अजीत पवार सहित 76 लोगों को राहत
सहकार विभाग (Cooperative Department) की जांच में सभी निर्दोष
मुंबई/दि.19 – राज्य में बीते दस वर्षों से गूंज रहे राज्य सहकारी बैेंक घोटाले में उपमुख्यमंत्री अजीत पवार, ग्राम विकास मंत्री हसन मुश्रीफ, राहत व पुनर्वास मंत्री विजय वडेट्टीवार सहित 76 लोगों को सहकार विभाग ने जांच में राहत दी है.
तत्कालीन संचालक मंडल के विविध विवादास्पद निर्णय से बैंक का लगभग 1600 करोड रूपयों का नुकसान होने का आरोप लगाते हुए सहकार अधिनियम की धारा 88 के तहत सभी की जांच शुरू की गई थी. संचालकों पर कोई भी आरोप नहीं लगाया जा सकता. यह रिपोर्ट जांच अधिकारी व प्रधान जिला न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) पंडित जाधव ने सहकार विभाग को पेश किया. प्राथमिक जांच में सभी को राहत मिली है. फिर भी न्यायालयीन प्रक्रिया से उनको राहत पाने के लिए चुनौतियों का सामना करना पडेगा.
यहां बता दें कि, राज्य सहकारी बैंक घाटे में होने से नेटवर्थ मायनस होने से नाबार्ड के ऑडिट रिपोर्ट के बाद रिजर्व बैंक ने राज्य बैंक पर कार्रवाई करने के आदेश सरकार को दिये थे. राज्य बैंक के कथित घोटाले की गंभीर दखल लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने 7 मई 2011 में बैंक के संचालक मंडल को बर्खास्त कर प्रशासक मंडल की नियुक्ति कर घोटाले की जांच करने के आदेश दिये थे. जिसके अनुसार सहकार अधिनियम की धारा 83 के अनुसार नासिक विभाग के सहनिबंधक ए. के. चव्हाण के पास घोटाले की जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी. चव्हाण ने बैंक के तत्कालीन संचालक मंडल के विविध 11 विवादास्पद निर्णय से बैंक का लगभग 1600 करोड रूपयों का आर्थिक नुकसान होने की रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की गई थी. धारा 83 की जांच में बैंक में हुए घोटाले पर मुहर लगानेवाली रिपोर्ट वर्ष 2013 में सरकार को मिलने के बाद इस नुकसान की जिम्मेदारी तत्कालीन संचालक मंडल पर निर्धारित कर वह वसूल करने और संचालकों पर फौजदारी कार्रवाई करने के लिए सहकार विभाग के तत्कालीन अप्पर निबंधक शिवाजी पहिनकर की प्राधिकृत अधिकारी के रूप में मई 2014 में नियुक्ति की गई थी. पहिनकर ने जांच में बैंक घोटाला होने का निष्कर्ष निकालते हुए तत्कालीन संचालकों पर 11 दोषारोप रखे. इनमें से घाटे में चल रहे 8 शक्कर कारखानोें को दिये गये कर्ज 297 करोड का नुकसान, 14 शक्कर कारखानों के बकाया कर्ज वसूली नहीं किये जाने से 487 करोड का नुकसान, केन एग्रो इंडिया के बकाया गारंटी रद्द होने से 54 करोड का नुकसान, 17 कारखानों के तारण संपत्ति बिक्री में अनियमितता रहने से 585 करोड के नुकसान आदि दोषारोपों का समावेश था. इस घोटाले में बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष माणिकराव कोकाटे सहित कोल्हापुर के बालासाहब सरनाईक, उपमुख्यमंत्री अजीत पवार, ग्राम विकास मंत्री हसन मुश्रीफ, राहत व पुनर्वास मंत्री विजय वडेट्टीवार, दिलीप सोपल, तुलजापुर के मधुकर चव्हाण, पूर्व उपमुख्यमंत्री विजयसिंह मोहिते पाटिल, आनंदराव अडसूल, शेकाप के जयंत पाटील, राजवर्धन कदम बांडे, ईश्वरलाल जैन, राजेंद्र जैन, अमरसिंह पंडित, यशवंतराव गरात, रजनी पाटील आदि नेता परेशानी में आ गये थे. लेकिन कभी न्यायालयीन स्थगित, कभी संचालकों तो कभी बैंक के असहयोग से यह जांच प्रभावित हो रही थी.