मुंबई/दि.5 – मराठा आरक्षण (Maratha Reservation Case) के मुद्दे पर आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. मराठा आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है. यह जानकारी याचिकाकर्ता विनोद पाटील ने दी है. गायकवाड समिति की सिफारिश भी सुप्रीम कोर्ट ने नहीं मानी. सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को अल्ट्रा वायरस बताया. सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी के केस पर दिए गए निर्णय को रिविजिट करने की जरूरत से इंकार कर दिया. 1992 के इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तक निश्चित कर दी थी.
देवेंद्र फडणवीस सरकार द्वारा मराठा समाज को दिया गया आरक्षण जिसे उच्च न्यायलय ने थोड़े संशोधन के साथ बहाल रखा था, उसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिय है. सर्वोच्च न्यायालय में आज (बुधवार, 5 मई) सुबह साढ़े दस बजे 5 न्यायमूर्तियों की खंडपीठ (न्या. अशोक भूषण, न्या. नागेश्वर राव, न्या. एस. अब्दुल नज़ीर, न्या. हेमंत गुप्ता, न्या. एस. रवींद्र भट) के सामने 15 मार्च से 26 मार्च तक चली सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाना शुरू किया. उच्चतम न्यायालय ने 26 मार्च को फैसला सुरक्षित रख लिया था. आज उस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया.
क्या राज्य विधानमंडल किसी समाज या जातिविशेष को सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़ा घोषित करने का अधिकार रखता है? क्या 1992 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निश्चित की गई आरक्षण की अधिकतम 50 प्रतिशत की सीमा से आगे जाकर आरक्षण दिया जा सकता है? मराठा आरक्षण वैध है क्या? ये कुछ अहम सवाल थे जिन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सबको इंतजार था. क्योंकि इस फैसले से आगे चालकर जाट, गुज्जर और पटेल आरक्षण की मांग की दिशा और दशा निश्चित होनी है.
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सुप्रीम फैसले से पहले मुख्यमंत्री के निवास स्थान पर हुई बैठक
इससे पहले मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मराठा आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले सुबह साढे नौ बजे अपने वर्षा निवास स्थान पर मराठा आरक्षण उपसमिति की बैठक बुलाई है. यह बैठक अभी शुरू है. जिस बैठक में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद होने वाले महाराष्ट्र में असर को लेकर रणनीति तय किए जाने पर चर्चा शुरू है. इस बैठक में राज्य के मुख्य सचिव सीताराम कुंटे, महाधिवक्ता कुंभकोणी, गृहमंत्री दिलीप वलसे पाटील, मराठा आरक्षण उपसमिति के अध्यक्ष अशोक चव्हाण, परिवहन मंत्री अनिल परब, नगरविकास मंत्री एकनाथ शिंदे उपस्थित हैं.
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ऐसे पहुंचा मामला सुप्रीम कोर्ट
2018 में महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार ने गायकवाड़ कमीशन के सुझाव पर मराठों को पिछड़ा मान लिया और 16 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर दी. पिछड़ों ने विरोध किया. गायकवाड़ कमीशन को ही बोगस बताया गया. कहा गया कि कमीशन के सदस्यों में पिछड़ों का प्रतिनिधित्व ना के बराबर था. इसलिए गायकवाड़ कमीशन की रिपोर्ट को पिछड़ों ने नकार दिया. मामला हाई कोर्ट पहुंचा. हाई कोर्ट ने आरक्षण घटा कर नौकरी में 13 और शिक्षा में 12 प्रतिशत कर दिया. सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने स्टे दे दिया.
अब यह मिसाल देने की वजह यह है कि मराठों को वर्तमान चौखटे में आरक्षण नहीं दिया जा सकता था. क्योंकि पिछड़ा वर्ग मराठों को पिछड़ा मानने को तैयार नहीं. इसलिए मराठों को अलग से आरक्षण दिया गया. ऐसे में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत को पार कर गई. हालांकि कई राज्यों में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत को पार कर चुकी है. लेकिन उन सबके खिलाफ याचिका लंबित है. अब इसी समस्या का समाधान ढूंढने का समय आ गया है.
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अब प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति तत्काल ले निर्णय – सीएम उध्दव ठाकरे
राज्य सरकार द्वारा बनाये गये मराठा आरक्षण अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट की ओर से रद्द किये जाने के बाद अब आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है. इसी बीच राज्य के मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे ने कहा कि, महाराष्ट्र की विधानसभा सार्वभौम रहने के साथ ही राज्य की जनता की आवाज है. इसी विधानसभा ने महाराष्ट्र के एक बडे पीडित वर्ग के आक्रोश को ध्यान में रखते हुए गायकवाड समिती की सिफारिशों के आधार पर मराठा आरक्षण का निर्णय लिया था. किंतु सुप्रीम कोर्ट ने गायकवाड समिती की सिफारिशों के साथ ही राज्य सरकार द्वारा लिये गये निर्णय को खारिज कर दिया है और कहा है कि, आरक्षण संबंधी निर्णय लेने का अधिकार राज्य सरकार को नहीं बल्कि केंद्र सरकार व राष्ट्रपति को है. अत: अब प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति ने तुरंत मराठा आरक्षण के संदर्भ में सकारात्मक निर्णय लेना चाहिए.
सीएम उध्दव ठाकरे के मुताबिक इससे पहले शाहबानो मामले, एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन तथा धारा 370 हटाने के संदर्भ में केंद्र सरकार द्वारा जिस तत्परता के साथ निर्णय लिये गये और संविधान में संशोधन भी किये गये, वहीं तत्परता मराठा आरक्षण के मामले में भी दिखाई जानी चाहिए. ऐसा भी सीएम उध्दव ठाकरे का कहना रहा.