महाराष्ट्र
ट्रेड यूनियनों की देशव्यापी हड़ताल 26 को
दस केंद्रीय ट्रेड यूनियन, पांच राज्य ट्रेड यूनियन और 35 फेडरेशन शामिल होंगे
नाशिक/दि.२२ – ट्रेड यूनियनों ने गुरुवार (26 नवंबर) को कृषि और श्रम बिल के विरोध में संविधान दिवस पर देशव्यापी हड़ताल करने का ऐलान किया है. सरकार के श्रम संहिता बिल और कृषि बिल पूंजीवादी-उन्मुख हैं और इससे किसानों और श्रमिकों का पलायन होगा. इसमें दस केंद्रीय ट्रेड यूनियन, पांच राज्य ट्रेड यूनियन और 35 फेडरेशन शामिल होंगे.
शहर के सभी ट्रेड यूनियनों के पदाधिकारियों ने सीटू भवन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें हड़ताल के निर्णय की घोषणा की गई. सीटू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. डी एल कराड ने हड़ताल के पीछे की भूमिका बताई.
शहर के सभी ट्रेड यूनियनों के पदाधिकारियों ने सीटू भवन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें हड़ताल के निर्णय की घोषणा की गई. सीटू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. डी एल कराड ने हड़ताल के पीछे की भूमिका बताई.
थम नहीं रहा कृषि बिल का विरोध
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने जल्दबाजी में 3 श्रम विधेयक और कृषि कानून पास किए हैं. लेबर कोड बिल पूरी तरह से मालिकाना है और श्रमिकों की नौकरियों की गारंटी को हटा दिया गया है. कंपनियों को अब एक निश्चित अवधि के लिए श्रमिकों को नियुक्त करने की अनुमति है, जिससे यह संभावना कम हो जाती है कि श्रमिकों को बनाए रखा जाएगा. ट्रेड यूनियन को पंजीकृत करना भी बहुत मुश्किल है, इसलिए नए यूनियन को पंजीकृत करना संभव नहीं है. इसके अलावा, कर्मचारी हड़ताल पर नहीं जा पाएंगे. कृषि बिलों ने किसानों के माल की गारंटी को छीन लिया है और खुले बाजार कीमतों पर नियंत्रण नहीं करने की शर्त लगा दी है. नतीजतन, यह कम कीमत पर कृषि उपज बेचने का समय किसानों पर आ गया है.
कंपनियों को खेत मालिक बनाने का षड्यंत्र
बहुराष्ट्रीय कंपनियों को खेतों का मालिक बनाने की योजना है. उन्होंने कहा कि सरकार की नीतियों का कड़ा विरोध किया जाएगा और पहली बार सभी यूनियनों ने हड़ताल पर जाने का फैसला किया है. इंटक के जयप्रकाश छाजेड़ ने कहा कि मजदूरों और किसानों के हड़ताल पर जाने का समय आ गया है, जिसके लिए ट्रेड यूनियन समय पर विरोध करने के लिए एकजुट हुई हैं. सरकारी कंपनियां देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत रखती हैं. अकेले एलआईसी देश की अर्थव्यवस्था का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा है. सरकार की इन संपत्तियों पर नजर है और उन्हें पूंजीपतियों को सौंपना सरकार की नीति है. भारतीय बीमा कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष मोहन देशपांडे ने कहा कि संघ देश का बीमा करने का विरोध कर रहा था, जो कि दिवालिया होने की कगार पर था. इंडस्ट्रियल वर्कर्स यूनियन के सीताराम ठोंबरे, भारतीय कामगार सेना के उत्तमराव खांडबहाले, जिला परिषद कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष अरुण अहेर, राज्य सरकार कर्मचारी संघ के राज्य उपाध्यक्ष सुनंदा जरांदे ने भी अपनी-अपनी यूनियनों की भूमिका रखी.