महाराष्ट्र

अदालत ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि से ईदगाह हटाने की याचिका कर दी खारिज

मंदिर स्थल से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की अपील

लखनऊ/दि.३० – मथुरा की अदालत ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि से ईदगाह को हटाने की याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है. वादी पक्ष के विष्णु जैन, हरिशंकर जैन और रंजन अग्निहोत्री ने सिविल जज सीनियर डिवीजन न्यायालय में पहुंचकर अपना पक्ष रखा. कोर्ट ने अपने फैसले में याचिका को खारिज कर दिया. बता दें कि मथुरा की अदालत में दायर हुए एक सिविल मुकदमे में श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर की 13.37 एकड़ जमीन का मालिकाना हक मांगा गया था. इसके साथ ही मंदिर स्थल से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की अपील की गई. इससे पहले 28 सितंबर को हुई संक्षिप्त सुनवाई में एडीजी छाया शर्मा ने मामले को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया था.
याचिका में जमीन को लेकर 1968 के समझौते को गलत बताया गया. इस याचिका के माध्यम से कृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ जमीन का स्वामित्व मांगा गया. याचिकाकर्ता रंजना अग्निहोत्री ने कहा कि अयोध्या का केस हम लोगों ने लड़ा, उसे जनता को सौंप दिया गया है. अब श्रीकृष्ण की मुख्य जन्मभूमि और जो इटेलियन ट्रैवलर ने अपने एकांउट में मेंशन किया है, उसके नक्शे के हिसाब से मुकदमे को सिविल में डाला गया है.
विष्णु जैन का कहना है कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ भूमि जो राजा पटनीमल ने 1815 में खरीदी थी उनके पास इस भूमि खरीद के डॉक्युमेंट हैं. याचिका में इतिहासकार जदुनाथ सरकार और इटालियन ट्रैवलर निकोला मानुची का भी जिक्र किया गया. जो इस बात की ओर इशारा करते हैं जन्मस्थान पर कटरा केशव देव में एक कृष्ण मंदिर मौजूद था और इसे जनवरी / फरवरी 1670 में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर ध्वस्त कर दिया गया था. हालांकि, इस याचिका को लेकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान संस्थान ट्रस्ट का कहना है कि इस केस से उनका कोई लेना देना नहीं है.
मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि से सटी हुई है. 1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी के हिंदू राजा को उस ज़मीन के कानूनी अधिकार सौंप दिए थे जिस पर मस्जिद खड़ी थी. 7 फरवरी 1944 को जुगल किशोर बिरला ने मदन मोहन मालवीय के कहने पर कटरा केशव देव की ज़मीन राजा पटनीमल के वंशजों से खरीद ली. 1951 में यह तय हुआ कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर वहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा. लेकिन ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही मुथार के मस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने 1945 में एक रिट दायर कर दी थी जिसका फैसला साल 1953 में आया और उसके बाद ही मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो सका जो फरवरी 1982 में जाकर पूरा हुआ.
इसी दौरान साल 1964 में इस संस्था ने पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया. इस समझौते के बाद मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्ज़े की कुछ जगह छोड़ी और इसके बदले में मुस्लिम पक्ष को पास की जगह दे दी गई. यही वो समझौता है जिसके खिलाफ ये याचिका दायर की गई.

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