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राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा आया सामने

एनसीईआरटी ने मंगाए आपत्ति व आक्षेप

* संशोधन के बाद प्रारुप होगा अंतिम
* अगले शैक्षणिक सत्र से नई नीति पर अमल
पुणे/दि.11 – राष्ट्रीय शैक्षणिक संशोधन तथा प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने राष्ट्रीय शैक्षणिक नीति के अनुसार शालेय शिक्षा के राष्ट्रीय प्रारुप का मसौदा प्रकाशित किया है. जिसके चलते आगामी समय के दौरान शालेय शिक्षा में अमुलाग्र बदल होने वाले है. शालेय विद्यार्थियों के जीवन में महत्वपूर्ण चरण रहने वाली कक्षा 10 वीं की परीक्षा में कई बदलाव किए गए है. साथ ही कक्षा 12 वीं का पाठ्यक्रम और परीक्षा की पद्धति को बहुविद्याशाखिय शिक्षा के आधार पर तैयार किया गया है. इस प्रारुप को और भी सर्वसमावेशक करने हेतु ‘एनसीईआरटी’ ने शिक्षकों, अभिभावकों, मुख्याध्यापकों तथा अभ्यासकों से आपत्ति, आक्षेप व सुझाव मंगाए है. जिन पर आवश्यक विचार-विमर्श करने के उपरान्त इस मसौदे को अंतिम स्वरुप प्रदान किया जाएगा. साथ ही बहुत संभव है कि, आगामी शैक्षणिक सत्र से ही नई शैक्षणिक नीति पर अमल करना शुुरु कर दिया जाएगा.

* शालेय शिक्षा में स्तर निहाय विभाजन
नये पाठ्यक्रम के प्रारुप अनुसार शालेय शिक्षा का फाउंडेशन, प्री-पेरेटरी, मिडल व सेकंडरी स्टेज के तौर पर विभाजन किया गया है. जिसके तहत फाउंडेशन में पूर्व प्राथमिक से कक्षा दूसरी, प्री-पेरेटरी में कक्षा तीसरी से कक्षा पांचवीं, मिडल में कक्षा छटवीं से कक्षा आठवीं तथा सेकंडरी स्टेज में कक्षा 9 वीं से कक्षा 12 वीं का समावेश करना प्रस्तावित किया गया है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानानुसार चरणबद्ध ढंग से मांग के अनुरुप परीक्षा पद्धति की ओर जाने की बात भी कहीं गई है. शैक्षणिक वर्ष के प्रारंभ में विद्यार्थियों द्बारा पिछले वर्ष पढे गए पाठ्यक्रम का रिवीजन करने हेतु एक माह का ब्रिज कोर्स लिया जाएगा. जिसके पूरा होने के उपरान्त जारी वर्ष के पाठ्यक्रम की पढाई-लिखाई शुरु होगी.

* कैसे तैयार हुआ प्रारुप
नई शिक्षा नीति के चलते देश की शिक्षा व्यवस्था में आमूलाग्र बदलाव होने वाला है. पूर्व प्राथमिक शिक्षा से पदवी तक रचना 5-3-3-4 के अनुसार रहेगी. जिसके अनुसार पाठ्यक्रम तैयार करने हेतु शालेय शैक्षणिक प्रारुप तैयार किया गया है. इसके लिए शिक्षा मंत्रालय ने इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के. कस्तुरी रंगन की अध्यक्षता में 12 विशेषज्ञों की समिति गठित की थी. इस प्रारुप में ज्ञान विषयक दृष्टिकोण को सामने रखते हुए अध्यापन साधन, स्त्रोतों का उपयोग, भाषा शिक्षा का आशय व तत्वज्ञान का आधार आदि को दर्ज किया गया है. प्रारुप का मसौदा तय करने से पहले जिलास्तरीय बैठके हुई. इन बैठकों में संबंधित क्षेत्रों से वास्ता रखने वाले मंत्रियों, जनप्रतिनिधियों, धार्मिक गुटों, विविध संस्थाओं, स्वयंसेवी संगठनों व विद्यापीठों के प्रतिनिधियों का सहभाग था.

* 9 वीं व 10 वीं की परीक्षा पद्धति
इस प्रारुप के अनुसार कक्षा 9 वीं व कक्षा 10 वीं की परीक्षा पद्धति में बदलाव किया गया है. जिसके चलते 9 वीं व 10 वीं के विद्यार्थियों को मानव्यता, गणित व संगणन, व्यावसायिक शिक्षा, शारीरिक शिक्षा, कला शिक्षा, समाजशास्त्र, विज्ञान व आंतरविद्या शाखा आदि शाखाओं में विषय उपलब्ध होंगे. विद्यार्थियों को प्रतिवर्ष 8 के हिसाब से 2 वर्ष में 16 विषय पूरे करते हुए उत्तीर्ण होना होगा. इस समय कक्षा 10 वीं के विद्यार्थियों को कम से कम 5 विषयों में उत्तीर्ण होना पडता है. 9 वीं व 10 वीं के लिए मौजूदा परीक्षा पद्धति को कायम रखना प्रस्तावित किया गया है और इन दोनों परीक्षाओं के लिए फिलहाल सेमिस्टर पद्धति को लागू नहीं किया जाएगा.

* 11 वीं व 12 वीं का इकट्ठा परिणाम
11 वीं व 12 वीं में विद्यार्थियों को मानव्यता, गणित व संगणन, व्यावसायिक शिक्षा, शारीरिक शिक्षा, कला शिक्षा, समाजशास्त्र, विज्ञान तथा आंतरविद्या शाखा इन विद्या शाखाओं में से अपनी पसंद के अनुसार तीन शाखाओं से कुल 16 विषयों का चयन करने की छूट रहेगी. नये प्रारुप के तहत साल में 2 बार सत्र पद्धति से परीक्षा ली जाएगी और दोनों परीक्षाओं का परिणाम एक साथ घोषित किया जाएगा. इसके साथ ही सातत्यपूर्ण मूल्यांकन के आधार पर कक्षा 12 वीं का परिणाम घोषित किया जाएगा. कक्षा 11 वीं व 12 वीं हेतु कला, वाणिज्य व विज्ञान ऐसी तीन शाखाओं की पारंपारिक रचना को खारिज करने की सिफारिश की गई है. मौजूदा परीक्षा पद्धति में कक्षा 11 वीं व 12 वीं की परीक्षा एक बार ही ली जाती है. ऐसे में विद्यार्थी 11 वीं व 12 वीं की पढाई की ओर ध्यान देने की बजाय केवल प्रवेश परीक्षाओं के हिसाब से पढाई करते है.

* शालेय शिक्षा में बदलाव क्यों?
– विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने हेतु
– नाविण्यपूर्ण संशोधन व कल्पकता को प्रोत्साहित करने हेतु
– वक्तृत्व व लेखनशैली में सुधार करने हेतु
– शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को सुदृढ बनाने हेतु
– मानवीय मूल्यों व नैतिकता का विकास करने हेतु
– समस्याओं को हल करने की क्षमता विकसित करने हेतु
– तर्क बुद्धि एवं आकलन क्षमता विकसित करने हेतु
– संवेदनशीलता, कौशल्य व डिजिटल साक्षरता का विकास करने हेतु
– भारतीय पारंपारिक ज्ञान एवं जारी गतिविधियों की जानकारी देने हेतु

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