तो इस वजह से बच्चु कडू ने कही थी प्रहार का मुख्यमंत्रीवाली बात
शिवसेना नेत्री नीलम गोर्हे के बयान से सामने आयी जानकारी
* शिंदे गुट के पास सेना के दो-तिहाई विधायक रहने पर भी फंसेगा कानूनी पेंच
मुंबई/दि.24– इस समय महाराष्ट्र में अच्छा-खासा राजनीतिक घमासान मचा हुआ है और जमकर बयानबाजी चल रही है. इसकी के तहत बीते दिनों प्रहार जनशक्ति पार्टी के संस्थापक तथा अचलपुर निर्वाचन क्षेत्र के निर्दलीय विधायक एवं राज्यमंत्री बच्चु कडू ने कहा था कि, राज्य में अगला मुख्यमंत्री उनकी प्रहार पार्टी का होगा. उस समय इस बयान को कोई विशेष तवज्जो नहीं मिली थी. लेकिन अब यह बात समझ में आ रही है कि, राज्यमंत्री बच्चु कडू ने वह बयान यूं ही हवा-हवाई नहीं दिया था, बल्कि उस बयान के पीछे बेहद मजबूत कानूनी आधार भी था. जिसके चलते यदि निकट भविष्य में राज्य की सत्ता प्रहार जनशक्ति पार्टी के मुख्यमंत्री के पास दिखाई देती है, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
उल्लेखनीय है कि, इस समय शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे द्वारा अपने पास सेना के दो-तिहाई से अधिक विधायकों सहित निर्दलीय विधायकों का समर्थन रहने की बात कही जा रही है और वे खुद को असली शिवसेना गुट के तौर पर मान्यता दिलााने के लिए प्रयासरत है. इसी बीच विधान परिषद में शिवसेना के उपनेता रहनेवाली डॉ. नीलम गोर्हे ने दल-बदल अधिनियम की धारा 10 का उल्लेख एक पत्रवार्ता में करते हुए कहा कि, इस धारा के मुताबिक चूंकि शिंदे गुट के पास दो-तिहाई से अधिक विधायकों का बहुमत है. ऐसे में दल-बदल कानून के तहत उनमें से किसी विधायक की सदस्यता तो खारिज नहीं होगी. लेकिन उन्हें किसी स्वतंत्र गुट के तौर पर मान्यता भी नहीं मिलेगी. ऐसे में इन सभी विधायकोेें को किसी अन्य राजनीतिक दल में प्रवेश करना होगा. ऐसी स्थिति में शिंदे के साथ रहनेवाले विधायकों के सामने दो ही पर्याय रहेंगे, या तो वे अपने पीछे ताकत बनकर खडी भारतीय जनता पार्टी में प्रवेश कर ले, या फिर शुरूआत से अपने साथ रहनेवाले राज्यमंत्री बच्चु कडू की प्रादेशिक मान्यता प्राप्त प्रहार जनशक्ति पार्टी में अपने गुट का विलय कर लें. यदि इन विधायकों के गुट को भाजपा द्वारा खुद में शामिल किया जाता है, तब भाजपा खुद पूरी तरह से एक्सपोज हो जायेगी कि, इस पूरे मामले के पीछे खुद भाजपा ही थी. ऐसे में शिंदे गुट द्वारा किसी समय कट्टर शिवसैनिक रहे राज्यमंत्री बच्चु कडू की प्रहार जनशक्ति पार्टी में खुद को शामिल किया जा सकता है. ऐसी सूरत में प्रहार पार्टी की ताकत अचानक ही कई गुना अधिक बढ जायेगी और प्रहार सरकार बनाने की स्थिति में आ जायेगी. ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं कि, प्रहार की ओर से मुख्यमंत्री पद पर दावा ठोंकते हुए एकनाथ शिंदे का नाम ही इस पद के लिए आगे बढाया जाये और उस समय भाजपा द्वारा भी शिवसेना को शह देने एवं मध्यावधि चुनाव को टालने के लिए प्रहार की इस पेशकश का समर्थन किया जाये. यदि ऐसा होता है, तो राज्यमंत्री बच्चु कडू द्वारा कुछ ही समय पहले कही गई वह बात सच साबित हो जायेगी. जिसमें उन्होंने कहा था कि, महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री प्रहार जनशक्ति पार्टी से होगा.
* आइए जानते हैं कि क्या होता है दल-बदल कानून
1967 के आम चुनाव के बाद विधायकों के इधर-उधर जाने से कई राज्यों की सरकारें गिर गईं. इसे रोकने के लिए दल-बदल कानून लाया गया. संसद ने 1985 में संविधान की दसवीं अनुसूची में इसे जगह दी. इस कानून के जरिए उन विधायकों/सांसदों को सजा दी जाती है जो दल बदल करते हैं. इसमें सांसदों/विधायकों के समूह को दल-बदल की सजा के दायरे में आए बिना दूसरे दल में शामिल होने (विलय) की इजाजत है.
यह कानून उन राजनीतिक दलों को सजा देने में अक्षम है जो विधायकों/सांसदों को पार्टी बदलने के लिए उकसाते हैं या मंजूर करते हैं. एक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में विलय की अनुमति है. शर्त इतनी है कि उस दल के न्यूनतम दो तिहाई सदस्य विलय के पक्ष में हों.
ऐसी स्थिति में जनप्रतिनिधियों पर दल-बदल कानून लागू नहीं होगा और न ही राजनीतिक दल पर.