महाराष्ट्र

राज्य पिछडावर्गीय आयोग है जातियवादी

विधायक विनायक मेटे का कथन

  • ओबीसी नेताओं पर लगाया समाज की दिशाभूल का आरोप

नासिक/दि.१८ – आरक्षण के संदर्भ में नियुक्त किया गया राज्य पिछडावर्गीय आयोग एक तरह से जातियवादी आयोग है. इस आशय का सनसनीखेज आरोप शिवसंग्राम के अध्यक्ष व विधायक विनायक मेटे द्वारा लगाया गया. साथ ही उन्होंने यह मांग भी उठाई कि जातियवादी नहीं रहनेवाले सदस्यों का समावेश करते हुए नया आयोग स्थापित किया जाये. विधायक मेटे ने यह भी कहा कि, सरकार ने त्रिसूत्री पर अमल नहीं किया. जिसकी वजह से ओबीसी आरक्षण रद्द हुआ है. ऐसे में मूल मुद्दे को परे रखते हुए ओबीसी नेताओं द्वारा ओबीसी समाज की दिशाभूल की जा रही है.
गत रोज नासिक जिले के दौरे पर आये विधायक मेटे ने यहां के सरकारी विश्रामगृह में पत्रकारों से संवाद साधते हुए कहा कि, गणपति विसर्जन के बाद मराठा आरक्षण के संदर्भ में सर्वपक्षिय नेताओं व मराठा संगठनों की बैठक लेना राज्य के मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे द्वारा मान्य किया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि, मौजूदा पिछडावर्गीय आयोग पूरी तरह से जातियवादी है. जिसमें कई लोगोें ने अपनी जाति को छीपाकर आयोग का सदस्यत्व लिया है. जिसके उनके पास तमाम सबूत भी है. विधायक मेटे के मुताबिक इस आयोग के पीछे ओबीसी मंत्री विजय वडेट्टीवार का पूरा हाथ है. ओबीसी समाज का राजनीतिक आरक्षण रद्द होने के बावजूद भी सरकार इसे लेकर लगातार बैठकें ले रही थी. वहीं आरक्षण के अभाव में मराठा समाज भी लगातार पिछडता जा रहा है. किंतु सरकार इस मामले को लेकर भी गंभीर नहीं है. बल्कि ओबीसी एवं मराठा समाज के साथ दुजाभाव कर रही है. ऐसे में बेहद जरूरी है कि, मंत्रियों द्वारा अपने ढोंगीपन को छोडा जाये और समर्पित भावना से काम करनेवाला आयोग गठित किया जाये. इस आयोग की ओर से निकाले जानेवाले निष्कर्षों को सरकार द्वारा आवश्यक जांच-पडताल करते हुए उन पर अमल किया जाये. साथ ही अनुसूचित जाति-जमाति के आरक्षण को धक्का लगाये बिना 50 फीसद की मर्यादा के भीतर आरक्षण के मसले को हल किया जाये. किंतु इस त्रिसूत्री की ओर सरकार द्वारा अनदेखी किये जाने की वजह से ओबीसी समाज का आरक्षण रद्द हो गया. वहीं अब भी इस मसले के लिए स्वतंत्र आयोग का गठन जरूरी रहने के बावजूद पिछडावर्गीय आयोग का गठन किया गया. जिसकी वजह से यह मामला अब तक अटका पडा है. जब तक इन कामोें को पूरी तरह से निपटा नहीं लिया जाता, तब तक ओबीसी समाज को आरक्षण नहीं मिलेगा. अध्यादेश जारी करने के बाद यदि किसी ने उसे कोर्ट में चुनौती दे दी, तो वहां पर यह आरक्षण एक मिनट भी नहीं टिकेगा. लेकिन यदि इसके बावजूद सरकार सहित ओबीसी नेताओं द्वारा ओबीसी समाज को अंधेरे में रखा जा रहा है, ऐसा आरोप लगाते हुए विधायक मेटे ने कहा कि, पिछडावर्गीय आयोग को केवल सर्वेक्षण करने के लिए साढे 400 करोड रूपयों की जरूरत क्यों पड रही है. इसके साथ ही उन्होंने आगामी महानगरपालिका, जिला परिषद व पंचायत समिती के चुनाव शिवसंग्राम पार्टी द्वारा लडे जाने की जानकारी भी दी.

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