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मुंबई /दि. 25– इस समय मंत्रियों के पास जिन पीए, पीएस व ओएसडी की नियुक्ति हुई है वे पूरे पांच वर्ष पद पर रहेंगे ही ऐसा नहीं होता, बल्कि यदि उनके विषय में कोई शिकायत मिलती है और शिकायतों में तथ्य भी पाया जाता है तो उन्हें घर पर भी बैठना पडता है. इसके अलावा ‘उधारी’ यानी लोन तत्व पर भी अपने-अपने मंत्रालयों में कई लोगों की भर्ती करनेवाले मंत्रियों पर भी अंकूश लगाए जाने की पूरी संभावना है.
मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों के मुताबिक मंत्रालयों में मंत्रियों के पीए, पीएस व ओएसडी की नियुक्ति के अधिकार मुख्यमंत्री के पास होते है. साथ ही ऐसे अधिकारियों का व्यवहार कैसा है और वे किस तरह का निर्णय लेते है तथा पारदर्शक कामकाज में उनकी क्या भूमिका होती है, इस पर मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा सुक्ष्म नजर रखी जाती है. साथ ही ऐसे अधिकारियों के कामकाज की लगातार समीक्षा की जाती और जो भी अधिकारी किसी भी तरह की गडबड करता पाया जाता है, उसे तुरंत पीए, पीएस व ओएसडी की पद से हटा दिया जाता है.
* उधारी की नौबत क्यों
कई मंत्रियों द्वारा अपने कार्यालयों में मुख्यमंत्री की नजर से बचाकर अपने मर्जी के कर्मचारियों व अधिकारियों को उधारी यानी लोन तत्व पर लाया जाता है. इसके तहत एक मंत्री द्वारा दूसरे मंत्री के अख्तियार वाले अधिकारी व कर्मचारी की सेवा अपने कार्यालय के लिए ली जाती है. परंतु ऐसे अधिकारियों व कर्मचारियों का वेतन उनके मूल विभाग से ही निकाला जाता है. इसे उधारी यानी लोन तत्व पर अधिकारी व कर्मचारी लेना कहा जाता है.
– इस बात का फायदा उठाते हुए कुछ मंत्रियों ने अपने कार्यालयों में 20 से 25 लोगों की नियुक्ति की है. जिसमें से अधिकांश लोग गडबडी करने के लिए ही प्रसिद्ध है. साथ ही कुछ मंत्रियों ने सेवानिवृत्त अधिकारियों को भी अपनी सेवा में शामिल किया है. जिसकी जानकारी मिलने पर ऐसे कितने लोगों को लोन तत्व पर नियुक्त किया गया है, इसकी सूची मुख्यमंत्री कार्यालय ने मंगवाई है.
* ऐसे हुए नाम तय
विविध मंत्रियों द्वारा सुझाए गए नामों की जांच-पडताल की गई. जिसके तहत संबंधितों की विश्वसनीयता, पहली नौकरीवाले स्थान पर संबंधित अधिकारी या कर्मचारी की कार्यशैली व छवी को लेकर छोटी-छोटी जानकारियां मंगवाई गई और इसके बाद ही मुख्यमंत्री द्वारा पीए, पीएस व ओएसडी पदों के लिए नामों को मंजूरी दी गई है. हालांकि सीएम की मंजूरी के बावजूद ऐसी नियुक्तियां पूरे पांच वर्ष के लिए नहीं होती. बल्कि बीच में यदि संबंधितों के खिलाफ कोई शिकायत प्राप्त होती और उन शिकायतों में तथ्य पाए जाते है तो ऐसे अधिकारियों व कर्मचारियों को पदमुक्त करते हुए घर का रास्ता भी दिखाया जा सकता है.