हिं.स./दि.२५ मुंबई -कोरोना को लेकर जारी हालात की वजह को आगे कर पदवी व पदव्युत्तर पाठ्यक्रमों के अंतिम वर्ष व अंतिम सत्र की परीक्षा को रद्द करने का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है. इस आशय की भुमिका विद्यापीठ अनुदान आयोग (युजीसी) द्वारा हाईकोर्ट के समक्ष स्पष्ट की गई है. बता दें कि, आपत्ति व्यवस्थापन अधिनियम व महामारी प्रतिबंधात्मक अधिनियम के तहत राज्य सरकार को परीक्षाएं रद्द करने का अधिकार है, ऐसी भुमिका लेते हुए राज्य सरकारने इस बार अंतिम वर्ष व अंतिम सत्र की परीक्षाओं को रद्द करने का निर्णय लिया है, कींतु सेवानिवृत्त प्राध्यापक धनंजय कुलकर्णी ने सरकार द्वारा अंतिम वर्ष की परीक्षा को रद्द किये जाने के संदर्भ में लिये गये निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी है. इस याचिका पर जारी सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में यूजीसी ने एक हलफनामा दाखिल किया है. जिसमें कहा गया है कि, जिसमें कहा गया है कि, विद्यापीठ अनुदान आयोग अधिनियम के वैधानिक प्रावधानोें के खिलाफ उपरोक्त दोनों कानूनों को लागू नहीं किया जा सकता और राज्य सरकार का यह निर्णय युजीसी द्वारा विगत २९ अप्रैल व ६ जुलाई को जारी किये गये मार्गदर्शक तत्वों से मेल नहीं खाता. इन मार्गदर्शक तत्वों को विद्यापीठ व अन्य संस्थाओं में गृह मंत्रालय द्वारा परीक्षा लेने की अनुमति दिये जाने के बाद ही जारी किया गया था. जिनमें विद्यार्थियों के शैक्षणिक व करियर संबंधी हितों को ध्यान में रखने के साथ ही विद्यार्थियों की सुरक्षा को भी ध्यान में रखा गया था. साथ ही यूजीसी द्वारा यह भी कहा गया है कि, अंतिम वर्ष की परीक्षा न लेते हुए विद्यार्थियों को पदवी प्रदान करने के संदर्भ में राज्य सरकार द्वारा लिये गये निर्णय से शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी. इसके अलावा इस हलफनामे में कहा गया है कि, परीक्षाओं का स्तर नियमित करने के लिए युजीसी द्वारा शिखर संस्था के रूप में काम किया जाता है और सभी विद्यापीठों को सितंबर २०२० तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं लेने के संदर्भ में निर्देश जारी किये गये है. इसमें यदि ऐन समय पर कुछ विद्यार्थियों के लिए विशेष परिस्थितियां उत्पन्न होती है तो उनके लिये विशेष परीक्षा के आयोजन की अनुमति दी जायेगी, ऐसा भी यूजीसी द्वारा स्पष्ट किया गया है. अब इस मामले में अगली व अंतिम सुनवाई आगामी ३१ जुलाई को होगी.