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राज्य शासन का नवनीत मामले में कोई मत दर्ज नहीं

प्रादेशिक समाचार पत्रों की वह खबर कोरी गप

* अमरावती मंडल को सुको वकीलों ने बताया कि ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं
* मामला सांसद की जाति प्रमाणपत्र का
मुंबई/ दि. 29- अमरावती की सांसद नवनीत कौर राणा का जाति प्रमाणपत्र का मसला सर्वोच्च न्यायालय में चल रहा है. कुछ दिनों की नियमित सुनवाई पश्चात बुधवार को कोर्ट ने यह मामला क्लोज फॉर ऑर्डर कर दिया. इस बीच समाचार चैनलों और अपने आपको प्रादेशिक कहते समाचार पत्रों में भी राणा के जाति प्रमाणपत्र को लेकर राज्य शासन द्बारा सुप्रीम कोर्ट में जानकारी देने संबंधी समाचार प्रसारित, प्रकाशित हुए. यह समाचार सरासर गलत होने की जानकारी सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने आज सबेरे अमरावती मंडल से चर्चा दौरान दी.
* सुनवाई पूर्ण
सर्वोच्च न्यायालय में सांसद राणा का जाति प्रमाणपत्र सही है या झूठ, इसका निर्णय होनेवाला है. हाईकोर्ट ने राणा के प्रमाणपत्र को बनावटी कहकर खारिज कर रखा है. जिसे उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है. इसकी सुनवाई गत दिनों नियमित रूप से हुई. तत्पश्चात दोनों पक्षों की दलीले सुनकर सुको की खंडपीठ ने क्लोज फॉर ऑर्डर कहकर गुरूवार को सुनवाई पूर्ण कर ली.
* क्या दावा किया गया
बुधवार की कोर्ट की कार्रवाई की खबर जारी होने के बाद शाम से ही अति उत्साह में मराठी समाचार चैनलों ने खबर चलाई. जिसमें दावा किया गया कि राज्य सरकार की तरफ से सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि नवनीत राणा को सिख मोची जाति अभिलेख के आधार पर जाति प्रमाणपत्र नहीं दिया जा सकता. उसे संविधान के विरोध में बताने का मत राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा. चैनलों के बाद कथित प्रादेशिक अग्रणी समाचार पत्रों ने भी ऐसे समाचार जारी किए.
* ऐसा कोई प्रावधान नहीं
स्वनामधन्य प्रादेशिक अखबारों के समाचार के बारे में अमरावती मंडल ने आज सबेरे सर्वोच्च न्यायालय के वकीलों से बात की. विशेषकर नवनीत राणा प्रकरण से जुडे कानून विशेषज्ञों से चर्चा की तो उन्होंने ऐसे किसी प्रावधान को ही सिरे से खारिज कर कहा कि न तो कोई सम्मन भेजा गया. न बुलाया गया. न कोई और दस्तावेज या कागज सुको खंडपीठ के सामने इस मामले में लाया गया. उन्होंने स्पष्ट किया कि बुधवार को भी प्रकरण में पुराने दस्तावेजों को लेकर ही जिरह हुई. प्रारंभ से ही प्रस्तुत दस्तावेज कोर्ट के सामने रहे. कोई एडजॉयनिंग नहीं दी गई. जिससे साफ है कि सुको में राज्य सरकार की तरफ से कोई अभिमत नहीं रखा गया है. जैसा कि कुछ कथित प्रादेशिक समाचारपत्रों के समाचार में दावा किया गया है.

 

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