संस्थापकों के वारिसों को ट्रस्ट में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं
नागपुर/दि.10– ट्रस्ट के कामकाज में हस्तक्षेप करने का अधिकार केवल मुंबई सार्वजनिक विश्वस्त व्यवस्था कानून की धारा 2 (10) नुसार पात्र व्यक्ति को ही होगा. ट्रस्ट स्थापित करनेवाले व्यक्ति के वारिस के रूप में किसी को भी हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं, ऐसा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है. मुंबई की एक शैक्षणिक संस्था के संबंध की याचिका में मुंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अविनाश घरोटे ने यह फैसला दिया.
एक शिक्षा संस्था के संस्थापकों ने 2005 वर्ष में उनके इच्छा पत्र में वारिसों को ट्रस्ट के विश्वस्त नियुक्त करें, ऐसा दर्ज किया था. परंतु 2002 में ट्रस्ट का पंजीयन करते हुए ट्रस्ट डीड में विश्वस्त नियुक्ति के प्रावधान में वारिसों को विश्वस्त कराएं, ऐसा किसी भी प्रावधान का अंतर्भाव नहीं किया गया था. ट्रस्ट पंजीयन के बाद दाखल हुई संस्था के एक बदल आवेदन में संस्थापकों के रिश्तेदारों को वारिस के रूप में हस्तक्षेप करने को सहायक धर्मादाय आयुक्त को अनुमति दी. इस आदेश पर संस्था ने सह धर्मादाय आयुक्त की ओर अपील करने पर उन्होंने वारिसों को हस्तक्षेप करने का हक रद्द किया.
इस पर वारिसों को मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दाखल की. यदि इच्छापत्र में वारिसों को विश्वस्त के रूप में नियुक्त किया जाए, ऐसा कहा जाए तो भी ट्रस्ट दर्ज करते समय ट्रस्ट डीड में इस प्रकार के कोई भी प्रावधान नहीं किए गये. यह ट्रस्ट इच्छापत्रानुसार दर्ज किया हुआ नहीं है. ट्रस्ट डीड द्बारा अस्तित्व में नहीं आया है. जिसके कारण ट्रस्ट के नियमन करते समय केवल ट्रस्ट डीड में प्रावधान व कानून के नियम ही ग्राह्य माने जा सकते हैं, ऐसा फैसला न्यायालय ने दिया है.
बॉक्स, फोटो- एड. शिवराज कदम- जहागीरदार
ट्रस्ट डीड करते समय उसमें विश्वस्तों को अभिप्रेत रहनेवाले प्रावधान का अंतर्भाव किए जाने का ध्यान रखना जरूरी है. समय पर ऐसा सुधार करना आवश्यक है. अन्यथा अनर्थ हो सकता है.
– एड. शिवराज कदम- जहांगीरदार,
पूर्व अध्यक्ष पब्लिक ट्रस्ट प्रैक्टीशनर्स एसो.