महाराष्ट्र

बाइक को एंबुलेंस बना डाला

शोले पिक्चर देखकर काम किया हट कर

मुंबई/दि. 17 –  सड़कों पर हेवी ट्रैफिक…गाड़ी दाएं-बाएं घुमाने के लिए कोई जगह नहीं.ऐसे में पीछे से टूं-टूं कर एंबुलेंस की आवाज़.लेकिन ऐसे में कोई चाहे भी तो रास्ता दे कैसे? ना जाने इस देश में कितने मरीज अस्पताल तक पहुंचने से पहले ही एंबुलेंस में दम तोड़ देते हैं. में से लगभग सभी ने शहर की भीड़-भाड़ में ऐसा नज़ारा देखा है, इस पर कई बार सोचा है, लेकिन एक बंदा ऐसा है जिसने इसका समाधान भी खोजा है. इस शख्स ने शोले मूवी में ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे’ गाना देखकर आइडिया पाया और बाइक एंबुलेंस बनाया.
महाराष्ट्र के पालघर जिले में इस तरह से बने बाइक एंबुलेंस सेवा की शुरुआत की गई है. यह एंबुलेंस स्ट्रेचर, ऑक्सीजन किट, लाइट, फैन, आइसोलेशन केबिन जैसी सुविधाओं से लैस है. इस एंबुलेंस को फर्स्ट रेस्पॉन्डर नाम दिया गया है. और इस एंबुलेंस को डेवलप करने वाले का नाम निरंजन आहेर है. इनकी उम्र 36 साल है और ये अलर्ट सिटिजन फोरम के फाउंडर हैं. यह संस्था कई सालों से पालघर के ग्रामीण इलाकों में हेल्थ, एजुकेशन, एम्प्लॉयमेंट जैसे मुद्दों पर काम कर रही है.

  • समस्या से समाधान तक पहुंचने में ‘शोले’ का आया ध्यान

जब मरीजों की इस समस्या पर फोरम के सदस्यों के बीच विचार चल रहा था तभी एक सदस्य को ‘शोले’ फिल्म में इस्तेमाल की गई बाइक याद आई, जिसमें साइड कार थी. इस बाइक को चलाते हुए अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र ‘ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे’ गाना गाते हुए पर्दे पर आते हैं. बस फिर क्या, यहीं से समस्या का समाधान निकल आया और बाइक एंबुलेंस का आइडिया क्लिक कर गया. अलर्ट सिटिजन फोरम की टीम ने फिर इस पर काम करना शुरू कर दिया. चार से पांच महीने में फर्स्ट रेस्पॉन्डर नाम की इस बाइक को तैयार करने में कामयाबी मिली.

  • ऐसी होती है बाइक एंबुलेंस

इस बाइक एंबुलेंस को बाइक कंटेनर की तरह डेवलप किया गया है. इसमें साइड कार खुलती है. इसके अंदर लाइट, फैन, रेस्क्यू स्ट्रेचर, सलाइन स्टैंड, ऑक्सीजन सिलेंडर रखने की जगह और साथ ही मरीज के रिश्तेदार के बैठने की भी व्यवस्था है. एंबुलेंस में प्रॉपर वेंटिलेशन को ध्यान में रखते हुए चारों ओर खिड़कियां भी बनाई गई हैं. बाइक की मेन बैट्री अगर फेल हो जाए तो एडिशनल बैट्री की भी व्यवस्था है. बाइक के चालक पैरामेडिक वॉलंटियर्स हैं जिन्हें आपातकालीन स्थिति में मरीजों को हैंडल करने की ट्रेनिंग दी गई है.

  • कोरोना मरीजों का सहारा बनी बाइक एंबुलेंस

ऐसी खबरें आए दिन आती हैं कि कोरोना मरीज गांव से शहर तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं उसकी एक वजह एंबुलेंस की व्यवस्था ना हो पाना है. शहर से एंबुलेंस को बुलाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है. एंबुलेंस मिल जाए तो रास्ते इतने खराब होते हैं कि अस्पताल तक पहुंचने में काफी वक्त लग जाता है. ऐसे में कोरोना मरीजों को अस्पताल तक पहुंचाने में इस बाइक एंबुलेंस का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके कंटेनर को अच्छी तरह से आइसोलेट किया गया है. इससे ड्राइवर को PPE किट पहनने की ज़रूरत भी नहीं है. मरीज को अस्पताल छोड़ने के बाद बाइक एंबुलेंस को सैनिटाइज किया जाता है.

  • महाराष्ट्र के पालघर में हो रहा है इस्तेमाल

निरंजन आहेर और इनके फोरम ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने मिलकर फिलहाल पालघर जिला प्रशासन को दो बाइक एंबुलेंस दी हैं. आने वाले कुछ दिनों में और 23 बाइक एंबुलेंस प्रशासन को देने की योजना है. ऐसी एक बाइक एंबुलेंस को तैयार करने में तीन लाख रुपए तक का खर्च आता है. क्योंकि इसे बनाने में मरीजों की हर सुविधा का ध्यान रखा गया है.

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