मुंबई/दि.29– लोकसभा चुनाव के नतीजे को अब कुछ दिन शेष है. पिछले साढे चार साल में राज्य के राजनीति में आए उतार-चढाव, अलग हुए दल, विचित्र आघाडी और गठबंधन की राजनीति को देखते हुए मतदाता किसे पसंद करते है, इस ओर संपूर्ण देश का ध्यान केंद्रीत है. फैसले की घडी अब कुछ दिनों पर रहते महागठबंधन की धडकने बढ गई है. राज्य में महागठबंधन ने 45 सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य रखा था.
लोकसभा चुनाव की मतगणना 4 जून को है. संभावित नतीजे की चर्चा भाजपा में शुरु हो गई है. कौनसी गलती भी इस बाबत आत्मचिंतन शुरु है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा रहने से कोई भी उम्मीदवार दिया तो निर्वाचित होगा ही, यह समझना गलत तो नहीं होगा, ऐसा संदेह भाजपा को है. भाजपा और शिंदे सेना ने 8 से 10 सीटों पर दूसरे उम्मीदवार दिए होते तो लाभ हुआ होता, ऐसा मतप्रवाह महागठबंधन में है. आम मतदाताओं में नाराजी रहे सांसदो को ही उम्मीदवारी दिए जाने का असर विदर्भ में हो सकता है. वर्धा, गढचिरोली, भंडारा-गोंदिया में नए चेहरो को मौका दिया गया रहता तो सांसद बाबत अँटी इन्कम्बन्सी को टाला जा सकता था, ऐसा विदर्भ की पार्टी संगठना में काम करनेवाले कुछ लोगों ने कहा है. उम्मीदवारी बाबत निराशा रही तो भी मोदी की लहर थी. इस लहर के आधार पर उम्मीदवार निर्वाचित होगे. मतदाताओं ने मोदी की तरफ देखकर मतदान किया है, ऐसा दावा भाजपा नेता कर रहे है.
* शिंदे सेना को कहां-कहां झटका?
शिंदे सेना को बुलढाणा, दक्षिण मुंबई, नाशिक, शिर्डी में प्रमुख रुप से झटका लग सकता है. बुलढाणा में निर्दलीय उम्मीदवार रविकांत तुपकर कितने वोट लेते है इस पर शिंदे सेना के प्रतापराव जाधव की जीत-हार अवलंबित है. दक्षिण मुंबई की सीट पर भाजपा उम्मीदवार रहते तो, विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर अथवा मंत्री मंगलप्रभात लोढा को उम्मीदवारी दी होती तो निश्चित जीत हासिल होती, ऐसा स्थानीय भाजपा नेताओं को लगता है. दक्षिण मुंबई में यामिनी जाधव की उम्मीदवारी देरी से घोषित हुई. यह मुद्दा उनके विरोध में जा सकता है.
* महागठबंधन का प्रयोग फंसेगा?
धाराशिव में भाजपा के विधायक राणा जगजीतसिंग की पत्नी अर्चना पाटिल को अजीत पवार गुट की, हिंगोली के सांसद हेमंत पाटिल की पत्नी राजश्री को यवतमाल-वाशिम की उम्मीदवारी देना, रासप के महादेव जानकर को अजीत पवार के एनसीपी कोटे से परभणी से टिकट देना, शिरुर में आढलराव पाटिल को शिवसेना से आयात कर घडी पर उम्मीदवारी देना यह प्रयोग सफल होता है क्या, ऐसा प्रश्न अब महागठबंधन के नेताओं में है.
* महागठबंधन और मविआ के दावे क्या?
पश्चिम महाराष्ट्र, मराठवाडा में मराठा, मुस्लिम, दलित का समिकरण महाविकास आघाडी के साथ था. जबकि विदर्भ में दलित, मुस्लिम, कुणबी (डीएमके) मतदाताओं ने साथ दिया, ऐसा महाविकास आघाडी के नेता कह रहे है. वहीं दूसरी तरफ मराठा और कुणबी समाज हमारे साथ था और अन्य छोटी-बडी जातियों ने भी हमें साथ दिया, ऐसा दावा भाजपा के नेताओं का है.