महाराष्ट्र

पुणे में आए 300 से ज्यादा मामले

इंजेक्शन की कमी ने बढ़ाई चिंता

मुंबई/दि.२१ – देश में कोरोना महामारी के अलावा अब ब्लैक फंगस ने भी मेडिकल क्राइसिस को और बढ़ाने का काम किया है. इस बीमारी का शिकार हो रहे लोगों की संख्या भी बढ़ रही है. मरीज बढ़ने के साथ ही इसकी दवाई कम पड़ने लगी है. ऐसे में केंद्र और राज्य के सामने ब्लैक फंगस यानि म्यूकरमाइकोसिस एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. पहले ही कोरोना की विभीषिका झेल चुके महाराष्ट्र के कुछ शहरों में ब्लैक फंगस के केस बढ़ रहे हैं. महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने बताया है कि वर्तमान में पुणे में ब्लैक फंगस के 300 से अधिक मामले हैं. हालांकि इस संख्या में दूसरे जिलों से आए लोग भी शामिल हैं, लेकिन इलाज के लिए दवाओं की किल्लत हो रही है. मरीजों को देने के लिए पर्याप्त संख्या में इंजेक्शन मौजूद नहीं हैं. उन्होंने बताया कि 300 मरीजों को एक दिन में 1800 इंजेक्शंस की जरूरत होती है, जो इस वक्त उपलब्ध नहीं हैं.
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजित पवार ने बताया कि म्यूकरमाइकोसिस या ब्लैक फंगस के मरीजों को दिन में 6 इंजेक्शन लगने होते हैं. अब हम इस फंगस के इलाज को महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना का हिस्सा बनाने का फैसला ले रहे हैं. इंजेक्शंस की कमी को लेकर उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री ने पीएम मोदी से बात की है और ये मांग की है कि राज्य को जितनी ज़रूरत है, उतने इंजेक्शन दिए जाएं. अजित पवार ने बताया कि उन्होंने उत्पादकों से भी बात की है, लेकिन पता चला कि वे भी स्टॉक पहले केंद्र को देंगे, जहां से राज्यों के लिए दवा का आवंटन होगा.
केंद्र सरकार पर भी ब्लैक फंगस की दवा को लेकर दबाव बढ़ रहा है. ऐसे में सरकार ने हालात से निपटने के लिए देश की 5 फार्मा कंपनियों को इसका उत्पादन करने की मंजूरी दी है, जबकि पुरानी 5 कंपनियों से प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए कहा है. इसके अलावा सरकार दवा को इंपोर्ट भी कर रही है और इस विकल्पों की भी तलाश कर रही है, जो ब्लैक फंगस के इलाज में असरकारी साबित होंगे.

  • ब्लैक फंगस में काम आता है कौन सा इंजेक्शन?

ब्लैक फंगस के मरीजों के लिए जीवनरक्षक साबित हो रहे इंजेक्शन का नाम है एम्फोटेरिसिन दरअसल ये एक एंटी-फंगल इंजेक्शन है, जो शरीर में फंगस की ग्रोथ को रोकने का काम करता है. इस इंजेक्शन से संक्रमण बढ़ने का खतरा खत्म हो जाता है. लेकिन इस इंजेक्शन को मरीज को रोज़ाना देना पड़ता है. 15-20 दिन तक इसकी डोज़ चलती है और ज्यादा इंफेक्शन के दौरान दिन में 6 इंजेक्शन तक की जरूरत पड़ती है. ऐसे में मरीजों के बढ़ने के साथ ही देश में इसकी कमी पड़ती जा रही है.

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