महाराष्ट्र

कृषि कानून रद्द करके किसानों का सम्मान करें

शिवसेना ने साधा केंद्र सरकार पर निशाना

मुंबई/दि.१४– शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के माध्यम से एक बार फिर किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. शिवसेना ने सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार किसानों के आंदोलन को खत्म नहीं करवाना चाहती है और इस आंदोलन पर देशद्रोह का रंग चढ़ा कर राजनीति करना चाहती है. सामना में कहा गया है, किसानों की हिम्मत और जिद का प्रधानमंत्री मोदी को स्वागत करना चाहिए और कृषि कानून रद्द करके किसानों का सम्मान करना चाहिए. मोदी आज जितने बड़े हैं, उससे भी बड़े हो जाएंगे. मोदी, बड़े बनो. शिवसेना ने सामना में आगे लिखा है कि सर्वोच्च न्यायालय ने तीन कृषि कानूनों का स्थगनादेश दे दिया है. फिर भी किसान आंदोलन पर अड़े हुए हैं. अब सरकार की ओर से कहा जाएगा- ‘देखो, किसानों की अकड़, सर्वोच्च न्यायालय की बात भी नहीं मानते.Ó लेकिन सवाल सर्वोच्च न्यायालय के मान-सम्मान का नहीं है, बल्कि देश की कृषि संबंधी नीति का है. किसानों की मांग है कि कृषि कानूनों को रद्द करो, निर्णय सरकार को लेना है. सरकार ने न्यायालय के कंधे पर बंदूक रखकर किसानों पर चलाई है लेकिन किसान हटने को तैयार नहीं हैं. किसान संगठनों और सरकार के बीच जारी चर्चा रोज असफल साबित हो रही है. किसान संगठन ‘करो या मरोÓ के मूड में
सामना लिखता है कि किसानों को कृषि कानून चाहिए ही नहीं और सरकार की ओर से चर्चा के लिए आनेवाले प्रतिनिधियों को कानून रद्द करने का अधिकार ही नहीं है. किसानों के इस डर को समझ लेना आवश्यक है. सरकार सर्वोच्च न्यायालय को आगे करके किसानों का आंदोलन समाप्त कर रही है. एक बार सिंघु बॉर्डर से किसान अगर अपने घर लौट गया तो सरकार कृषि कानून के स्थगन को हटाकर किसानों की नाकाबंदी कर डालेगी इसलिए जो कुछ होगा, वह अभी हो जाए. लेकिन किसान संगठन ‘करो या मरोÓ के मूड में हैं. सरकार आंदोलनकारी किसानों को चर्चा में उलझाए रखना चाहती थी. किसानों ने उसे नाकाम कर दिया है.
सामना में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कानून पर स्थगनादेश के बावजूद यह ‘पेंचÓ नहीं छूटा. सर्वोच्च न्यायालय ने किसानों से चर्चा करने के लिए चार सदस्यों की नियुक्ति की है. ये चार सदस्य कल तक कृषि कानूनों की वकालत कर रहे थे इसलिए किसान संगठनों ने चारों सदस्यों को झिड़क दिया है. सरकार की ओर से सर्वोच्च न्यायालय में कहा गया कि आंदोलन में खालिस्तान समर्थक घुस गए हैं. सरकार का यह बयान धक्का देने वाला है.
आंदोलनकारी सरकार की बात नहीं सुन रहे इसलिए उन्हें देशद्रोही, खालिस्तानी साबित करके क्या हासिल करनेवाले हो? चीनी सैनिक हिंदुस्तान की सीमा में घुस आए हैं. उनके पीछे हटने की चर्चा शुरू है लेकिन किसान आंदोलनकारियों को खालिस्तान समर्थक बताकर उन्हें बदनाम किया जा रहा है. अगर इस आंदोलन में खालिस्तान समर्थक घुस आए हैं तो ये भी सरकार की विफलता है. सरकार इस आंदोलन को खत्म नहीं करवाना चाहती और इस आंदोलन पर देशद्रोह का रंग चढ़ाकर राजनीति करना चाहती है. तीन कृषि कानूनों का मामला संसद से संबंधित है. इस पर राजनीतिक निर्णय होना चाहिए लेकिन वकील शर्मा मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय में याचक भक्त की भूमिका में खड़े हुए और न्यायालय से हाथ जोड़कर बोले, ‘माय लॉर्ड, अब आप ही परमात्मा हैं.
सामना में कहा गया है, आप ही इस समस्या का समाधान निकाल सकते हैं. किसान किसी की बात सुनने को तैयार नहीं हैं. लेकिन अब किसान सर्वोच्च न्यायालय रूपी भगवान की भी सुनने को तैयार नहीं हैं क्योंकि, उनके लिए जमीन का टुकड़ा ही परमात्मा है. एक तरफ किसानों को खालिस्तानी कहना और दूसरी तरफ खालिस्तानी किसानों के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचना करना, ये दोहरी भूमिका क्यों?
सामना में कहा गया है कि किसानों का आंदोलन अब अधिक प्रभावी होनेवाला है. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसान एक बड़ी ट्रैक्टर रैली निकालकर दिल्ली में घुसने का प्रयास करेंगे. ये आंदोलन न होने पाए और माहौल ज्यादा खराब न हो इसलिए सरकार को भावनाओं को समझना चाहिए. दूसरे के कंधे को किराए पर लेकर किसानों पर बंदूक मत चलाओ. सामना लिखता है, सरकार द्वारा कृषि कानून रद्द किए जाने पर हम वापस घर लौट जाएंगे, किसान बार-बार ऐसा कह रहे हैं. अब तक 60 से 65 किसानों ने आंदोलन में बलिदान दिया है. आजादी के बाद पहली बार इतना कठोर और अनुशासित आंदोलन हुआ है. इस आंदोलन में किसानों की हिम्मत और जिद का प्रधानमंत्री मोदी को स्वागत करना चाहिए और कृषि कानून रद्द कर, किसानों का सम्मान करना चाहिए. मोदी आज जितने बड़े हैं, उससे भी बड़े हो जाएंगे.

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