीय है कि, अकोला संसदीय क्षेत्र में वर्ष 2004 से लगातार 4 बार संजय धोत्रे ने चुनाव जीता. वहीं स्वास्थ्य कारणों के चलते उन्होंने इस बार चुनाव लडने से इंकार किया, तो भाजपा ने उसके बेटे अनूप धोत्रे को अपना प्रत्याशी बनाया तथा अनूप धोत्रे ने अपने पिता की परंपरा को कायम रखते हुए भाजपा को शानदार जीत दिलाई.
* आंबेडकर की दावेदारी से हुआ मविआ को नुकसान
विशेष उल्लेखनीय है कि, अकोला संसदीय क्षेत्र में वंचित बहुजन आघाडी के मुखिया एड. प्रकाश आंबेडकर के समर्थकों की संख्या अच्छी खासी है. लेकिन जब-जब प्रकाश आंबेडकर ने अपने अकेले के दम पर चुनाव लडा, तो उन्हें हार का सामना करना पडा. वहीं ऐसे समय उनकी दावेदारी की वजह से वोटों का विभाजन होकर किसी को फायदा व किसी को नुकसान हुआ. इसके अलावा जब वर्ष 1998 व 1999 के चुनाव में आंबेडकर ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लडा था, तो वे दोनों ही बार चुनकर आये थे. जिसे ध्यान में रखते हुए कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नाना पटोले ने इस बार भी प्रकाश आंबेडकर की ओर दोस्ती का हाथ आगे बढाया था. परंतु आंबेडकर ने हाथ से हाथ मिलाने से इंकार करते हुए अकेले के दम पर चुनाव लडा. जिसके परिणाम स्वरुप वे खुद तो हारे ही. साथ ही साथ कांग्रेस प्रत्याशी को भी हार का सामना करना पडा.
खास बात यह भी है कि, अकोला संसदीय क्षेत्र से प्रकाश आंबेडकर अब तक 12 बार संसदीय चुनाव लड चुके है. जिसमें से उन्हें 10 बार हार का सामना करना पडा. उसके बावजूद भी अकोला जिले की राजनीति में एड. प्रकाश आंबेडकर का अच्छा खासा दबदबा है.
* मतगणना को लेकर रही जबर्दस्त उहापोह वाली स्थिति
अकोला संसदीय क्षेत्र ने कल मतगणना के दौरान अच्छी खासी उहापोह वाली स्थिति भी बनी. क्योंकि 15 रांउड तक कांग्रेसप्रत्याशी डॉ. अभय पाटिल आगे चल रहे थे. जिसके चलते कांग्रेस के पदाधिकारियों व कार्यक्रताओं ने सोशल मीडिया पर डॉ. अभय पाटिल के जीत के मैसेज प्रसारित करने शुरु कर दिये थे. वहीं सोलहवें राउंड के बाद पांसा पलट गया और भाजपा प्रत्याशी अनूप धोत्रे ने बढत बनानी शुरु कर दी, तो धोत्रे समर्थकों व भाजपा पदाधिकारियों ने धोत्रे की जीत के मैसेज शेयर करने शुरु कर दिये. ऐसे में काफी संभ्रमवाली स्थिति बन गई कि, आखिर अकोला संसदीय क्षेत्र में कौन जीत रहा है. वहीं जब अकोला जिला निर्वाचन विभाग के हवाले से तमाम न्यूज चैनलों पर अधिकारिक खबर प्रसारित हुई, तब अनूप धोत्रे के विजयी रहने की बात समझ में आयी.
* क्या हुआ था वर्ष 2019 में?
भाजपा के संजय धोत्रे ने रिकॉर्ड 5 लाख 54 हजार 444 वोट हासिल करते हुए लगभग 3 लाख वोटों की लीड से जीत हासिल की थी.
उस चुनाव में कांग्रेस के हिदायत पटेल को 2 लाख 54 हजार 370 तथा वंचित आघाडी के एड. प्रकाश आंबेडकर को 2 लाख 78 हजार 848 वोट हासिल हुए थे.
* इस बार चुनाव में ऐसी रही स्थिति
कुल प्रत्याशी – 15
कुल मतदाता – 18,90,814
प्रत्यक्ष मतदान – 10,98,373
मतदान का प्रतिशत – 58.09%
अनूप संजय धोत्रे (भाजपा) – 4,70,030
डॉ. अभय पाटिल (कांग्रेस) – 4,16,404
एड. प्रकाश आंबेडकर (वंचित) – 2,75,447
वोटों की लीड – 40,626
* कांग्रेस को हुआ वोट विभाजन से नुकसान
कांग्रेस की ओर से अकोला में किसे प्रत्याशी बनाया जाएगा, इसे लेकर काफी उत्सुकता थी. वहीं डॉ. अभय पाटिल जैसे युवा व सामाजिक पहचान वाले व्यक्ति को उम्मीदवारी दिये जाने के चलते कांग्रेस के सभी कार्यकर्ता पूरी एकजूटता के साथ काम पर भी लग गये. परंतु वोटों में हुए विभाजन तथा एड. प्रकाश आंबेडकर की दावेदारी के चलते कांग्रेस को अकोला में काफी बडा नुकसान उठाना पडा. हालांकि भाजपा में भी काफी हद तक आपसी गुटबाजी रही. लेकिन इसके बावजूद भाजपा के परंपरागत वोटर पार्टी के साथ जुडे रहे. जिसके चलते अनूप धोत्रे की जीत हुई.