महाराष्ट्र

ठाकरे सरकार ने पेश किया अलग कृषि विधेयक

फडणवीस ने कहा इसमें कुछ भी नया नहीं

मुंबई/दि. 6 – महाराष्ट्र विधानसभा के दो दिनों का मॉनसूत्र सत्र का आज आखिरी दिन था. दोनों दिन काफी हंगामेदार रहे. कल गाली गलौज और बदसलूकी के आरोप में 12 भाजपा विधायकों को 1 साल के लिए निलंबित कर दिया गया. आज जवाब में भाजपा ने सदन के बाहर समानांतर विधानसभा चलाई. एक तरफ इस समानांतर सदन पर बाहर कार्रवाई की जा रही थी और माइक और इनका स्पीकर जब्त कर इन्हें जगह से हटाया जा रहा था, दूसरी तरफ सदन के अंदर केंद्र के कृषि कानूनों को चुनौती देने वाला ठाकरे सरकार द्वारा राज्य का अपना अलग कृषि विधेयक पेश किया जा रहा था.
केंद्रीय कृषि कानूनों को चुनौती देने वाले तीन कृषि विधेयक मंगलवार को विधानसभा में पेश किए गए. विधेयक पेश करते हुए कृषि मंत्री दादा भुसे (Dada Bhuse, Cabinet Minister of Agriculture) ने कहा कि इस विधेयक के तहत किसानों के साथ किया गया कोई भी एग्रिमेंट तब तक वैध नहीं माना जाएगा जब तक कि किसानों को चुकाई जाने वाली रकम न्यूनतम समर्थन मू्ृल्य (Minimum Support Price-MSP) के बराबर या उससे अधिक ना हो. उन्होंने कहा कि किसानों के साथ स्पॉन्सर का अग्रिमेंट अगर MSP से कम पर हो रहा है तो वो दो साल से ज्यादा समय तक के लिए मान्य नहीं होगा. जिन फसलों के लिए MSP लागू नहीं होती, उन फसलों पर किसान और स्पॉन्सर आपसी सहमति से अग्रीमेंट कर सकेंगे.

  • कृषि विधेयक पर दो महीनों तक सलाह और आपत्ति दर्ज कराने का मौका

उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा कि विधेयक के ड्राफ्ट पर अगले दो महीने तक सलाह या आपत्ति दर्ज की जा सकेगी और इसे विधासभा के शीतकालीन अधिवेशन में फाइनल किया जा सकेगा.
राज्य के सहकारिता मंत्री बाला साहेब पाटील ने केंद्र के Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Act, 2020 कानून पर फेरबदल करते हुए यह कहा कि कोई भी व्यापारी किसान के साथ तब तक व्यापार नहीं कर सकेगा जब तक उसके पास संबंधित ऑथॉरिटी का लाइसेंस नहीं होगा. पाटील ने कहा कि उन्होंने इस ड्राफ्ट में यह नियम लगाने की वजह यह है कि कि पेमेंट डिफॉल्ट का मामला अगर पैदा होता है तो व्यापारियों को नियंत्रण में लाया जा सके. केंद्र के कृषि कानूनों में व्यापारी के PAN नंबर से काम चल जाता. उन्हें लाइसेंस की जरूरत नहीं थी. हालांकि इस ड्राफ्ट किए गए बिल में यह साफ किया गया है कि फलों, सब्जियों, मसालों और जल्दी खराब होने वाली चीजों में इस तरह के लाइसेंस या परमिशन की जरूरत नहीं होगी.

  • विवाद में दोषी होने पर तीन साल की जेल के साथ 5 लाख का जुर्माना

किसानों को ठगे जाने से रोकने के लिए विवाद की स्थिति में केंद्र के कानून में यह प्रावधान था कि इसकी सुनवाई पहले सब-डिविजनल मजिस्ट्रेड करेगा और समाधान नहीं होने पर मामला कलेक्टर के पास जाएगा. लेकिन ठाकरे सरकार के मुताबिक काम के बोझ की वजह से इन अधिकारियों के पास मामला सुलझाने के लिए समय कम ही निकल पाएगा. इसलिए सजा का डर बढ़ाया गया है और दोषी पाए जाने पर तीन साल की जेल और 5 लाख के जुर्माने का प्रावधान किया गया है.

  • असामान्य हालात में सरकार बाजार को नियंत्रित कर सकेगी

इस पर चर्चा करते हुए राज्य के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल  (Chhagan Bhujbal, Cabinet Minister of Food and Civil Supply) ने राज्य के कृषि विधेयक में एक सुधार यह किया है कि Essential Commodities (Amendment) Act, 2020 में यह प्नावधान डाला है कि अकाल, बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा या अत्यधिक महंगाई जैसी हालत में राज्य सरकार के हाथ यह अधिकार दिया है, जिसके इस्तेमाल से  वो वस्तुओं के उत्पादन, सप्लाई, वितरण और स्टॉक जमा करने की लिमिट को नियंत्रित कर सकेगी.

