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राणा दंपत्ति पर ‘राजद्रोह’ का मुकदमा गलत

मुंबई सेशन कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी, मुंबई पुलिस अब सवालों के घेरे में

* अदालती टिप्पणी के बाद बढ सकता है सरकार व भाजपा में संघर्ष
मुंबई/दि.6– राज्य के मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे के आवास ‘मातोश्री’ बंगले के सामने हनुमान चालीसा पढने की जिद पर अडे रहने के चलते अमरावती जिले की सांसद नवनीत राणा तथा उनके पति व विधायक रवि राणा को गिरफ्तार करने के साथ ही मुंबई पुलिस ने उन पर विभिन्न धाराओं के साथ-साथ राजद्रोह की धारा के तहत भी अपराध दर्ज किया था. किंतु दो दिन पूर्व सांसद नवनीत राणा और विधायक रवि राणा को जमानत देते समय मुंबई सत्र न्यायालय की विशेष अदालत ने बेहद अहम टिप्पणी की है, जिसमें अदालत ने राणा दम्पति पर लगाई गई राजद्रोह की धारा को गलत बताने के साथ ही अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि, इस मामले में धारा 124 (अ) का इस्तेमाल गलत है. ऐसे में अदालत के इस फैसले के बाद अब राज्य सरकार पर फिर से उंगलियां उठना शुरू हो चुकी है और सरकार के साथ-साथ अब मुंबई पुलिस पर भी सवालिया निशान उठने शुरू हो गये है.
बता दें कि, बीते बुधवार को राणा दम्पति की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए मुंबई की एक विशेष अदालत ने कहा कि सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा ने निसंदेह संविधान के तहत मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा को लांघा है, लेकिन केवल अपमानजनक या आपत्तिजनक शब्दों की अभिव्यक्ति ही उनके खिलाफ राजद्रोह का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकते हैं. विशेष अदालत के न्यायाधीश आर एन रोकाडे द्वारा विगत बुधवार को दिये गये आदेश की विस्तृत प्रतिलिपी आज शुक्रवार को उपलब्ध कराई गई, जिसके मुताबिक अदालत ने स्पष्ट तौर पर माना है कि यह ध्यान देने वाली बात है कि न तो याचिकाकर्ताओं ने किसी को हथियार के साथ बुलाया और न ही उनके भाषण के परिणामस्वरूप किसी भी तरह की हिंसा को उकसावा मिला. अत: इस स्तर पर प्रथम दृष्टया दंपति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए (राजद्रोह) के तहत आरोप नहीं बनते हैं.
ज्ञात रहे कि, मुंबई पुलिस ने पिछले हफ्ते दंपति की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि उनकी योजना से अपराध की मंशा नहीं दिखती है, लेकिन वास्तव में यह राज्य सरकार को चुनौती देने की एक बड़ी साजिश थी. योजना का उद्देश्य कानून-व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ना था और फिर महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा वर्तमान सरकार को भंग करने की मांग करना था. पुलिस ने कहा था कि जब भड़काऊ बयानों के इस्तेमाल से सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने या कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने की घातक प्रवृत्ति या मंशा होती है तो राजद्रोह के प्रावधान लगाए जाते हैं. जिसके बाद अदालत ने राणा दंपति के भाषणों पर गौर करते हुए कहा कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के आवास के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने की दंपति की घोषणा का इरादा हिंसक तरीकों से सरकार गिराने का नहीं था. हालांकि, उनके बयान दोषपूर्ण जरूर हैं, लेकिन वे इतने भी पर्याप्त नहीं है कि उन्हें राजद्रोह के आरोप के दायरे में लाया जा सके. अदालत ने कहा कि, ये प्रावधान तभी लागू होंगे, जब लिखित और बोले गए शब्दों में हिंसा का सहारा लेकर सार्वजनिक शांति को भंग करने या अशांति पैदा करने की प्रवृत्ति या इरादा हो. हालांकि, याचिकाकर्ताओं के बयान और कार्य दोषपूर्ण हैं, लेकिन वे इतने भी पर्याप्त नहीं हैं कि उन्हें आईपीसी की धारा 124 ए के दायरे में लाया जा सके.

* अब भाजपा हो सकती है और भी अधिक मुखर
उल्लेखनीय है कि, इसके पहले भी राज्य के प्रमुख विपक्षी यानी भाजपा द्वारा अभिनेता सुशांत सिंह की मौत के मामले में मुंबई पुलिस की कार्यशैली पर जमकर निशाना साधा जा चुका है. भाजपा द्वारा अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि महाविकास आघाड़ी सरकार पुलिस का अपने फायदे के लिए दुरुपयोग कर रही है. वही अब राणा दम्पति पर मुंबई पुलिस द्वारा राजद्रोह की धारा लगाये जाने को लेकर अदालत की ताजा टिप्पणी के बाद राज्य में एक बार फिर से सत्ता पक्ष बनाम विपक्ष की लड़ाई शुरू हो सकती है, क्योंकि अब भाजपा द्वारा इस मुद्दे को लेकर मुखर होते हुए सरकार को घेरने का प्रयास निश्चित तौर पर किया जा सकता है.

