हिं.स./ दि.२२
मुंबई– पूरे राज्य में कोरोना तेजी से फैल रहा है. कोरोना से निपटने के लिए राज्य सरकार की ओर से आवश्यक उपाय योजनाएं भी की जा रही है. बावजूद इसके कोरोना का प्रमाण कम होने का नाम नहीं ले रहा है. कोरोना काल में मृत्युदर भी काफ कम देखने को मिल रहा हे. राज्य में लिंग अनुपात के आंकडो पर नजर डाले तो १ लाख १९ हजार ९४० महिला व १ लाख ८९ हजार ६६९ पुरुष मरीजों का समावेश है. जिनमेें से १५८३ महिलाओं और २९०१ पुरुषो की मृत्यु हुई है.
क्या है प्लाजमा थेरेपी?
कोरोना बीमारी से ठीक हो चुके मरीजों के रक्त की पेशियों में कोरोना विरोधी प्रतिकारक शक्ति दर्शाने वाली एंटीबॉडीज का समावेश होता है. यह एंटीबॉडीज कोरोना से लढने के लिए शरीर में रक्त तैयार करने वाले सैनिक होते है. स्वस्थ हो चुके व्यक्ति के शरीर से प्लाजमा बाधित मरीज को दिया जाता है. इसे प्लाजमा थेरपी कहा जाता है. उल्लेखनीय है कि इच्छा होने पर अथवा संशोधन प्रकल्प के हिस्सों के रुप में प्लाजमा दान किया जा सकता है. खून से लाल पेशियां, प्लेटलेट और प्लाजमा अलग किया जाता है. इसके लिए मरीज व दाताओं कर एबीओ व आरएच रक्त गुट समान होना चाहिए. मरीज पूरी तरह से स्वस्थ्य होना चाहिए. रक्त की आयजीजी यानि दीर्घकाल तक बरकरार रहने वाली प्रतिकार शक्ति दर्शाने वाली एंटीबॉडीज का प्रमाण १:१६० होना चाहिए. कोरोना की पृष्ठी आरटी पीसीआर जांच से निर्धारित की जाए.दाताओं की एचआवी, पीलिया बी, पीलिया सी व वीडीआर एल यानि सिफिलीस की जांच निगेटिव होनी चाहिए. पुरुष व गर्भवती नहीं रहने वाली महिलाओं ने ही ही प्लाजमा दान करना चाहिए. इसकी वजह यह है कि बाद में शरीर कुछ एंटीबॉडीज तैयार होकर वह क्लेशदायक साबित हो सकती है. दान करते समय दाता को बुखार नहीं होना चाहिए इतना ही नहीं तो सांस लेने में दिक्कतें न आए, इसके अलावा ऑक्सीजन का स्तर सामान्य रहना चाहिए. एक समय पर २०० से ६०० एमएल प्लाजमा दान किया जा सकता है. एक बार दान करने के बाद दो महिनों के अंतराल में दूसरी बार दान किया जा सकता है. प्लाजमा लक्षण विरहित, सौम्य व मध्यम स्वरुप के कोरोना मरीजों को देना जरुरी नहीं है. प्लाजमा की जरुरत गंभीर स्वरुप के मरीजों को ही होती है.