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केवल तीन दिन का विलंब होने से बढ़ा सत्ता संघर्ष

उद्धव ठाकरे गुट का होमवर्क कम पड़ा, सत्ता संघर्ष पर २३ जनवरी को हो सकती है सुनवाई

मुंबई/ दि. १६- राज्य में विधान परिषद के चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद राजनीतिक भूकंप आया. शिवसेना के तत्कालीन मंत्री एकनाथ शिंदे समर्थक विधायकों समेत गायब हो गए थे. इसके बाद इन विधायकों ने बगावत करने की बात सामने आई. शिंदे सहित समर्थक विधायकों ने समर्थन निकालने से उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा. राज्य के सत्ता संघर्ष संबंध में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. इस मामले में ५ न्यायाधीशों का घटनापीठ नियुक्ति किया है. सर्वोच्च न्यायालय में सत्तासंघर्ष पर सुनवाई के लिए १० जनवरी २०२३ यह तारिख रखी गई है. ठाकरे गुट द्वारा देरी से गतिविधि शुरु होने की बात विधिज्ञ उज्ज्वल निकम ने कही. इस संबंध में उन्होंने कारण बतायाि क, नेबाम राबिया मामले में घटनापीठ के ५ न्यायाधीशें ने एकमुख से जो निर्णय दिया था, उसकी वजह से दिक्कतें निर्माण हुई है. यदि अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष के विरोध में विधायकों ने अविश्वास का प्रस्ताव लाया है तो उन विधायकों को घटना के १० शेडयूल्ड नुसार अपात्र ठहराया नहीं जा सकता, ऐसा फैसले में कहा था. उसमें पूर्व सरन्यायाधीश रमण्णा भी न्यायाधीश थे, ऐसा निकम ने बताया. इसलिए ठाकरे गुट यह जानता है कि, यह निर्णय वर्तमान में अस्तित्व में रहा तो कानूनी दिक्कतें बढ़ सकती है. नेबाम राबिया प्रकरण में पांच न्यायाधीशें ने जो फैसला दिया है, उस पर फिरएकबार सोचने की जरूरत है. सर्वोच्च न्यायालय में क्या होगा? यह आनेवाले समय में पता चलेगा. यह प्रकरण लंबित हो रहा है, ऐसा नहीं लगता, क्योंकि शिंदे गुट के विधायकों ने २२ जून २०२२ को उपाध्यक्ष नरहरी झिरवाल के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव पेश किया था, ऐसा निकम ने किया. इसके बाद २५ जून को झिरवाल ने इन १६ विधायकों को अपात्रता की नोटीस निकाली थी. जिसके कारण इस स्थिति में नेबाम राबिया का नतीचा लागू होता है. इसलिए राबिया प्रकारण के इस निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए ७ न्यायाधीश के घटना पीठ की मांग ठाकरे गुट ने की. परंतु यह मांग करने में विलंब हुआ. इसका अर्थ यह है कि, ठाकरे गुट का होमवर्क कम हुआ है, ऐसा निकम ने बताया. राबिया का फैसला और घटना की १० वीं सूची यह दोनो अलग-अलग है, ऐसा उज्वल निकम ने समझाया. राबिया प्रकरण में घटना पीठ ने बताया था कि, अगर अध्यक्ष अथवा उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव आया तो उसका सामना करना चाहिए. तथा १० वीं सूची नुसार यदि किसी सदस्य ने स्वयं गुट छोडने की बात सिद्ध हुई तो वह अपात्र होता है. इसलिए शिंदे गुट के विधायकों का ऐसा कृत्य है क्या? उन्होंने गुट छोडा, यह देखा जाएगा. १० जनवरी को सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या फैसला लेती है, इस सब निर्भर है. सुप्रीम कोर्ट ७ न्यायाधीशों का घटनापीठ नियुक्त करता है या उपाध्यक्ष नरहरी झिरसाल ने अविश्वास प्रस्ताव के समक्ष जाए, फिर हम आगे देखेंगे, ऐसा भी निर्णय कोर्ट ले सकता है. इसलिए राजनीति और प्रेम में कुछ भी संभव है, ऐसा दिखाई देता है, यह बात निकम ने कही.

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