* क्या होगा राणा दम्पति का अगला कदम
बता दें कि, मुंबई की विशेष अदालत ने जमानत देते हुए राणा दंपत्ति पर छह शर्ते लगाई थीं. जिनमें प्रमुख शर्त यह है कि, वे इस मामले को लेकर मीडिया से बात नहीं कर सकते. हालांकि अदालत की टिप्पणी के बाद राणा दम्पति का अगला कदम क्या होगा, इस पर भी सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. फिलहाल इस बात की भी संभावना जताई जा रही है कि, राणा दम्पति द्वारा इस संदर्भ में ऊपरी अदालत या फिर केंद्र सरकार के पास अपनी शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है. पता चला है कि, कल शनिवार 7 मई को विधायक रवि राणा दिल्ली जाने वाले हैं. जहां वे भाजपा के कुछ बड़े नेताओं से मुलाकात भी करेंगे.

* एड. निकम भी अदालती टिप्पणी से सहमत
* राजद्रोह की धारा के गलत इस्तेमाल की बात मानी
इसी बीच देश के जाने-माने वकील एड. उज्जवल निकम ने भी अदालत की टिप्पणी से अपनी सहमति दर्शाई है और कहा है कि, राजद्रोह की धारा का इस मामले में वाकई गलत इस्तेमाल हुआ है. एड. निकम के मुताबिक राजद्रोह की धारा अंग्रेजों के जमाने से है और भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए इस धारा को अस्तित्व में लाया गया था. आजादी के बाद इसमें संशोधन भी किया गया था. बीते कई वर्षों से इस पर विचार-विमर्श भी शुरू है. निकम ने कहा कि, यह धारा रहे या ना रहे, इसे लेकर एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है. किसी के लिखने या बोलने की मर्यादा पार होने पर इस धारा का इस्तेमाल किया जा रहा है. फिलहाल इस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है. उन्होंने कहा कि, इस धारा के अंतर्गत लगाई जानेवाली शर्तों में संशोधन और पुनर्विचार करने के लिए जरूरत है. वहीं कुछ संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक आजादी मिलने के बाद संविधान ने देश के नागरिकों को कुछ मूलभूत अधिकार दिये हैं. ऐसे में उन अधिकारों पर राजद्रोह की धारा की वजह से अतिक्रमण किया जा रहा है. कई जगहों पर केंद्र और कहीं राज्य की तरफ से इस धारा का गैर इस्तेमाल किया जा रहा है.

कानूनी अध्ययन के बाद दर्ज किया था राजद्रोह का मामला
* गृहमंत्री दिलीप वलसे पाटील का कथन
वहीं इस मामले को लेकर राज्य के गृहमंत्री दिलीप वलसे पाटील ने कहा कि, राणा दम्पति के खिलाफ राजद्रोह का मामला मुंबई पुलिस द्वारा काफी सोच-विचार करने के बाद दर्ज किया गया था. जिसके लिए सभी कानूनी पहलूओं और प्रावधानों को ध्यान में रखा गया था. विगत 22 व 23 अप्रैल को स्थानीय स्तर पर क्या हालात थे, यह पुलिस को भी बेहतर तरीके से पता है और पुलिस ने स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए तमाम जरूरी कदम उठाये थे. जिसके तहत राणा दम्पति को गिरफ्तार करते हुए उनके खिलाफ राजद्रोह सहित विभिन्न धाराओं के अंतर्गत अपराध दर्ज किया गया था. परंतू पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई को लेकर अपना निरीक्षण या विचार व्यक्त करने का अदालत को अधिकार होता है और इसी अधिकार के तहत संभवत: अदालत ने राणा दम्पति के खिलाफ दर्ज राजद्रोह के मामले को लेकर अपनी राय दी है. लेकिन यह कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं है. अत: इस पर फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा. ऐसा में मामले को लेकर कोर्ट में चलनेवाले मुकदमे और सुनवाई पश्चात कोर्ट द्वारा दिये जानेवाले फैसले का इंतजार करना ही सबसे ठीक रहेगा.

हम देंगे कोर्ट को राजद्रोह के सबूत
* मंत्री अनिल परब का कथन
वहीं इस बीच राज्य के परिवहन मंत्री अनिल परब ने कहा कि, मुंबई की अदालत ने राणा दम्पत्ति पर मुंबई पुलिस द्वारा राजद्रोह की धारा लगाये जाने को लेकर केवल अपना विचार व्यक्त किया है और यह अदालत का अंतिम फैसला नहीं है. ऐसे में जब अदालत के समक्ष इस मुकदमे की सुनवाई होगी, तब राज्य सरकार द्वारा इस संदर्भ में कोर्ट के समक्ष सबूत पेश किये जायेंगे. इसके साथ ही मंत्री अनिल परब ने यह भी कहा कि, कोर्ट द्वारा किन स्थितियों में राणा दम्पति पर लगाई गई राजद्रोह की धारा के गलत रहने का निरीक्षण दिया गया. इसका भी राज्य सरकार द्वारा अध्ययन किया जायेगा. मंत्री अनिल परब के मुताबिक 12 विधायकों की नियुक्ति को लेकर भी हाईकोर्ट ने अपने विचार व्यक्त किये थे. लेकिन इसमें आगे क्या हुआ, सबके सामने है. ऐसे में कोर्ट के निरीक्षण और फैसले में काफी फर्क है और जब मुकदमा चलेगा, तब कई बातें सामने आयेगी. साथ ही उस समय राजद्रोह की धारा और राणा दम्पति के अपराध को लेकर राज्य सरकार द्वारा आवश्यक सबूत प्रस्तुत किये जायेगे.

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