  • इस कृषि विधेयक में कुछ भी नया नहीं- फडणवीस

जवाब में नेता प्रतिपक्ष देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि थोड़ा बहुत हेरफेर कर के यह केंद्र का ही कॉपी किया हुआ कृषि बजट है. इसमें वही संशोधन हैं जो केंद्र की मोदी सरकार ने पहले ही स्वीकार कर लिए हैं. नया क्या है? मुझे खुशी है कि राज्य सरकार ने केंद्रीय कृषि कानूनों को पूरी तरह से अस्वीकार करन की बजाए कुछ उनमें नए सुझाव लाने की कोशिश की है. मेरा पहले से ही यह मत रहा है कि केंद्र सरकार ने जो तीन कृषि कानून लाए हैं. उनमें से पहले दो कृषि कानून तो महाराष्ट्र में पहले से ही किसी ना किसी रूप में अस्तित्व में थे. फडणवीस ने कहा कि राज्य के विधेयक में कहा गया है कि MSP से कम भाव में कृषि उत्पाद नहीं खरीदे जा सकेंगे. यह तो केंद्र सरकार ने पहले ही किसानों से चर्चा के दौरान स्वीकार कर लिया है. लेकिन राज्य के विधेयक में यह भी लिखा गया है कि आपसी सहमति से दो साल तक MSP से कम रेट में किसानों से उनके उत्पाद खरीदे जा सकेंगे. अंतर क्या हुआ? इस तरह से तो दो-दो साल करते हुए अनेक बार किसानों से एमएसपी से कम रेट में माल खरीदा जा सकेगा.
अब एक बात दूसरे कानून के संदर्भ में है. केंद्र के कृषि कानून में था कि कृषि उत्पन्न बाजार समिति यानी एपीएमसी के मार्केट से बाहर के व्यापारी भी किसानों से व्यापार कर सकेंगे. इसके लिए बस उनके PAN नंबर की जरूरत होगी. राज्य सरकार के विधेयक में यह है कि उन व्यापारियों को रजिस्टर्ड होना चाहिए और उन्हें व्यापार करने का संबंधिक ऑथोरिटी से लाइसेंस मिला होना चाहिए. आज भी ऐसा ही है. सारे व्यापारी रजिस्टर्ड हैं और उनके पास इसका लाइसेंस है. इसमें फल, सब्जियां, मसाले और जल्दी खराब होने वाली चीजों को लाइसेंस और परमिशन दूर रखा गया है. हमने क्या अलग किया था?
अब एक तीसरे कानून को लेकर जो राज्य के विधेयक में सुझाया गया है वो यह है कि असामान्य परिस्थिति में केंद्र सरकार को बाजार में हस्तक्षेप कर स्थिति को नियंत्रित करने का अधिकार दिया गया था, वो अब राज्य सरकार को भी देने की बात की गई है. इसमें क्या ऐसी बड़ी बात है?  एक और सुधार जो इसमें किया गया है कि पहले विवाद की स्थिति में उप विभागीय अधिकारी को अपीलीय अधिकारी माना गया था अब जिलाधिकारी या अतिरिक्त जिलाधिकारी को अपीलीय अधिकारी के तौर पर स्वीकार किया गया है.
यानी ज्यादातर सुधार केंद्र सरकार ने पहले ही स्वीकार कर लिए हैं. यानी इतने दिनों तक जो यह कोशिश की जा रही थी कि इस कानून को लागू होने से रोका जाए, वो गलत थी.

  • ‘दिल्ली सीमा पर जमे हुए किसान पाकिस्तान से आए हैं क्या?’

सदन में केंद्रीय कृषि कानूनों को चुनौती देते हुए अलग से कृषि से जुड़े तीन विधेयक पेश करते हुए छगन भुजबल ने कहा कि दो-चार दिनों का आंदोलन करना भी कितना मुश्किल होता है, यह सबको पता है. लेकिन दिल्ली की सीमा पर पिछले आठ महीने से कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का आंदोलन चल रहा है. वे दुश्मन हैं क्या? पाकिस्तान से आए हैं क्या?
भुजबल ने कहा कि दिल्ली सीमा पर लाखों किसान आंदोलन कर रहे हैं.  पूरी दुनिया में इस आंदोलन की चर्चा हुई है. कई आंदोलनकारियों को कोरोना और अन्य बीमारियों से लड़ना पड़ा. 200 से अधिक लोग बलि हुए. किसानों से बात करने को कहा गया तो उनके रास्तों पर कीलें ठोंक दी गईं. इसे पूरी दुनिया में नोटिस लिया गया तब जाकर कीलें निकाली गईं.

  • ‘बोलने जाओ तो ये ईडी की बीड़ी सुलगा देते हैं’

प्रधानमंत्री मुफ्त में अन्न बांटते हैं. अरे, लेकिन उगाता कौन है? किसानों का सिर्फ इतना कहना है कि यह कानून किसानों के लिए अन्यायपूर्ण है, इन्हें बदल दो. फिर भी केंद्र सरकार किसानों का मज़ाक बना रही है. सिर्फ चंद उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने की तैयारी कर रही है. किसानों को समर्थन मूल्य का फायदा मिला है तभी किसान आज इतना अन्न उपजा पा रहे हैं कि देश आज कई देशों को अनाज निर्यात कर रहा है. लेकिन किसान यहां कुछ अपनी बात कहने जाते हैं तो उन्हें ये बेचो, वो बेचो बोल कर भेज दिया जाता है. कोई चर्चा नहीं होती. और आगे क्या बोलूं. बोलने जाओं तो ये ईडी की बीड़ी सुलगा देते हैं. इन शब्दों में छगन भुजबल ने केंद्र सरकार के कृषि कानूनों की आलोचना की.

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