महाराष्ट्र

किसान आंदोलन में उतरे पवार-आदित्य ठाकरे

महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों की नब्ज पर नजर

मुंबई/दि.२५ – कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली के बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन की तपिश बढ़ती जा रही है. आंदोलनरत किसानों के समर्थन में महाराष्ट्र के किसान भी खुलकर आ गए हैं. ऑल इंडिया किसान सभा के नेतृत्व में नासिक से पैदल चले हजारों किसान मुंबई पहुंच नए हैं. मुंबई के आजाद मैदान में किसानों की बड़ी रैली बुलाई गई है, जिसे एनसीपी प्रमुख शरद पवार और शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे सहित कांग्रेस के नेता भी संबोधित करेंगे. माना जा रहा है कि महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में अपना सियासी आधार मजबूत करने के लिए राज्य के तीनों सत्ताधारी दल खुलकर किसानों के समर्थन में आ गए हैं.
ऑल इंडिया किसान सभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अशोक धवले ने कहा कि महाराष्ट्र का यह सम्मेलन कृषि कानूनों को खत्म कराने के लिए दिल्ली की सीमा पर चल रहे किसान आंदोलन को समर्थन देने के लिए है. उन्होंने बताया कि आजाद मैदान में किसान सभा होगी, जिसमें महा विकास अघाड़ी के नेता भाग लेंगे. एनसीपी प्रमुख शरद पवार, राज्य कांग्रेस अध्यक्ष व राजस्व मंत्री बालासाहेब थोराट और पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे सहित वामपंथी दलों के नेता भी रैली को संबोधित करेंगे. मुंबई में जुटे किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल 25 जनवरी को राजभवन जाकर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को ज्ञापन सौंपेगे और साथ ही गणतंत्र दिवस के मौके पर आजाद मैदान में ही झंडा फहराएंगे.
दरअसल, महाराष्ट्र की सियासत में किसान काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. एनसीपी और कांग्रेस की राजनीति किसानों और ग्रामीण इलाके की इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. एनसीपी की सियासत ग्रामीण इलाके पर टिकी है, जिसके चलते वो किसानों के समर्थन में खुलकर है. वहीं, शिवसेना की छवि एक मजबूत शहरी पार्टी की रही है, लेकिन राज्य के सत्ता में आने के बाद से ग्रामीण इलाकों में अपना आधार मज़बूत करने की कोशिश कर रही है. पिछले कुछ सालों में पार्टी ने राज्य और देश भर में हुए तकरीबन हर किसान आंदोलन का समर्थन किया है. इसी के चलते महाराष्ट्र की सत्ता पर काबिज एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना तीनों ही पार्टियां किसान आंदोलन के समर्थन में खुलकर आ गई हैं.
एनसीपी प्रमुख शरद पवार किसान राजनीति से निकले हैं, जिसके चलते उनका सियासी आधार भी ग्रामीण इलाकों में ही है. 2009 तक, ग्रामीण महाराष्ट्र का अधिकतर हिस्सा, कांग्रेस और एनसीपी के प्रभाव में था. साल 1999 से 2014 के बीच अपने 15 सालों के कार्यकाल के आखिर तक आते-आते कांग्रेस और एनसीपी की पकड़ कमज़ोर पडऩे लगी थी. 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इसका असर साफ दिखा और कांग्रेस और एनसीपी सत्ता से बाहर हो गई थी.
साल 2014 में बीजेपी ने राज्य की सत्ता में आने के बाद महाराष्ट्र के शहरी क्षेत्रों में हिंदू वोट बैंक के साथ-साथ अपना राजनीति मजबूत किया. इसके लिए बीजेपी महाराष्ट्र में आक्रामक ढंग से अपना विस्तार करने लगी, जिसकी नजऱ कांग्रेस और एनसीपी के कमज़ोर पडऩे से खाली हुए स्थान पर थी. इसकी वजह से शिवसेना ने भी शहरी छवि को पीछे करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों पर फोकस शुरू कर दिया था. हालांकि, शिवसेना भी पिछले 15 सालों में ग्रामीण इलाकों में अपनी पैठ बढ़ाने के प्रयास में है. मुंबई, ठाणे और कोंकण के अपने गढ़ से बाहर मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र इलाके में 2019 में जीत दर्ज की थी.
शिवसेना ने 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले दूसरी पार्टियों से जिन नेता को अपने पाले में लिया, वो वही थे जो ग्रामीण महाराष्ट्र के इलाके में अपना आधार रखते थे. इनमें बीद से जयदत्त क्षीरसागर, अहमदनगर जिले के अकोले से वैभव पिचाड़, ठाणे जि़ले के शाहपुर से पांडुरंग बरोड़ा और औरंगाबाद जि़ले के सिलोड़ से अब्दुल सत्तार शामिल हैं. 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले आदित्य ठाकरे ने पूरे ग्रामीण महाराष्ट्र इलाके का दौरा किया, जिसमें वो मंदिरों में जाने से लेकर किसानों और युवाओं पर फोकस किया था. इस दौरे का उद्देश्य उन्हें एक ऐसे जन नेता के तौर पर लोकप्रिय बनाना था, जो ग्रामीण इलाकों की अगुवाई करने में भी सक्षम था. मौजूदा समय में शिवसेना के 56 विधायकों में से 20 मुंबई क्षेत्र से हैं. आठ कोंकण से, 12 मराठवाड़ा से, छह-छह उत्तरी महाराष्ट्र और पश्चिमी महाराष्ट्र से और चार विदर्भ से हैं. वहीं, अभी शिवसेना ने जिस तरह से महाराष्ट्र में हुए पंचायत चुनाव में जीत दर्ज की है, उससे साफ जाहिर होता है कि पार्टी का आधार ग्रामीण इलाके में बढ़ा है. यही वजह है कि आदित्य ठाकरे सोमवार को आजाद मैदान में किसानों की रैली को संबोधित करेंगे, जिसके जरिए वो अपनी और अपनी पार्टी दोनों की छवि को मजबूत करना चाहते हैं. हालांकि, पश्चिमी महाराष्ट्र, उत्तरी महाराष्ट्र और विदर्भ जैसे अन्य क्षेत्रों में शिवसेना उतनी तेजी से चुनावी फायदे नहीं उठा पाई, जिसके चलते इस इलाके में अभी भी एनसीपी और कांग्रेस की राजनीतिक जमीन काफी मजबूत मानी जाती है. 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी को जो सीटें मिली हैं, उनमें इन्हीं इलाकों की ज्यादातर सीटें रही हैं. हाल ही में पंचायत चुनाव के नतीजों में ही यही दिखा है कि कांग्रेस और एनसीपी को जो सीटें मिली है, उनमें विदर्भ और पश्चिम महाराष्ट्र इलाके की सीटें हैं. एनसीपी प्रमुख शरद पवार कोरोना संकट का खतरा कम होते ही महाराष्ट के ग्रामीण इलाके का लगातार दौरा कर रहे हैं. किसानों के मुद्दे पर भी वो लगातार मुखर हैं और कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए पीएम मोदी को पत्र भी लिख चुके हैं. वहीं, कांग्रेस पार्टी किसानों के समर्थन में खुलकर शुरू से खड़ी है. ऐसे में मुंबई के आजाद मैदान में किसानों से मंच पर कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी नेता साथ आकर बीजेपी के खिलाफ जबरदस्त तरीके से आवाज उठाकर किसानों और ग्रामीण इलाके के राजनीतिक समीकरण साधने की कवायद करेंगे.

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