महाराष्ट्र

शिक्षिका को भोगना पड रहा जाति समिति की उदासिनता का परिणाम

हाईकोर्ट ने ली गंभीर दखल, नोटीस देकर मांगा स्पष्टीकरण

नागपुर/दि.9– अमरावती जात प्रमाणपत्र जांच समिति द्वारा हलबी अनुसूचित जनजाति के दावे पर विगत 9 वर्ष से कोई निर्णय नहीं लिये जाने के चलते एक सहायक शिक्षिका पर अधिसंख्य पद पर वर्ग होने की नौबन आन पडी है. जिसके परिणाम स्वरुप वह शिक्षिका वेतन वृद्धि व पदोन्नति जैसे लाभों से वंचित हो गई है. इस बात की मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने गंभीरतापूर्वक दखल लेते हुए जाति वैधता जांच समिति को इस पर 28 मार्च तक स्पष्टीकरण देने हेतु कहा.
जानकारी के मुताबिक माधुरी पखाले नामक यह शिक्षिका चंद्रपुर स्थित रानी राजकुंवर भगिनी समाज शाला में कार्यरत है तथा उनके पास अचलपुर के उपविभागीय अधिकारी द्वारा जारी किया गया हलबी अनुसूचित जनजाति का प्रमाणपत्र है. जिसके आधार पर उनकी 30 जून 1998 को अनुसूचित जनजाति हेतु आरक्षित सहायक शिक्षक पद पर नियुक्ति की गई थी और उनकी नियुक्ति को जिला परिषद के प्राथमिक शिक्षाधिकारी ने मान्यता प्रदान की थी. इसके उपरान्त शाला द्वारा उनके जाति प्रमाणपत्र की जांच हेतु 9 मार्च 2015 को संबंधित समिति के पास दावा दाखिल किया गया. परंतु जाति प्रमाणपत्र ‘फार्म-सी’ प्रकार में नहीं रहने के चलते समिति ने इस पर निर्णय लेने से इंकार कर दिया. जिसके उपरान्त माधुरी पखाले ने अपने वकील के जरिए उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी. पश्चात 24 नवंबर 2016 को हाईकोर्ट ने पखाले के दावे पर 1 वर्ष में निर्णय लेने का आदेश जारी करते हुए याचिका का निपटारा किया था. लेकिन इसके बावजूद भी समिति ने पखाले के दावे पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया है.
* राज्य सरकार को भी नोटीस जारी
पखाले को अधिसंख्य पद पर वर्ग करने से संबंधित आदेश को भी इस याचिका के जरिए चुनौति दी गई है. इस याचिका पर न्या. नितिन सांभरे व न्या. अभय मंत्री के समक्ष सुनवाई हुई. इस समय पखाले की ओर से पैरवी करते हुए एड. शैलेश नारनवरे ने जाति प्रमाणपत्र जांच का दावा प्रलंबित रहते समय संबंधित कर्मचारी को अधिसंख्य पद पर वर्ग नहीं किया जा सकता, इस कानूनी मुद्दे की ओर अदालत का ध्यान दिलाया. जिसके चलते अदालत ने राज्य के सामान्य प्रशासन विभाग के मुख्य सचिव तथा रानी राजकुंवर भगिनी समाज संस्था के अध्यक्ष को भी नोटीस जारी करते हुए जवाब पेश करने हेतु कहा.

 

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