महाराष्ट्र

पीडिता के निधन के बाद कोई अन्य मुआवजे की मांग नहीं कर सकता

घरेलू हिंसा कानून हाईकोर्ट ने कहा

मुंबई/दि.11 – पीडित महिला के निधन के बाद उसकी ओर से कोई घरेलू हिंसा कानून के तहत पैसे व मुआवजे की मांग नहीं कर सकता है. पीडित महिला के कानूनी प्रतिनिधि को इस इस तरह की मांग करने का हक नहीं है. बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवचार को अपने एक फैसले में यह बात स्पष्ट की है.
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि घरेलू हिंसा कानून के तहत मुकदमा दायर करते समय पीडिता जीवित होनी चाहिए. पीडिता के नधन के बाद उसकी ओर से कोई और पैसे अथवा मुआवजे की मांग को लेकर आवेदन दायर नहीं कर सकता है. न्यायमूर्ति एस.के. शिंदे ने एक पीडित महिला के निधन के बाद उसकी नाबालिग बेटी की ओर से नानी व्दारा याचिका को खारिज करते हुए बात कही है.
याचिका में बेटी के पिता व दादा-दादी से अपनी मां के गहने व उपचार में खर्च के पैसों की मांग की थी. पुणे के मजिस्ट्रेट कोर्ट से इस मामले में बेटी को नानी के माध्यम से मां की ओर से हाई कोर्ट में आवेदन दायरा किया था.

याचिका में ये

याचिका के मुताबिक पीडित महिला का निधन अक्टूबर 2013 में हुआ था. याचिका में नाबालिग बेटी ने कहा है कि जब उसकी मां बीमार थी तो उसकी उपेक्षा की गई. उसके साथ बदसलूकी की गई जिसकी वजह से वह बीमार पडी. लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया मेरे नाना-नानी ने मेरी मां की देखभाल की. मेरी मां के उपचार में नाना-नानी ने 60 लाख रुपए खर्च किए. मेरी मां के सोने के गहने भी ससुरालवालों ने रख लिए है इसलिए मेरी मां के लाखों रुपए के गहने व उपचार में खर्च की गई राशि को लौटने का निर्देश दिया जाए.

घरेलू हिंसा कानून की धारा 12 में ये

आवेदन पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि घरेलू हिंसा कानून की धारा 12 के तहत सिर्फ पीडिता पैसे व मुआवजे की मांग कर सकती है. यह धारा सिर्फ पीडित वंचित महिला को अधिकार देती है कि वह मुकदमा दायर कर सके. धारा 12 के तहत पीडिता को मिला अधिकार एक निजी अधिकार है जो उसके निधन के साथ खत्म हो जाते है. इस अधिकार का स्थानांतरण नहीं हो सकता है इसलिए पीडिता के निधन के बाद कोई और उसकी ओर से मुकदमा दायर नहीं कर सकता है. पीडिता के कानूनी प्रतिनिधि के पास भी इसका हक नहीं है.

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