मुंबई/दि.14– राज्य में एट्रासीटी के प्रकरणों की सुनवाई लेनेवाली सभी न्यायालयों में विडीओ रिकॉर्डिंग की सुविधा नहीं है. यह सुविधा उपलब्ध करना यह राज्य सरकार का कर्तव्य और जिम्मेदारी है. जिन-जिन न्यायालयों में यह सुविधा नहीं है वहां उसे जल्द से जल्द कराने के निर्देश सरकार को हम दे रहे है. लेकिन तब तक विशेषत: व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मुद्दा रहा तो न्यायालय को रिकॉर्डिंग के बगैर सुनवाई लेते आ सकेंगी, ऐसे आदेश मुंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को दिए.
डॉ. पायल तडवी आत्महत्या प्रकरण के तीन आरोपी रही डॉ. हेमा आहुजा, डॉ. भक्ति मेहेर और डॉ. अंकिता खंडेलवाल की जमानत याचिका निमित्त यह कानूनी प्रश्न सामने आया था. पायल की मां की तरफ से एड. गुणरत्न सदावर्ते ने हस्तक्षेप अर्जी दायर कर सुनवाई की विडीओ रिकार्डिंग के प्रावधान का अनुरोध किया था. लेकिन जमानत याचिका पर सुनवाईबाबत प्रावधान बंधनकारक न रहने का निश्कर्ष दर्ज कर न्यायमूर्ति साधना जाधव ने तीनों आरोपियों की सशर्त जमानत मंजूर कर ली थी. लेकिन उसी समय न्यायमूर्ति जाधव ने इस प्रश्नबाबत कुछ महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न उपस्थित करते हुए यह विषय बडी खंडपीठ के विचारार्थ जाना आवश्यक रहने की बात 9 अगस्त 2019 के अपने आदेश में दर्ज की थी. इसके मुताबिक खंडपीठ ने इस प्रश्न पर ‘न्यायालय मित्र’ के रुप में एड. मयुर खांडेपारकर का तथा हस्तक्षेप आवेदनकर्ता की तरफ एड. अमित कातरनवरे व एड. अलंकार किर्पेकर और राज्य सरकार की तरफ से महाधिवक्ता डॉ. बिरेंद्र सराफ व केंद्र सरकार की तरफ से अतिरिक्त महान्यायअभिकर्ता देवांग व्यास का कानूनी युक्तिवाद सुनने के बाद 31 जनवरी को सुरक्षित रखा अपना यह निर्णय बुधवार को घोषित किया.
* पुरानी सुनवाई पर इसका प्रभाव नहीं
इसके पूर्व विडिओ रिकॉर्डिंग के बगैर हुई सुनवाईबाबत बुधवार के इस निर्णय का कोई भी प्रभाव नहीं रहेगा, यह प्रावधान बंधनकारक रहने का हमारा निर्णय आगे की सुनवाईबाबत लागू रहेगा, ऐसा भी खंडपीठ ने अपने आदेश में दर्ज किया.