मुंबई/दी10– करीबन महीनेभर से जारी एसटी कर्मचारियों के आंदोलन को गति देने का काम भारतीय मजदूर संघ करेगी. राज्य सरकार ने कर्मचारियों की मांगें पूरी न किए जाने पर यह आंदोलन और तीव्र होगा, ऐसी भूमिका संगठन ने ली है.
भामसं संलग्नित भारतीय परिवहन मजदूर महासंघ के राष्ट्रीय कार्य समिति की दो दिवसीय बैठक कांग्रेसनगर स्थित कार्यालय में गुरुवार से शुरु हुई. उदघाटन अ.भा. परिवहन मजदूर महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वी.आर. वछाणी के हाथों किया गया. इस समय प्रमुख रुप से भारतीय मजदूर संघ की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नीता चौबे, क्षेत्रीय संगठन मंत्री सी.वी.राजे,राजबिहारी,राष्ट्रीय मंत्री रविन्द्र मते, भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश महामंत्री गजानन गटेलवार,अ.भा.परिवहन महासंघ के राष्ट्रीय महामंत्री ब्रजेश शर्मा उपस्थित थे.
महाराष्ट्र के एसटी कर्मचारियों की हड़ताल बाबत भी इस बैठक में चर्चा किए जाने के साथ ही हड़ताल को परिवहन मजदूर महासंघ ने समर्थन दर्शाया है.कर्मचारियों की मांगें न्यायिक होने की बात क्षेत्रीय संगठन मंत्री राजबिहारी ने उद्घाटन पर भाषण में स्पष्ट की. महाराष्ट्र सरकार द्वारा उनकी मांगों की तुरंत दखल ली जाये अन्यथा उनकी मांगें मंजूर न होने पर परिवहन मजदूर महासंघ की ओर से महाराष्ट्र में आंदोलन किये जाने की बात कही गई. बैठक का समापन भारतीय मजदूर संघ के अ.भा. संगठन मंत्री बी. सुरेन्द्र की उपस्थिति में होगा.
जीवनावश्यक सेवा अबाधित रहें इसलिए…
सवा महीने से शुरु एसटी की हड़ताल पूरी तरह खत्म करने तैयार नहीं. विलीनीकरण की मांग पर कर्मचारी अडिग हैं. शासन ने अनेक बार अवसर दिया, फिर भी पीछे हटने तैयार नहीं. इस कारण शासन ने इन कर्मचारियों पर मेस्मा लगाने की हलचल शुरु की है. मेस्मा यानि क्या है…
ऐसा है कानून…
जीवनावश्यक लेवा अबाधित रहे, इसलिए यह कानून का प्रावधान किया गया है. सर्वप्रथम 1968 में केंद्र सरकार ने अत्यावश्यक सेवा परिरक्षण अधिनियम (एस्मा) कानून संसद में सहमति किया. यह विषय समवर्ती सूचित आने से राज्य सरकार इस पर कानून बना सकती है. राज्य में फरवरी 2018 में महाराष्ट्र अत्यावश्यक सेवा परिरक्षण अधिनियम 2017 का (मेस्मा) परिपत्रक निकाला गया.
प्रावधान इस तरह…
-सिर्फ अत्यावश्यक शासकीय सेवा में काम करने वाले कर्मचारियों पर यह कानून लागू.
– मेस्मा 40 दिन अस्तित्व में रहता है. मात्र 6 महीने तक उसमें बढ़ोत्तरी की जा सकती है.
– कर्मचारी ओवरटाईम नकार नहीं सकते. शासन का आदेश बंधनकारक होता है.
सजा का स्वरुप….
– जीवनावश्यक सेवा बाधित करने पर एक वर्ष जेल या दो हजार रुपए जुर्माना या दोनों.
-पुलिस द्वारा बिना वॉरंट गिरफ्तार किया जा सकता है.
-औद्योगिक कानून अंतर्गत जांच एवं कार्रवाई के लिए पात्र.
कानून अंतर्गत सेवा…
– किसी भी प्रकार की यातायात सेवा.
-पानी, बिजली गैस आपूर्ति की सेवा.
-जीवनावश्यक खाद्य एवं दूध आपूर्ति सेवा.
– सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं स्वच्छता सेवा.